नई दिल्ली: अलग-अलग राज्यों से दिल्ली के एम्स पहुंचे मरीज और उनके परिवार वाले अब यही फंस गए हैं. लोगों के पास जो जमा पूंजी थी अब वो भी खत्म हो गई है. अब उन्हें खाने पीने कि भी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.


केस स्टडी एक


पटना से आई 10 साल कि मासूम प्रिया जिसके गले में छेद है और उसको इन्फेक्शन का हमेशा खतरा बना रहता है उसके पिता बृजेश कुमार और मां किरण पटना से दिल्ली पहुंचे थे 18 मार्च को उसका ऑपरेशन होना था लेकिन कोरोना के संकट के चलते उसका ऑपेरेशन टल गया और पूरा परिवार यहीं फंस गया. अब उनके पैसे भी खत्म हो रहे हैं. प्रिया के पिता कि पटना में दुकान थी लेकिन ना दुकान खुल पा रही है ना पैसे मिल पा रहें हैं.


बड़ी मुश्किल से परिवार एम्स के आश्रय में एक कमरा ले कर रह रहा है. क्यूंकि प्रिया को इन्फेक्शन का खतरा है लेकिन इस कमरे का किराया भी अब खत्म हो रहा है. इनको ये नहीं पाता के लॉकडाउन बढ़ने के बाद अब ये कैसे किराया दे पाएंगे.


बृजेश कुमार का कहना है के पहले उन्होंने 24 मार्च का टिकट करवाया था लेकिन लॉकडाउन के चलते ट्रेन रद्द हो गई. अब इसके बाद उन्होंने एक मई का टिकट करवाया जिसके बाद दोबारा लॉकडाउन घोषित हो गया. वो केवल एक हफ्ते का खर्चा ले कर आये थे बीच बीच में पैसे मंगवा कर गुजारा कर लिया अब पैसे खत्म हो रहें हैं. बच्चों के दूध बिस्कुट के पैसे जुटाना भी मुश्किल हो रहा है.


नम आंखों से किरण बताती है कि अगर बच्ची को ले कर शेल्टर होम में जाना पड़ गया तो बच्ची इन्फेक्शन से खत्म हो जाएगी. उनके लिए सबसे जरूरी बच्ची कि जिन्दगी है. वो कहती है बच्ची को कोई भी इन्फेक्शन बहुत जल्दी पकड़ लेता है. इस लिए वो यही चाहती हैं कि कोई व्यवस्था हो जाए ताकि वो घर पहुंच सकें.


एम्बुलेंस भी बुलाने कि कोशिश कि लेकिन उसके भी 30 हजार रुपए मांग रही है लेकिन उनके पास इतने पैसे हैं भी नहीं के वो 30 हजार दे पाएं. खाना बस एक बार सरकार कि तरफ से मिलता है दिन में शाम को चैरिटी वाले खाना दे देते हैं लेकिन कभी कभी वो भी नहीं मिल पाता.


केस स्टडी दो


पटना के इस परिवार के जैसे हरियाणा के पती पत्नी भी है जो लॉकडाउन के चलते फंस गए हैं और अब उनके भी पैसे खत्म हो रहें हैं. हरियाणा के गौरव तीन महीने से अपनी कैंसर पीड़ित पत्नी का इलाज करवाने एम्स आएं हैं लेकिन अब पैसे खत्म हो रहें हैं और खाने पीने कि समस्या है. लॉकडाउन के चलते ना पैसे आ पा रहें हैं ना खाना मिल पा रहा है. लाइन में लग कर उनको अपनी बीमार पत्नी को छोड़ कर खाना लेना पड़ता है अब रूम के किराए का भी पैसा खत्म हो रहा है. घर से भी पैसे नहीं मंगवा सकते हैं.


केस स्टडी तीन


मुरादाबाद से आये रविंदर सिंह कैंसर पीड़ित हैं उन्होंने भी यही कहा के पैसे खत्म हो रहें हैं और खाने पीने कि भी व्यवस्था नहीं है. उनका कहना है के ना रहने कि व्यवस्था है ना खाने कि व्यवस्था है जितना खाना मिल रहा है उससे शायद एक छोटे बच्चे का भी पेट ना भर पाएं. उनकी पत्नी ममता का कहना है के पाता नहीं कैसे मैनेज होगा. लॉक डाउन बढ़ गया है कहां से किराया दें कहां से खाना लाएं पैसा भी नहीं है अब. किराए के पैसे भी नहीं हैं. जाने का कोई साधन नहीं है. डॉक्टर ने ये भी नहीं बताया कि कब इलाज होगा.


केस स्टडी चार


धनबाद के अजय का कहना हैं के कैंसर पीड़ित उनकी मां हैं और धनबाद में उनकी गर्भवती पत्नी भी एडमिट हैं जो वहां अकेली है. अब वापस जाना कहते है लेकिन कोई सुविधा नहीं एम्बुलेंस को देने के पैसे नहीं हैं. खाने पीने से बस कान चल रहा है. मोदी जी ने कहा है के बुजुर्गों का ध्यान रखें लेकिन मेरी मम्मी की तबियत और खराब होती जा रही है.


एम्स पूरे देश में सबसे बाद अस्पताल का जाना माना अस्पताल है जहां अलग-अलग राज्यों से लोग इलाज करवाने पहुंचते हैं. कोरोना की संकट के बीच पूरे देश में लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ गया है ऐसे में मरीज और उनके परिवार वाले दिल्ली में फंस कर रह गए हैं जहां ना उनको खाना-पीना मिल पा रहा है और अब उनके पैसे भी धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं.


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