THE GHAZI ATTACK: हकीकत या फिर काल्पनिक कहानी!
नई दिल्ली: फरवरी 2016 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ तत्कालीन नौसेना प्रमुख एडमिरल आर के धवन का जहाज ‘आईएफआर’ के दौरान विशाखापट्टनम के करीब बंगाल की खाड़ी में ठीक वहां से गुजरा जहां पर पिछले 45 सालों से पाकिस्तानी पनडुब्बी, 'पीएनएस गाज़ी' का मलबा दबा हुआ था. वो एक सैन्य-प्रतीक था कि दुश्मन के सबसे ताकतवर हथियार के मलबे के ऊपर से किसी देश के सुप्रीम कमांडर और शीर्ष राजनैतिक और सैन्य नेतृत्व गुजर रहा है या यूं कहें कि कुचलता जा रहा है. ये दुश्मन को एक कड़ा संदेश था. एक बार फिर अपने दुश्मनों को आगह करना कि अगर हमारे देश की सीमाओं में घुसने की कोशिश की तो उसका अंजाम ठीक वैसा ही होगा जैसा कि 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की पनडुब्बी, 'पीएनएस गाज़ी' का हुआ था.
दरअसल, फरवरी 2016 में भारतीय नौसेना ने इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू (यानि आईएफआर) नाम से एक अंतर्राष्ट्रीय सैन्य समारोह आयोजित किया था. नौसेना के पूर्वी कमान के अंतर्गत हुए इस समारोह में करीब 50 देशों की नौसेनाओं ने शिरकत की थी. इन देशों में दुनिया की सबसे बड़ी नौसेनाओं में से एक अमेरिका, रशिया, ब्रिटेन इत्यादि शामिल थीं. इस समारोह के जरिए भारत ने दुनिया को ये तो दिखाया है कि मित्र-देशों की नौसेनाओं से कैसे (मजबूत) रिश्ते हैं तो दूसरी तरफ दुनिया को अपनी सैन्य ताकत का परिचय भी दिया. समारोह में भारतीय नौसेना के सभी युद्धपोत, पनडुब्बी, लड़ाकू विमान और एयरक्राफ्ट कैरियर ने हिस्सा लिया था.
खुद एबीपी न्यूज भी नौसेना के निमंत्रण पर इस इंटरेनशनल मिलेट्री इवेंट की कवरेज के लिए पहुंचा था. जिस युद्धपोत पर एबीपी न्यूज की टीम कवरेज के लिए मौजूद थी, वो भी ठीक उसी जगह से गुजरा जहां पर पाकिस्तान की पनडुब्बी 'पीएनएस गाज़ी' का मलबा पड़ा था. बाकयदा वहां मौजूद नौसेना के अधिकारियों ने एबीपी न्यूज को इसकी जानकारी दी थी.
करीब एक साल पहले भारत के शीर्ष नेतृत्व का विशाखापट्टनम के करीब दुनियाभर के 50 देशों के युद्धपोतों की सलामी लेने के लिए ठीक वहां से गुजरना जहां पर आज भी कई सौ मीटर नीचे गाज़ी का मलबा पड़ा है और 1971 के युद्ध के बारे में हम बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कल यानि शुक्रवार को हिंदी फिल्म—‘द गाज़ी अटैक’ रिलीज हो रही है. फिल्म का ट्रेलर पहले ही सामने आ चुका है. ट्रेलर के सामने आने के बाद हर किसी के जेहन में यही बात कौंध रही है कि आखिर फिल्म में क्या दिखाया गया है. क्या ये गाज़ी सबमरीन के विशाखापट्टनम के करीब डूबने की सच्ची घटना पर आधारित है या फिर ये एक फिक्शन यानि काल्पनिक कहानी पर आधारित है (जैसाकि अधिकतर मुंबईया फिल्में होती हैं). या ऐसा तो नहीं कि फिल्म का थीम सच्ची घटना से तो लिया गया लेकिन उसमें तड़का मारने कि लिए काल्पनिक कहानी जोड़ दी गई है.
