नई दिल्ली: अगर आपसे पूछा जाए कि राजनीति की परिभाषा क्या है तो इसका एक साधारण और सटीक जवाब होगा जिस नीति से राज हासिल हो जाए उसे राजनीति कहते हैं. अब दूसरा सवाल अगर आपसे पूछा जाए कि इस नीति से राज करने वालों की कतार में किसका नाम सबसे पहले आएगा तो निश्चित ही नामों की सूची में एक नाम महाराष्ट्र के ठाकरे परिवार का आएगा. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाला शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसको महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार की ताकत का अंदाजा न हो. महाराष्ट्र की राजनीति परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से ठाकरे परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे राज्य की राजनीति में हमेशा ही एक कद्दावर शख्सियत रहे. अब एक बार फिर सत्ता की चाबी ठाकरे परिवार के हाथों में है. उद्धव ठाकरे पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं.
आज बेशक बाल ठाकरे वाली शिवसेना दो हिस्सों में बंट गई हो. आज बेशक परिवार में मतभेद हो गया हो लेकिन एक चीज जो नहीं बदली है वह है राज्य की सत्ता पर ठाकरे परिवार का प्रभाव. अब चूकि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे राज्य के नए मुख्यमंत्री बनने वाले हैं तो ऐसे में एबीपी न्यूज़ के वरिष्ठ पत्रकार दिबांग आपको बता रहे हैं उद्धव ठाकरे से जुड़ी वो दिलचस्प बातें जो बहुत कम लोग जानते हैं.
बाल ठाकरे दो भाई हैं
शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे दो भाई हैं. एक तो खुद बाल ठाकरे और दूसरे भाई का नाम श्रीकांत ठाकरे है. इनके पिता का नाम केशव सीताराम ठाकरे था. वह समाज सुधारक और प्रभावी लेखक थे. उनकी मां का नाम रमाबाई था. बाल ठाकरे का जन्म तत्कालीन बॉम्बे रेजीडेंसी के पुणे में 23 जनवरी 1926 को हुआ था.उनका असल नाम बाल केशव ठाकरे है. उन्हें बाला साहेब ठाकरे के नाम से भी जाना जाता है.
बाल ठाकरे और श्रीकांत ठाकरे की शादी से जुड़ा दिलचस्प किस्सा
ठाकरे परिवार की दिलचस्प बातों में एक बात बाल ठाकरे और उनके भाई श्रीकांत ठाकरे की शादी से भी जुड़ी है. दोनों ने मीना और कुंदा नाम की लड़कियों से शादी रचाई, जो आपस में सगी बहनें थी.
बाल ठाकरे और श्रीकांत ठाकरे का परिवार
बाल ठाकरे और उनकी पत्नी मीना के तीन बेटे हुए. उनके नाम बिन्दुमाधव, जयदेव और उद्धव ठाकरे था. वहीं श्रीकांत ठाकरे के बेटे राज ठाकरे हैं. अब चूंकि मीना और कुंदा सगी बहनें हैं तो इस लिहाज से राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे न सिर्फ चचेरे बल्कि मौसेरे भाई भी हैं.
उद्धव ठाकरे अपने चाचा श्रीकांत ठाकरे के बेहद करीब हैं
उद्धव ठाकरे के बारे में एक दिलचस्प बात यह भी है कि वह किसी से भी ज्यादा अपने चाचा श्रीकांत ठाकरे के करीब रहे. इसकी एक बड़ी वजह है. दरअसल, उद्धव जब एक साल के थे तो उस वक्त वह काफी बीमार पड़ गए. उद्धव उस वक्त इतना बीमार थे कि उनके बचने की भी उम्मीदें परिवार ने छोड़ दी थीं. उस वक्त उनके चाचा श्रीकांत ठाकरे ने उनकी पूरी तरह से देखभाल की थी और वह बच सके थे. तभी से वह चाचा के करीब हो गए.
चाचा-चाची ने दिया था नाम
बचपन में उद्धव ठाकरे को उनके चाचा श्रीकांत ठाकरे ने डिंगा नाम दिया था. वहीं उनकी चाची कुंदा ठाकरे ने उद्धव का नाम श्रवन दिया था. इसके पीछे कारण यह था कि उद्धव बचपन में बहुत ही शालीन, शर्मीले और आज्ञाकारी थे.
