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राम रहीम के साध्वियों को सुसाइड बम बनाने वाले कॉन्ट्रैक्ट का सच

दावा ये है कि बाबा अपने डेरे में रहने वाली साध्वियों को सुसाइड बॉम्बर बनाने का काम भी करता था. दावा है कि डेरे की साध्वियों को ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है कि वो बाबा राम रहीम के नाम पर मरने को तैयार हो जाती हैं.

नई दिल्ली: डेरा सच्चा सौदा के मुखिया गुरमीत राम रहीम 20 साल के लिए सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं लेकिन राम रहीम के अंदर जाते ही उससे जुड़े दावे और कहानियां बाहर आने लगी हैं. सबसे ताजा और चौंकाने वाला दावा ये है कि बाबा अपने डेरे में रहने वाली साध्वियों को सुसाइड बॉम्बर बनाने का काम भी करता था. दावा है कि डेरे की साध्वियों को ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है कि वो बाबा राम रहीम के नाम पर मरने को तैयार हो जाती हैं.

इतना ही नहीं दावे के मुताबिक बाबा राम रहीम बाकायदा एक कॉन्ट्रैक्ट तैयार करवाते हैं जिसमें साध्वियां अपनी मर्जी से इस बात को स्वीकार करती हैं कि अगर किसी भी वजह से उनकी मौत हो गई तो उसकी जिम्मेदारी बाबा राम रहीम या फिर डेरे की बिल्कुल नहीं होगी.

वायरल हो रहे हलफनामे में क्या लिखा है? हलफनामे में सबसे ऊपर बयान देने वाली महिला का नाम है. सिरसा के प्रीत सागर गांव की रहने वाली सुनीता की उम्र 33 साल बताई गई है. इसके बाद नीचे लिखा है, ''डेरा सच्चा सौदा की रहनुमाई में मानवता की सेवा के लिए कहीं जाऊंगी तो इस मकसद के लिए मेरे ऊपर कोई दबाव नहीं है. किसी भी सेवा में अगर किसी हादसे में मेरी लापरवाही या किसी अन्य कारण से मेरी मौत हो जाती है, तो उसकी जिम्मेदार मैं खुद होऊंगी.. इसमें और किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं है और ना ही डेरा सच्चा सौदा संस्था जिम्मेदार होगी. मेरा कोई भी वारिस, माता-पिता व पत्नी-पति और बच्चे या मेरा कोई भी रिश्तेदार मेरी मौत संबंधी डेरा सच्चा सौदा, सिरसा के खिलाफ कार्रवाही करने का हकदार नहीं होगा.''

और क्या लिखा है हलफनामे में ? इतना ही नहीं इन हलफनामो में एक हलफनामा ऐसा भी है जो सीबीआई से बचने के लिए बाबा की प्लानिंग की तरफ इशारा कर रहा है. जिसमें साध्वी ने साइन करके इस बात पर मुहर लगाई कि वो बाबा को बचाने के लिए अपनी जान दे देगी.

हलफनामे में लिखा है, ''मैंने अपनी मर्जी और बिना किसी दबाव के यह फैसला किया है कि जब तक केंद्रीय जांच ब्यूरो विभाग डेरे के प्रमुख, डेरे के प्रबंधक, डेरे के साधुओं, डेरे के सेवादारों, डेरे के श्रद्धालुओं को फंसाने की साजिश को नहीं छोड़ते तब तक मैं भूख हड़ताल पर बैठूंगा/बैठूंगी और कुछ भी नहीं खाऊंगा/खाऊंगी. बेशक मेरा जीवन भी समाप्त क्यों ना हो जाए. अगर ऐसा करते हुए मेरा जीवन समाप्त हो जाता है तो ये मेरे खुद की और बिना किसी बाहरी दबाव के फैसले के अनुसार ही होगा. जिसका कोई व्यक्ति विशेष या संस्था जिम्मेदार नहीं होगी. बल्कि इसकी सारी जिम्मेदारी केंद्रीय जांच ब्यूरो और सरकार की होगी.''

