नई दिल्ली: कुछ साल पहले की बात है, दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित एक नामी बड़े विदेशी फूड चेन के रेस्टोरेंट में धोती-कुर्ता पहने व दाढ़ी बढ़ाये एक व्यक्ति अपने नाती-पोतों के साथ घुसा. उस रेस्टोरेंट में उसके खाने लायक कोई चीज थी नहीं, तो वहीं गलियारे में टहलने लगा. प्यास लगने पर उसने वेटर से पानी मांगी.


रेस्टुरेंट के काउंटर पर खड़े व्यक्ति कहने लगा कि यहां पानी नहीं सिर्फ कोक मिलता है. इस पर उस व्यक्ति कहने लगा कि यह कैसा रेस्टोरेंट है जहां पीने को पानी तक नहीं है. यह तो रेस्टोरेंट के मानक के है. इतना सुनते ही रेस्टोरेंट के काउंटर पर बैठा आदमी उस बुजुर्ग पर बिगड़ गया.


वेश भूषा से गांव का आदमी जैसा दिखने वाले को आम आदमी समझ कर उसे इग्नोर किया. पर उस आदमी ने अपना सवाल करना जारी रखा. देखते ही देखते शोर बढ़ने लगा. रेस्टोरेंट के बाहर खड़ी पुलिस अंदर आ गई. संचालक देखकर अवाक् रह गया कि पुलिस को किसने बुलाया.


आपको बताते चलें कि बाहर लाल बत्ती वाली गाड़ी खड़ी थी, और रेस्टोरेंट में केन्द्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह थे. रघुवंश बाबू ने इसकी शिकायत स्थानीय थाने और बड़े अधिकारियों से की और रेस्टोरेंट सील करने का आदेश दे दिया गया. इतना सुनते ही रेस्टोरेंट संचालक रघुवंश बाबू से हाथ जोड़कर ऐसा न करने की मिन्नतें करने लगा. काफी मान-मनौव्वल के बाद रघुवंश बाबू माने.


आज वही रघुवंश बाबू काल के गाल में समा गये. वहीं रघुवंश बाबू जो अपने दफ्तर की कुर्सी पर पालथी मारकर बैठते थे उन्हें कोरोना ने हम सबसे दूर कर दिया. पोशाक सफेद धोती, कुर्ता व गंजी. पैर में साधारण सी चप्पल. बातचीत का लहजा बिल्कुल ठेठ दिहाती. कुछ ऐसे थे रघुवंश बाबू.


जमीनी हकीकत से हमेशा रूबरू रहने वाले रघुवंश बाबू आम जनता के बीच ही रहते थे. बातों में सादगी, विचारों में सादगी, रहन-सहन में सादगी, या यूं कहें कि सादगी की प्रतिमूर्ति. रघुवंश बाबू की जीवन शैली ऐसी कि दूर से जानने वाला कई बार उन्हें अनपढ़ देहाती समझने की गलती कर जाता था.


लेकिन गणित में पीएचडी रघुवंश बाबू को मनरेगा का जन्मदाता कहा जाता है. भारत में बेरोजगारों को साल में 100 दिन रोजगार मुहैया कराने वाले इस कानून को ऐतिहासिक माना गया था. कहा जाता है कि यूपीए दो को जब फिर से 2009 में जीत मिली तो उसमें मनरेगा की अहम भूमिका थी.


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