नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर हर रोज कई मैसेज, फोटो और वीडियो वायरल होते हैं. इन वायरल मैसेज फोटो और वीडियो के साथ कई चौंकाने वाले दावे भी किए जाते हैं. आप गर्मी में रूह अफजा पीते और पिलाते होंगे और जो नहीं पीते उन्होंने रूह अफजा का नाम तो जरूर सुना होगा. इसी रूह अफजा को लेकर एक मैसेज सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. इस मैसेज के साथ भी एक चौंकाने वाला दावा किया जा रहा है.


क्या लिखा है वायरल मैसेज में ?


वायरल मैसेज में लिखा है, ''मशहूर यूनानी दवा कंपनी हमदर्द में एक भी हिंदू युवक को काम नहीं मिलता. अल्पसंख्यक मंत्रालय और वक्फ बोर्ड के करोड़ों रुपये की सहायता से चलने वाला "हमदर्द" वक्फ लैबोरेटरी जिसके प्रोडक्ट साफी, रूह आफजा, सौलिन, जोशिना हैं.. उसके डिस्ट्रीब्यूटर बनने की पहली शर्त है कि आवेदक सिर्फ मुस्लिम होना चाहिए.''


इसी मैसेज में आगे लिखा है, ''इस कंपनी में प्रोडक्ट बेचने वाले सेल्समैन से लेकर मैनेजिंग डायरेक्टर तक काम करने वाला हर शख्स मुसलमान है. सरकारी पैसे से चलने वाली दवा की कम्पनी का ये नियम है. शुक्रवार को ये कंपनी मस्जिद में परिवर्तित हो जाती है! इस कंपनी में हिन्दुओं को पैर तक नही रखने दिया जाता. भारत में होने के बावजूद इसमें कोइ हिंदू काम नहीं कर सकता.''


क्या है सोशल मीडिया पर वायरल मैसेज का सच ?
वायरल मैसेज का सच जानने के लिए एबीपी न्यूज़ ने हमदर्द के हेडऑफिस, गाजियाबाद की यूनिट जहां रूह अफजा बनाया जाता और गुड़गांव से सटे मानेसर जहां हमदर्द ने अपना नया प्लांट शुरू किया, तीनों जगह पड़ताल की.


हमदर्द दवा खाने के हेडऑफिस पहुंची हमारी टीम ने जब रिसेप्शन पर वहां पहुंचने का मकसद बताया तो उन्होंने बिना अप्वाइंटमेंट बात करने से ही इंकार कर दिया. इसके बाद हमने फिर कोशिश की और हमदर्द के एडमिन यानि प्रशासनिक प्रमुख से बात की उन्होंने साफ कहा कि इस मुद्दे पर कोई बात नहीं करेगा. हमारे बार-बार रिक्वेस्ट करने पर ये कहा गया कि दोपहर 12 बजे बोर्ड के अधिकारी के आने के बाद ही कोई फैसला होगा. हमने फिर इंतजार करना शुरू किया.


इस बीच हमारी दूसरी टीम गाजियाबाद की यूनिट पहुंच चुकी थी. ये गाजियाबाद के इंडस्ट्रियल इलाके में बनी हमदर्द की फैक्ट्री है जहां रूह अफजा और साफी बनती है. हमने गेट पर पूछताछ की लेकिन गेट पर मौजूद गार्ड ने हमें अंदर नहीं जाने दिया. हम फैक्ट्री के बाहर नान के ठेले पर इस उम्मीद से रुक गए कि जब फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर बाहर आएंगे तो हम उनसे मैसेज का सच पूछ पाएंगे.



लंच के वक्त भी जब मजदूर बाहर नहीं आए तो अपने ठेला लगाने वाले अनिल कश्यप से वजह पूछी तो पता चला कि मजदूर एक बार ही बाहर आते हैं वो शाम को. दिल्ली के हेड ऑफिस में बोर्ड के अधिकारी से बात करने के लिए और गाजियाबाद में मजदूरों से बात करने के लिए दोनों जगह हमारे संवाददाता इंतजार कर रहे थे.


इस बीच हमने इंटरनेट पर कुछ सुराग तलाशने की कोशिश की.हमदर्द की वेबसाइट पर पहुंचकर हमने कंपनी में काम करने वाले लोगों के बारे में खंगाला शुरू किय़ा. तलाश करते हुए हमारी नजर एक नाम पर पड़ी जो हमारे लिए किसी सुराग से कम नहीं था.


हमदर्द की वेबसाइट पर किसी इवेंट का जिक्र किया गया था और इवेंट से जुड़ी जानकारी के लिए एक शख्स का नाम और नंबर दिया गया था. कॉन्टेक्ट डिटेल में लिखा था- सुशील मनसोतरा हेड ऑफ एक्सपोर्ट.नाम से आपको ये तो पता ही चल गया होगा की ये मुस्लिम नहीं है. यानि हमें हमदर्द कंपनी में पहला हिन्दू कर्मचारी तो मिल चुका था.


हमदर्द की इसी वेबसाइट पर हमें एक और नाम मिला जो कि अमित तनेजा का था. अमित तनेजा हमदर्द कंपनी के एसिस्टेंट जनरल मैनेजर है. इसके बाद हमें हमदर्द लैब में करने वाले संजय सिंह सिंह नाम के शख्स मिले. इसके बाद भी हमने अपनी पड़ताल को एक कदम आगे बढ़ाया. हमने गाजियाबाद की फैक्ट्री में काम करने वाले मजूदूरों से बात मजदूरों ने बताया कि फैक्ट्री में हिन्दू और मुस्लिम दोनों काम करते हैं.


इसके बाद भी हमने अपनी पड़ताल जारी रखी. एबीपी न्यूज़ हमदर्द के एड एंड सेल्स और मार्केटिंग हेड मंसूर अली से बात की. मसूर अली ने बताया, ''जो लोग भी ऐसी सोच रखते हैं उनको मैं आमंत्रित करता हूं कि आप हमारी कंपनी और फैक्ट्री में आए और देखें. हमारे जो सारे एचओडी और मैनेजर हैं जो व्यापार को संभालते है, सीनियर लेवल के जो भी लोग है उसमें तो उल्टा है यानी ज्यादातर लोग गैरमुस्लिम हैं. हमदर्द में लोगों को उनकी परफार्मेंस और एक्सपीरियेंस के ऊपर लिया जाता है. कंपनी में कितने हिंदू और कितने मुस्लिम काम करते हैं इसका डेटा तो हमने कभी निकाला नहीं लेकिन निकाला जाए तो पता चला कि सारे पोस्ट पर हर तरह के लोग है.''


हमारी पड़ताल में हमदर्द को लेकर वायरल मैसेज पूरी तरह झूठा साबित हुआ है.


जानना जरूरी: क्या है हमदर्द दवाखाने का इतिहास?
दिल्ली के चांदनी चौक में आसफ अली रोड पर बना हमदर्द का हेड ऑफिस है. 111 साल पहले 1906 में विभाजन से पहले सिर्फ एक दवाखाना था हमदर्द. इसकी शुरुआत हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने की थी. ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर में दिख रहा ये हमदर्द का दवाखाना है. पुरानी दिल्ली की गलियों में छोटा सा यूनानी दवाखाना अब बड़ा नाम बन चुका है.