बरहाल हम यहां हम असली 'गाज़ी' पनडुब्बी से जुड़े तथ्य और कहानियों को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश कर रहे हैं. क्योंकि पाकिस्तान की गाज़ी पनडुब्बी की असली कहानी क्या है ये अभी भी एक बड़ा राज़ है. राज़ इसलिए क्योंकि भारत ने अभी भी 1971 के युद्ध के दस्तावेजों को ‘डिक्लासिफाइड’ नहीं किया है. यानी पाकिस्तान को किस तरह से भारत ने जल, थल और आकाश में मात दी थी, उसकी ‘आधिकारिक हिस्ट्री’ अभी लिखी जानी बाकी है. इसके मायने ये हैं कि युद्ध से जुड़े मिलेट्री दस्तावेज अभी सामने नहीं आए है, वे पूरी तरह से क्लासिफाइड हैं. यही वजह है कि पीएनएस गाज़ी को कैसे नेस्तनाबूत किया गया, इससे जुड़े सभी सीक्रेट दस्तावेज अभी भी साउथ ब्लॉक स्थित नौसेना मुख्यालय में कई तालों में बंद हैं.
भारतीय नौसेना के अधिकारियों का मानना है कि गाज़ी को उनके युद्धपोत, 'आईएनएस राजपूत' ने मार गिराया था. बावजूद आधिकारिक दस्तावेज दुनिया के सामने ना आने के चलते लोग इस थ्योरी को खारिज तो नहीं कर पाते लेकिन विश्वास कम करते हैं. हालांकि अभी तक नौसेना के जो दस्तावेज सामने आए हैं उसी ये बात जरुर साबित हो जाती है कि पाकिस्तान की सबमरीन कराची से जब विशाखापट्टनम के लिए निकली थी, उसे लगातार भारतीय नौसेना ट्रैक कर रही थी. ये भी बात नौसेना के ऑफिसयिल रिकॉर्ड से बाहर आ चुकी है कि भारतीय नौसेना ने एक ‘ट्रैप’ के जरिए गाज़ी को विशाखापट्टनम बुलाया था और पाकिस्तानी नौसेना इस ट्रैप में फंस भी गई थी.
पाकिस्तान की थ्योरी की बात हम आगे करेंगे लेकिन पहले उससे जुड़े तथ्यों को टटोल लेते हैं. पाकिस्तान ने इस सबमरीन को अमेरिका से खरीदा था. अमेरिका ने अपनी पुरानी पड़ चुकी पनडुब्बी को रिस्ट करने के बाद पाकिस्तान को बेच दिया था. उस वक्त पाकिस्तान के रिश्ते अमेरिका से बेहद अच्छे थे. अमेरिका पाकिस्तान का जमकर सैन्य सहयोग करता था, जैसे रशिया भारत का करता था.
1971 की जंग छिड़ने के बाद पाकिस्तान को बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) में काफी मुंह की खाना पड़ रही थी. भारत की नौसेना ने पूर्वी पाकिस्तान के तटीय शहर चटगांव (चित्तागोंग) और पर जमकर बमबारी की थी. पाकिस्तान को लगा कि अगर भारतीय नौसेना के विमानवाहक युद्धपोत, आईएनएस विक्रांत को मार गिराएगा तो युद्ध में भारत की धार काफी कम हो सकती है. बस इसी मकसद से पाकिस्तान ने अपनी पनडुब्बी, आईएनएस गाज़ी को एक सीक्रेट मिशन पर भेजा लेकिन ये पाकिस्तान की एक बड़ी चूक थी. क्योंकि भारतीय नौसेना पाकिस्तान की सभी चाल पर पैनी नजर रख रही थी. पाकिस्तानी नौसेना के अधिकारियों के रेडियो मैसेज भारत में सुने जा रहे थे. यही वजह है कि जैसे ही गाज़ी को कराची से विशाखापट्टनम की तरफ कूच करने का आदेश मिला, भारतीय नौसेना ने उसे ट्रैक करना शुरू कर दिया.
