Cold Wave in India: आखिर क्यों उत्तर भारत में पड़ रही है इतनी ठंड? इसके पीछे क्या हैं वैज्ञानिक कारण
Cold Weather in India: मौसम विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले कुछ दिनों में पारा और गिर सकता है. वहीं, पहले ही संभावना जता दी गई थी कि इस साल पड़ने वाली ठंड कई पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त कर सकती है.
Cold Wave in North India: देश में शीतलहर का प्रकोप बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है. खासतौर से उत्तर भारत के राज्यों में ठंड का कहर साफ नजर आ रहा है. उत्तर प्रदेश के यूपी में ठंड इस कदर जानलेवा हो गई कि कानपुर में गुरुवार को केवल 2 सरकारी अस्पतालों में 25 लोगों की मौत हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक से चली गई. वहीं, नया साल शुरू होने के बावजूद देश में लोगों को ठंड से निजात नहीं मिली है.
मौसम विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले कुछ दिनों में पारा और गिर सकता है. वहीं, पहले ही संभावना जता दी गई थी कि इस साल पड़ने वाली ठंड कई पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त कर सकती है. देश की राजधानी दिल्ली में शुक्रवार (6 जनवरी) को पारा 1.8 डिग्री रहा और ये शिमला से भी ज्यादा ठंडा था. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर उत्तर भारत में इतनी ठंड क्यों पड़ती है? आइए जानते हैं इसके पीछे के वैज्ञानिक कारण...
बढ़ती ठंड पर क्या कहते हैं मौसम विज्ञानी?
मौसम विज्ञानियों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की वजह से तकरीबन हर मौसम में असामान्य व्यवहार नजर आता है. मानव जनित गतिविधियों की वजह से होने वाले जलवायु परिवर्तन का असर गर्मियों में भीषण गर्मी और सर्दियों में कड़ाके की ठंड के तौर पर सामने आ रहा है. मौसम विज्ञानियों की मानें, तो जलवायु परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो मौसमों में ऐसे बदलाव देखे जाते रहेंगे.
अक्षांश रेखा से भी बदलता है सर्दी का मौसम
भारत की ज्यादातर भूमि उत्तरी गोलार्ध में स्थित है. जिसकी वजह उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में कड़ाके ठंड पड़ती है. वहीं, ज्यादा सर्दी पड़ने की बड़ी वजहों में से एक अक्षांश रेखा भी हैं. दरअसल, अक्षांश रेखा यानी लैटिट्यूड और देशांतर रेखा यानी लोंगिट्यूड का इस्तेमाल किसी देश की भौगोलिक स्थिति को बताने के लिए किया जाता है. एक तरह से देशों का लैटिट्यूट ही तय करता है कि वहां मौसम कैसा रहेगा? लैटिट्यूड में आने वाली जगहों पर ठंड पड़ना और बर्फबारी होना बहुत आम सी बात है.
सूर्य से पृथ्वी की दूर भी बड़ी वजह
बचपन में पढ़ाया गया था कि सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं और हर ग्रह अपनी-अपनी कक्षा में घूमता है. सूरज के चक्कर लगाने वाले हर ग्रह की कक्षा अलग-अलग होती है. पृथ्वी की कक्षा की बात करें, तो ये परवलयाकार है यानी अंडाकार आकृति में सूरज के चारों और चक्कर लगाती है. जिसकी वजह से कुछ समय के लिए पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी ज्यादा हो जाती है. जब पृथ्वी सूरज से दूर होती है, तो धरती पर सबसे ज्यादा ठंड पड़ती है. वहीं, इस दौरान सूरज की किरणें भी पृथ्वी पर पूरी तरह से नहीं आती हैं.
पश्चिमी विक्षोभ से आती ठंडी हवाएं
उत्तर भारत के इलाकों में कड़ाके की ठंड पड़ने की एक अहम वजह पश्चिमी विक्षोभ भी है. पश्चिमी विक्षोभ की वजह से उत्तर भारत को इलाकों में ठंडी हवाएं आती हैं, जिन्हें आमतौर पर लोग शीतलहर कहते हैं. पश्चिमी विक्षोभ में नमी की वजह से कई बार सर्दियों के मौसम में बारिश और ओले गिरने की घटनाएं भी होती है. वहीं, पश्चिमी विक्षोभ की वजह से पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी होती है.
कब पड़ती है कड़ाके की ठंड?
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार, मौसम विज्ञानी ठंड के बीच अंतर को मापने के लिए सर्दियों के मौसम में सामान्य से कम हो रहे पारे पर नजर रखते हैं. अगर पारा सामान्य तापमान से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस तक कम होता है, तो इसे ठंड का मौसम माना जाता है. वहीं, जब पारा सामान्य तापमान से 6 से 7 डिग्री तक गिर जाता है, तो इसे कड़ाके की ठंड कहा जाता है.
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