क्या है दावे का सच, एबीपी न्यूज़ ने की पड़ताल ? एबीपी न्यूज़ ने अपनी बात दो स्तर पर शुरू की. एक तरफ हम हलफनामा जारी करने वाली महिलाओं को ढूंढने लगे. जिनका सिर्फ नाम था चेहरा नहीं. डेरा के आस-पास के इलाकों में भी छान-बीन की ताकि हलफनामे में किए जा रहे दावे की पुष्टि हो पाए. दिन भर की मशक्कत की बाद हलफनामे में जिन महिलाओं का नाम था हम उनके घर तक पहुंच गए थे लेकिन महिला या उसके परिवार वालों ने बात करने से साफ इंकार कर दिया. राम रहीम के गुंडो का डर इतना ज्यादा है कि परिवार वालों ने हमें कैमरा तक गाड़ी से नहीं निकालने दिया.

इसके बाद हमने पड़ताल को आगे बढ़ाया तो हमें एडवोकेट लेखराज ढोट मिले. लेखराज ही रामचंद्र हत्या मामले के वकील हैं वहीं रामचंद्र जो एक पत्रकार थे और राम रहीम की पोल खोली थी. आरोप है कि इसी वजह से राम रहीम ने रामचंद्र की हत्या करवा दी थी. लेखराज ने इन हलफनामों के बारे में चौंकाने वाला खुलासा किया.

एडवोकेट लेखराज ने कहा, ''सीबीआई के अफसरों को परेशान करने के लिए इस हलफनामे लिखा गया कि अगर डेरा प्रमुख को परेशान किया गया तो खुद को नुकसान पहुंचा लेंगे. ऐसे हलफनामों को दबाव बनाने के लिए हजारों की तादात में गृह मंत्रालय तक भेजा गया.''

ऐसे हलफनामों पर साइन सिर्फ साल 2005 में ही नहीं बल्कि 2017 में भी करवाया गया है. और एडवोकेट लेखराज खुद इसकी गवाही दे रहे हैं. एडवोकेट लेखराज ने बताया कि फैसले के बाद हुई हिंसा के लिए भी इस तरह के हलफनामे जमा करवाए गए.

क्या हलफनामे की कानूनी मान्यता है ? राम रहीम के डेरे द्वारा साइन करवाए गए हलफनामे की कानूनी मान्यता जानने के लिए हमने वरिष्ठ वकील अनिल सूद से बात की. अनिल सूद ने बताया, ''इसमें सात जगह करेक्शन हैं और एक भी जगह काउंटर साइन नहीं है 2005 से अगर डेरा ऐसे बयान ले रहा है तो इससे उसकी मैलाफाइड मंशा जाहिर होती है.ये हलफनामा भक्तों से इसलिए लिया जाता होगा ताकि डेरे के किसी गलत काम के खिलाफ कोई क्लेम आने पर निपटा जा सके. ये टाइप नहीं है प्रिंटेड है. डेरा की ओर ऐसा प्रिंटेड हलफनामा छपवाया गया होगा ताकि जो भी आता जाय उससे भरवाया जा सके.'' पड़ताल में एक बात साफ हुई कि राम रहीम और उनकी टीम अपने भक्तों से ये जो हलफनामा साइन करवाती है वो कानूनी रूप से वैध नहीं है.

एबीपी न्यूज़ की पड़ताल में क्या पता चला ? एबीपी न्यूज़ की पड़ताल के मुताबिक राम रहीम ने गिरफ्तारी से बचने के लिए औऱ दबाव बनाने के लिए बड़ी संख्या में ऐसे हलफनामे साइन करवाए थे. हलफनामे 10 रूपए के नीचे के नहीं बनते इसलिए इसी हलफनामा नहीं कह सकते,इसे सिर्फ बयान की तरह देखा जाएगा.

राम रहीम को पहले से सजा होने की आशंका थी इसलिए उसने य़े योजना तैयार की थी. राम रहीम की टीम ने एक फॉर्मेट तैयार कर रखा था और जरूरत के हिसाब से लोगों से साइन करवा लिया करता थे. कई लोगों को तो ये पता तक नहीं होता था कि वो किस दस्तावेज पर साइन कर रहे हैं. हमारी पड़ताल में साध्वियों को सुसाइड बम बनाने वाले कॉन्ट्रैक्ट का दावा सच साबित हुआ है.

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