उद्धव की तरह राज ठाकरे भी अपने चाचा के ज्यादा करीब रहे
उद्धव ठाकरे की तरह राज ठाकरे भी अपने चाचा के ज्यादा करीब थे. राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे के ज्यादा करीब रहे. संगती का प्रभाव पड़ता है और इसलिए जो गुण बाल ठाकरे में था वो राज ठाकरे में भी आया. बाल ठाकरे की तरह उनके भतीजे राज ठाकरे भी अच्छे कार्टूनिस्ट हैं. ठीक वैसे ही श्रीकांत ठाकरे की तरह उद्धव ठाकरे भी अच्छे फोटोग्राफर हैं.
पढ़ाई के बाद एड एजेंसी शुरू की
उद्धव ठाकरे ने जे.जे इस्टीट्यूट से बीए- आर्ट्स में किया. उसके बाद चौरंग एड एजेंसी शुरू की.
उद्धव ठाकरे की ताकत है पत्नी रश्मि
हर सफल आदमी के पीछे एक सफल स्त्री का हाथ होता है. यह बात उद्धव ठाकरे के लिए भी सही साबित होती है. वह जिस मुकाम पर हैं उसमें उनकी पत्नी रश्मि की एक बड़ी भूमिका है. कहा जा रहा है कि बजेपी से गठबंधन तोड़ने का आइडिया भी रश्मि का ही था. राजनीति को भली प्रकार से समझने वाली रश्मि को इस बात का एहसास था कि इस गठबंधन के टूटने के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव क्या कद होगा. नतीजा आज हमारे सामने हैं. उद्धव बतौर सूबे के नए मुख्यमंत्री बनने वाले हैं.
इसके अलावा एक और एक्स फैक्टर है जो उद्धव को हमेशा फायदा पहुंचाता है. रश्मि ब्राह्मण परिवार से जुड़ी हैं और इसी कारण वह आरएसएस की कार्यप्रणाली को समझती हैं. उनके पास एक अच्छा राजनीतिक और साथ ही उम्दा सामाजिक-सांस्कृतिक नेटवर्क है, जो हमेसा उद्धव के लिए मददगार साबित होता है.
राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से कैसे आना हुआ
1990 तक उद्धव ठाकरे परिवार के राजनीतिक सीन से बाहर ही रहे. उनकी जगह उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ही शिवसेना की पहचान बने रहे. लेकनि इसी दौरान 1993 में राज ठाकरे ने नागपुर में बेरोजगारी का बड़ा आंदोलन किया. उस वक्त उस सभा में उद्धव को भी भाषण देने का मौका दिया गया. यही बात राज ठाकरे को अच्छी नहीं लगी. यहीं से दोनों भाइयों में दरार की शुरुआत हुई.
कैसे अलग हो गए शिवसेना से राज ठाकरे
बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे हमेशा अपने चाचा के कदमों पर चला करते थे. माना जाता था कि बाल ठाकरे राज को ही पार्टी की कमान देंगे. लेकिन 2004 में बाल ठाकरे ने भतीजे को दरकिनार करके उद्धव ठाकरे को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया. बाला साहेब के इस फैसले को राज ठाकरे स्वीकार नहीं कर पाए. चाचा-भतीजे में दूरी बढ़ती गई और आखिरकार 2005 में राज ठाकरे शिवसेना से अलग हो गए. अगले साल उन्होंने अपनी पार्टी बना ली और पार्टी का नाम रखा महाराष्ट्र नव निर्माण सेना. राज ठाकरे की पार्टी ने 2009 में विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई और 14 विधायक उनकी पार्टी के बने, लेकिन जैसे-जैसे वक्त आग बढ़ता गया, राज ठाकरे की सियासत सिकुड़ती गई.
राज ठाकरे की पार्टी का 2014 और 2019 में सिर्फ 1-1 विधायक ही चुनाव जीत पाया. वहीं शिवेसना 2014 में 63 विधायकों और 2019 में 56 विधायकों के साथ राज्य की दूसरे सबसे बड़ी पार्टी बनी. सियासत में आज राज ठाकरे हाशिए पर हैं और उद्धव ठाकरे सूबे का सीएम बनने वाले हैं.