यहां बताना भी दिलचस्प है कि गाज़ी जिस विक्रांत को 'डुबाने' के लिए कराची हार्बर से निकली थी, वो विशाखापट्टनम में मौजूद नहीं था. रिफिट के लिए विक्रांत मद्रास (अब चेन्नई) गया हुआ था. यहीं से इस बात को बल मिलता है कि गाज़ी को भारतीय नौसेना ने डूबाया था. कैसे? आगे पढ़िए.
बताते हैं कि उस वक्त भारतीय नौसेना ने सिविल टेलीफोन पर बातचीत करनी शुरू कर दी. भारत के सैन्य अधिकारियों जानते थे कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां उनके फोन टैप कर रही होंगी. इसीलिए उन्होनें जानबूझकर ये आपसी बातचीत में ये बात फैलाना शुरू कर दी कि विक्रांत विशाखापट्टनम में है. बस फिर क्या था, गाज़ी श्रीलंका होते है बंगाल की खाड़ी से विशाखापट्टनम पहुंचने लगी. इस आस में कि विक्रांत विशाखापट्टनम हार्बर में खड़ा होगा और उसे समंदर के नीचे ही टॉरपीडो (मिसाइल) से मार गिराएगी. समंदर की लड़ाई में पनडुब्बी को सबसे घातक हथियार माना जाता है. माना भी जाता है कि सबमेरिन 'साईलेंट बट सॉलिड लीथल वैपेन' होती है. लेकिन सैन्य इतिहास में ये पहली (और आखिरी) घटना थी जहां पनडुब्बी को भी चकमा देकर ट्रैप में फंसा लिया गया.
यहां से आगे भारतीय नौसेना के दस्तावेज और इतिहास चुप्पी साध जाते हैं. जाहिर है कि जबतक 1971 युद्ध का आधिकारिक इतिहास नहीं लिखा जाता तबतक से गाज़ी के डूबने की कहानी एक मिस्ट्री बनी रहेगी.
बताते हैं कि गाज़ी जब विशाखापट्टनम तट पर पहुंची तो विक्रांत वहां नहीं था. लेकिन रात के घुमेर अंधेरे में जब पनडुब्बी विशाखापट्टनम हार्बर से करीब डेढ़ नॉटिकल मील बाहर निकल आई तो वहीं बंगाल की खाड़ी में उसमें एक जोरदार धमाका हुआ और उसकी कब्र वही समंदर की गहरी तल में बन गई. 1971 युद्ध के 45 साल से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन गाज़ी का मलबा नहीं पड़ा है--भारत के लिए गाज़ी किसी वॉर-ट्राफी से कम नहीं है.
लेकिन पाकिस्तान का दावा है कि गाज़ी एक दुर्घटना का शिकार हुई थी. पनडुब्बी मेॉ कोई तकनीकी खराबी होने को चलते उसमें धमाका हुआ था और वहीं ढेर हो गई थी. कुछ लोगों का माना़ना है कि जब गाज़ी विशाखापट्टनम हार्बर में एंट्री कर रही थी तो उसमें भारतीय युद्धपोतों के लिए समंदर में मांईंस यानी बारूदी सुरंग बिना दी थी. लेकिन हार्बर से लौटती वक्त वो इन्हीं बारुदी सुरंग का शिकार हो गई थी.
ऐसे में भारतीय नौसेना के रिटायर्ड अधिकारी, वाइस एडमिरल जी एम हीरानंदानी ने जो अपनी किताब, 'ट्रांजिशन टू ट्रायम्फ' में लिखा है वो काफी हद तक सही लगता है कि "सच्चाई भारत और पाकिस्तान के वर्जन के बीच में कहीं पर हैं". लेकिन कौन इस सच्चाई के कहा पर और कितनी दूर (या पास) है ये अभी भी एक बड़ा राज़ है. यही वजह है कि हिंदी फिल्म, द गाज़ी अटैक में कितनी सच्चाई है और कितना फिक्शन कहना बेहद मुश्किल है.