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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
ABP न्यूज़ पर बाबरी विध्वंस की पूरी कहानी, पढ़ें 10 चश्मदीदों की जुबानी
''हमने ढांचे को तोड़ने के लिए कुछ बड़े लोगों का सहयोग भी लिया था. उस वक्त त्रिशूल और तलवारें भी मंगवाई गई थीं. सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ था.’’
नई दिल्ली: अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने की आज 25वीं सालगिरह है. पच्चीस साल बाद न तो विवाद सुलझा है और न ही राजनीति खत्म हुई. अब गुजरात में चुनाव से पहले एक बार फिर मुद्दा गर्म है. विवादित ढांचा गिराए जाने के पच्चीस साल पूरे होने पर ABP न्यूज ने उन 10 लोगों से बात की है, जो विवादित ढांचा गिराए जाने के वक़्त वहीं मौजूद थे.
- राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास - सत्येंद्र दास ने बताया, ‘’छह दिसंबर सुबह 11 बजे मुझसे कहा गया था कि आप मंदिर में भोग लगाकर मंदिर बंद कर दीजिए. इसके बाद मैंने भोग लगाकर मंदिर बंद कर दिया. तब मुझसे पूजा करने के लिए एक नारियल भी मांग गया था. उन्होंने बताया कि उस दौरान विवादित स्थल के पास एक मंच पर बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे. लेकिन कारसेवकों ने उनकी बात नहीं मानी. इसके बाद आरएसएस के लोग गए लेकिन उनकी बात भी नहीं मानी गई.’’ सत्येंद्र दास ने कहा, ‘’वहां तीन गुंबद थे. एक उत्तर एक दक्षिण और एक बीच में था. जिसमें बीच में रामलला विराजमान थे. वहीं पूजा अर्चना होती थी. कारसेवकों ने पहले उत्तर वाला और फिर दक्षिण वाला ढांचा गिराया. इसके बाद हमने रामलला को वहां से बाहर निकाला.’’
- महंत त्रिपाठी, फोटोग्राफर की दुकान चलाने वाले - महंत त्रिपाठी ने बताया, ‘’मैं 1982 से 92 तक उसी जगह अपनी दुकान चलाता था. हमें एक पास जारी किया जाता था. उस वक्त लाखों की संख्या में कारसेवक वहां इकट्ठा थे. बगल में ही रामकथा कुंज पार्क था. जिसमें बीजेपी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, अशोक सिंघल, कलराज मिश्रा जैसे तमात नेता मौजूद थे. वहां वह कारसेवकों को समझाने की कोशिश कर रहे थे कि वह रुक जाएं और उग्र न हो. उस दौरान कारसेवकों ने फोटों खींचे जाने के डर से काफी फोटोग्राफर्स पर हमला भी किया था.’’
- रामसेवक, कारसेवक - कारसेवक रामसेवक ने बताया, ‘’मैं भी कारसेवा के लिए गया था. मैं हथोड़ी, फावड़ा, डंडा, कूदाल लेकर गया था.’’ उन्होंने कहा, ‘’राम मंदिर बनना चाहिए. वह ढांचा हमरे देश के लिए एक कलंक था.’’
- अन्य कारसेवक - अन्य कारसेवक ने बताया, ‘’हम जगन्नाथ मंदिर में समूह में थे. उस दौरान करीब पचास लोग थे. उस वक्त रामशरण दास करने जो डीएम थे वह हमसे बोल रहे थे कि आप लोग नीचे आइए. तो हमने कहा कि हम नीचे नहीं आएंगे. आप चार-पांच बस मंगाइए. हम सब एक साथ गिरफ्तारी देंगे. हम तो कफन बांध कर आए थे.’’
- विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता शरद - शरद ने बताया, ‘’उस वक्त मेरे पास बजरंग दल के एक वार्ड का कार्य था. 92 में मुझे रसदपूर्ति की जिम्मेदारी दी गई थी औऱ जो बाहर से आने वाले कारसेवक थे, उनके खादान्य को किस तरह से उनतक पहुंचाया जाए, ये व्यवस्था दी गई थी. हम तत्पूर्ता से उसमें लगे रहे. ढांचा गिरा उस दिन दृढ़ शक्ति का प्रगटीकरण था.’’
- राममणि, चश्मदीद - राममणि ने बताया, ‘’अयोध्या में उस दिन कारसेवकों का बड़ा हूजूम था. मैं उस समय अखंड रामायण का पाठ कर रहा था. वहां इतनी राम की लहर थी कि लोग जल्द से जल्द विवादित ढांचे को गिरा देना चाहते थे. बाद में उसको गिरा दिया.’’
- स्थानीय निवासी - एक अन्य निवासी ने बताया, ‘’1992 को मैं वहां था औऱ पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव सरकार ने आश्वासन दिया था कि रामजन्म भूमि का फैसला जल्द ही आ जाएगा. आखिर में इतने कारसेवक जुनूनी हो गए कि बड़े-बड़े नेताओं को रोकने के बाद भी वह नहीं रूके और एक घंटे के अंदर हमारी आंखों के सामने विवादित ढांचे को गिरा दिया.’’
- संतोष, कारसेवक - कारसेवक संतोष ने बताया, ‘’हम ढांचा गिराने में थे. हमने तोड़ा है. हमें अपने किए पर गर्व है. बहुत अच्छा काम किया हमने. हमारे साथ पांच हजार लोगों की भीड़ थी. हम लोगों ने दो-तीन महीने पहले ही पूरी तैयारी कर ली थी. हम घायल भी हुए थे, उस वक्त मुझे गोली लगी थी. हमने ढांचे को तोड़ने के लिए कुछ बड़े लोगों का सहयोग भी लिया था. उस वक्त त्रिशूल और तलवारें भी मंगवाई गई थीं. सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ था.’’
- रामजी गुप्ता, अध्यक्ष, लक्ष्मण सेना - रामजी गुप्ता ने बताया, ‘’यहां पर चार लाख कारसेवक थे और हिंदुओं की ऐसी उदारता थी कि यहां एक भी मुसलमान को चार लाख कारसेवकों ने जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाया. मैं जन्मभूमि परिसर में ही था. सारी योजना मेरी थी. रामजन्म भूमि पर बना ढांचा मेरे नेतृत्व में गिराया गया था. मेरे ऊपर मुकदमा भी चल रहा है और सीबीआई छापे में मेरी गिरफ्तारी भी हुई थी. संतोष जी भी उस वक्त मेरे साथ थे. मेरे सामने कारसेवक ढांचे को गिरा रहे थे.’’
- अमरनाथ पांडे, कारसेवक - अमरनाथ पांडे ने बताया, ‘’उस दिन मैं वहीं था. मेरा गांव यहां से बीस किलोमीटर दूर था. उस दिन मैं अपने साथियों के साथ ढांचा गिराने आया था और तोड़कर ही यहां से गया. मेरे अंदर ऐसी जिज्ञासा थी कि बाबर ने जो बाबरी मस्जिद बनवाई. उसे तोड़ना है. ढांचे को ढहाने के लिए चार लाख कारसेवक मौजूद थे. हमें इस बात का कोई अफसोस नहीं है.
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