नई दिल्ली: राम मंदिर पर फैसले की घड़ी टिक टिक करने लगी है, पूरा देश दिल थाम कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा है. फैसले से पहले हिंदू और मुस्लिम पक्ष ने शांति अमन चैन भाईचारा बनाए रखने की अपील की है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस को लगता है फैसला हिंदुओं के पक्ष में आएगा लेकिन फैसले के बाद न तो विजय जुलूस निकाला जाना चाहिए और न ही कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे देश का सामाजिक धार्मिक सौहार्द बिगड़े.
उधर मुस्लिम मौलवी भी अपील कर रहे हैं कि जीतने वाले को विजय जुलूस नहीं निकालना चाहिए और हारने वाले को विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर नहीं उतरना चाहिए. यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने 'बयानवीरों' से संयम बरतने की अपील की है. बयानवीरों से योगी के साथ साथ प्रधानमंत्री मोदी भी परेशान है. महाराष्ट्र चुनावों के समय अपनी रैली में उन्होंने इस तरफ संकेत भी दिय थे.
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राम मंदिर पर फैसले से पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत अलग अलग धर्मों के लोगों से मिल रहे हैं. फैसले के बाद पाकिस्तान भारत में माहौल खऱाब करने की साजिश कर सकता है. इसके लिए जहां खुफिया एजेंसियों को सतर्क रहना होगा वहीं हिंदु मुस्लिम पक्षों को आपसी विश्वास बढ़ाना होगा. इस बात को अयोध्या के लोग ज्यादा समझ रहे हैं जिनका कहना है कि चाहे जो फैसला हो राम की नगरी अयोध्या में भाईचारा बना रहना चाहिए.
क्या हो सकते हैं राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के संभावित फैसले?
- मीडिया में चल रहा है कि संभावित फैसले क्या हो सकते हैं. पहली संभावना की बात करें तो हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले पर ही मुहर लगा दे. हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन के तीन बराबर के टुकड़े किए थे. निर्मोही अखाड़े को एक तिहाई , राम लला विराजमान को एक तिहाई और बचा हुआ एक तिहाई सुन्नी वक्फ बोर्ड को.
- दूसरी संभावना की बात करें तो हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट आर पार का फैसला करे. जो हिंदु पक्ष का भी हो सकता है और मुस्लिम पक्ष भी.
- तीसरी संभावना की बात करें तो सवाल 2.77 एकड़ यानि 1500 वर्ग गज के मालिकाना हक का है जिसके कागजात किसी भी पक्ष में नहीं है. बात आस्था की हो रही है जिसके लिए कोई तर्क नहीं दिया जा सकता. इसे ध्यान में रखते हुए हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट हिंदु पक्ष को तरजीह दे.
- चौथी संभावना पर भी नजर डाल लेते हैं. कुछ जानकारों का कहना है कि हो सकता है सुप्रीम कोर्ट पल्ला झाड़ ले और 1500 वर्ग जमीन केन्द्र सरकार को देते हुए केन्द्र से ही अंतिम फैसला लेने को कहे. हालांकि इसकी संभावना बहुत कम बताई जा रही है.
- पांचवीं संभावना है कि हो सकता है इनसब से हटकर सुप्रीम कोर्ट कोई ऐसा फैसला कर सकता है जो इस तरह के आस्था से जुड़े विवादित मामलों में नजीर बने.
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चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नंवबर को रिटायर हो रहे हैं उस दिन रविवार है और 16 को शनिवार है, यानी दोनों दिन कोर्ट बंद है. जाहिर है कि फैसला इससे पहले ही आना है. चीफ जस्टिस गोगोई फैसले का जो दिन तय करेंगे उसकी जानकारी एक दिन पहले देर शाम तक मिल जाएगी. कितने बजे फैसला सुनाया जाएगा ये जानकारी भी मिल जाएगी.
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चीफ जस्टिस जब फैसला सुनाने बैंठेगे तो वो अकेले नहीं होंगे. उनके साथ पांच जजों की पूरी बेंच होगी जो इस मुकदमें को सुनती रही है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई अपने फैसले में बताएंगे कि पांच जजो की बैंच किस निर्णय पर पहुंची है . वो ये भी बताएंगे कि किस जज ने क्या फैसला दिया है और उनका खुद का व्यक्तिगत फैसला क्या है. वो ये भी बताएंगे कि फैसला 5-0 यानि सर्वसम्मति से लिया गया है या 4-1 से या 3-2 से. यहां ये भी हो सकता है कि बाकी के चार जज भी खुद ही बताएं कि उनका फैसला क्या रहा है और क्यों रहा है.
फैसले से नाखुश पक्ष के पास क्या विकल्प होंगे?
सवाल उठता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाखुश पक्ष के पास क्या विकल्प रह जाएंगे ? नाखुश पक्ष अब रिव्यू पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में दायर करेगा. इस रिव्यू पिटीशन को वही बेंच सुनेगी जो मामले की सुनवाई पहले कर चुकी है यानि पांच जजों की बैंच होगी. पहले ये बैंच अपने चैंम्बर में सुनेंगे और तय करेंगे कि रिव्यू पिटीशन सुनवाई के योग्य है या नहीं. अगर सुनवाई के योग्य माना गया तो फिर खुली अदालत में सुनवाई होगी. दोनों पक्षों के पास अगर कोई नयी दलीलें हैं तो उन्हें सुना जाएगा.
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यहां भी अगर नाखुश पक्ष के खिलाफ फैसला आता है तो क्या होगा. ऐसे में कोई वरिष्ठ अधिवक्ता चीफ जस्टिस के सामने क्यूरेटिव पिटीशन दायर करेंगे. इस में कहा जाएगा कि पिछले फैसले में फलां फलां खामियां थीं जिसका कोई कोई इलाज अदालत निकालने की तकलीफ करे. चीफ जस्टिस इस पर नई बेंच बनाएंगे जो कम से कम पांच जजों की होगी. वो बैंच क्यूरेटिव पिटीशन पर फैसला करेगी. यहां दोनों पक्षों को जरुरी नहीं है कि बुलाया जाए.
मान लीजिए कि क्युरेटिव पिटीशन पर भी नाखुश पक्ष को निराशा हाथ लगे तो क्या होगा. ऐसे में एमरजेंसी पिटीशन का सहारा लिया जाएगा जो अंतिम हथियार होगा. यहां भी नाखुश पक्ष के खिलाफ फैसला होता है तो उसके पास आगे कोई विकल्प नहीं रह जाएगा.
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