नई दिल्ली: तब की मद्रास प्रेसीडेंसी और आज के तमिलनाडु के एक परिवार में बच्चे का जन्म हुआ. पिता चाहते थे कि उनका बेटा बड़ा होकर मंदिर में पुजारी बने, लेकिन वो बने शिक्षा के पुजारी. मानवता के पुजारी. वो एक महान दार्शनिक बने, उन्हें महान शिक्षक के तौर पर याद किया जाता है, उन्ही के जन्मदिन पर शिक्षक दिवस बनाया जाता है और वो देश के सर्वोच्च संवैधानिक (राष्ट्रपति) पद पर विराजमान हुए.


हम बात कर रहे हैं देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन की. उनसे जुड़ा एक रोचक किस्सा है, लोग 13 की संख्या को अशुभ मानते हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में अनन्य विश्वास रखने वाले डॉ. राधाकृष्णन के लिए 13 की संख्या सबसे ज्यादा शुभ रही. वो 13 मई 1952 को देश के पहले उपराष्ट्रपति बने और वो 13 मई को ही 1962 में राष्ट्रपति बने.


जब देश आजाद हुआ तो नेहरू ने उन्हें तब के सोवियत संघ यानि रूस का विशिष्ट राजदूत बनाकर भेजा. उस समय सोवियत संघ के राष्ट्रपति जोसेफ स्टालिन थे. वो स्टालिन जिससे पूरी दुनिया खौफ खाती थी, उनके सामने लोग थरथर कांपते थे.


लेकिन राधाकृष्णन जी का व्यक्तित्व ऐसा था कि तानाशाही रवैये वाला स्टालिन भी उनका मुरीद हो गया, जब वो भारत वापस आने लगे तो स्टालिन ने कहा- आप पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने मुझे मानव समझा, नहीं तो बाकि दुनिया मुझे दानव समझती है. आप जा रहे हैं मुझे इस बात का दुख है”


इसकी वजह ये थी कि राधाकृष्णन जी मानवता में विश्वास रखते थे, वो धर्म और दर्शन के प्रकांड विद्वान थे, वो सभी धर्मों के सम्मान में विश्वास रखते थे.


डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 20 साल की उम्र से ही अध्यापन शुरू कर दिया था, सारी जिंदगी वो एक शिक्षक रहे. उनका मानना था कि पूरा विश्व एक विद्यालय है.


वो आंध्र, कोलकाता, बनारस विश्वविद्याल के वाइस चांसलर रहे,  इतना ही नहीं उनके ज्ञान का ओज पूरे विश्व में फैला था. वो ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर भी रहे. उन्होंने कई किताबें भी लिखीं. शिक्षा के क्षेत्र में साल 1933 से लेकर लगातार 5 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया. साल 1954 में भारत रत्न से नवाज गया.


वो देश के इकलौते ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनके कार्यकाल में दो-दो भीषण युद्ध हुए. 62 में चीन तो 65 में पाकिस्तान से.


वो इकलौते राष्ट्रपति हैं जिनके कार्यकाल में देश दो-दो प्रधानमंत्रियों का निधन हो गया. पहले नेहरू जी फिर शास्त्री जी के निधन के बाद पड़ोसी देशों से तनाव के बीच विषम परिस्थियों में सूझबूझ से देश को आगे बढ़ाया.


राधाकृष्णनन जी ने कहा था- पवित्र आत्मा वाले लोग इतिहास के बाहर खड़े हो कर भी इतिहास रच देते हैं.”


जैसा कहा ठीक वैसा किया, इतिहास के बाहर खड़े होकर उन्होंने इतिहास रच दिया.


5 सिंतबर को शिक्षा दिवस उन्हीं के जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है.


आखिर में एक और रोचक बात बताते चलें, जो आप शायद ही जानते हों, टीम इंडिया के स्टार क्रिकेटर रहे वीवीएस लक्ष्मण, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के परपोते हैं.