नई दिल्ली:  नीतीश कुमार जब भी उलझन में होते हैं, थर्मामीटर डाल देते हैं. मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर भी उन्होंने यही किया था. बिहार की यात्रा पर निकले नीतीश उन दिनों मधुबनी में थे. नोटबंदी पर उनकी राय जानने पत्रकार उनसे मिलने पहुंचे. नीतीश कुछ देर चुप रहे. फिर बोले आप लोग वहीं मेरी सभा में चलिए. जनता के सामने अपनी बात रखूंगा. यानि अपना थर्मामीटर रखूंगा. अगर वे नोटबंदी को सही मानते हैं तो फिर मेरे लिए भी ये सही है. ठीक ऐसा ही हुआ. नीतीश ने मंच से जब नोटबंदी का जिक्र किया, पब्लिक तालियां बजाने लगी. फिर उन्होंने मोदी सरकार के इस फैसले का समर्थन कर दिया.


जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार भी अब नीतीश कुमार की राह पर हैं. थर्मामीटर लेकर वे बिहार के गांव गलियों की खाक छान रहे हैं. बहाना CAA, NPR और NRC के विरोध का है. इसी बहाने कन्हैया पब्लिक का मूड भांप रहे हैं. वे जहां भी गए हजारों की भीड़ पहुंची. पश्चिमी चंपारण के भितिहरवा आश्रम से उन्होंने जन गण मन यात्रा शुरू की थी. ये बात 30 जनवरी की है. इसी जगह से एक सदी पहने महात्मा गांधी ने भी आंदोलन शुरू किया था. कन्हैया कुमार की सभाओं में खूब भीड़ जुट रही है. उनका इरादा बिहार के सभी जिलों में लोगों से मिलने का है. जन गण यात्रा पटना के गांधी मैदान में खत्म होगी. जहां 27 फरवरी को एक बड़ी सभा करने की तैयारी है. कांग्रेस के विधायक शकील अहमद खान भी उनके साथ रहते हैं. नागरिकता कानून के खिलाफ कन्हैया के मुस्लिम समाज का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है. कन्हैया की यात्रा पर प्रशांत किशोर की भी नजर है.

देर से ही सही तेजस्वी यादव भी बिहार की जनता के बीच आए. लेकिन उन्हें वो रिस्पॉन्स नहीं मिला, जैसा कन्हैया और उनकी टीम को मिल रहा है. नागरिकता कानून के खिलाफ तेजस्वी ने दो सभाएं की. NPR और NRC को लेकर विरोध कहां तक हो, इस पर भी राष्ट्रीय जनता दल में एक राय नहीं हैं. पार्टी के कुछ बड़े नेता केजरीवाल फॉर्मूले पर चलना चाहते हैं. मतलब सॉफ्ट हिंदुत्व पर. उन्हें लगता है खुल कर विरोध करने पर पार्टी को हिंदू वोटरों का नुकसान हो सकता है. इसी लिए तय हुआ कि CAA और NRC को लेकर जनता के बीच ना जायें. इसीलिए 23 फरवरी से शुरू हो रही तेजस्वी की यात्रा को बेरोजगारी हटाओ यात्रा नाम दिया गया. लालू यादव के जेल में रहने से आरजेडी की मुस्लिम समाज में अब वैसी अपील नहीं रही.

तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी चिंता यही है. अगर वे अपना परंपरागत मुस्लिम यादव वोट बैंक नहीं बचा पाए. तो फिर राष्ट्रीय जनता दल के लालटेन की लौ कम हो सकती है. इस पूरे परिदृश्य में असदुद्दीन ओवैसी का जिक्र जरूरी है. हाल में हुए विधानसभा उप चुनाव में उनकी पार्टी खाता खोल चुकी है. बिहार के सीमांचल इलाके के मुस्लिम समाज में ओवैसी ने ठीक ठीक पकड़ बना ली है. ऐसे में बीजेपी जेडीयू गठबंधन और आरजेडी से अलग एक तीसरे विकल्प की सुगबुगाहट शुरू हो गई है. प्रशांत किशोर कह चुके हैं कि ना तो वे नीतीश के लिए काम करेंगे, ना ही तेजस्वी यादव के लिए. कन्हैया के बहाने बिहार में एक तीसरा मोर्चा खड़ा करने की तैयारी तो नहीं हो रही है ? सरसरी निगाह से देखें तो ऐसा होने पर बीजेपी जेडीयू गठबंधन का फायदा ही है. लेकिन राजनीति में दो जोड़ दो हमेशा चार नहीं होता है.


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