नई दिल्ली: सीमा पर तनाव खत्म करने के लिए सोमवार को भारत और चीन के कोर कमांडर स्तर की अहम बैठक एलएसी पर चल रही है. दोनों देशों के कोर कमांडर्स के बीच ये दूसरी बड़ी बैठक है. पहली बैठक 6 जून के हुई थी. ये मीटिंग इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि ये गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष के बाद हो रही है.


भारत की तरफ से लेह स्थित 14वीं कोर के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं. जबकि चीन की तरफ से दक्षिणी शिंचियांग मिलिट्री डिस्ट्रिक के कमांडर, मेजर जनरल लियु लिन हैं. मीटिंग वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर चीन की तरफ मोलडो में बनी बॉर्डर पर्सनैल मीटिंग (बीपीएम) हट में चल रही है, जो भारत की चुशूल स्थित बीपीएम हट से सटी हुई है.


पैंगोंग त्सो लेक से मोलडो की दूरी करीब 18 किलोमीटर है. क्योंकि चीन ने इस बैठक का अनुरोध किया है, ऐसे में ये चीन की तरफ वाली बीपीएम हट में हो रही है.

आपको बता दें कि इस मीटिंग में भारत की तरफ से मुख्य मुद्दा फिंगर एरिया को लेकर है. क्योंकि मई महीने के शुरूआत से दोनो देशों की सेनाओं के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (यानी एलएसी) पर जो फेसऑफ चल रहा है, उसमें सबसे ज्यादा तनाव पैंगोंग-त्सो लेक से सटे फिंगर एरिया में ही है. क्योंकि 1962 के युद्ध के बाद से ही ये इलाका दोनों देशों के बीच विवादित रहा है. ऐसे में इस इलाके में किसी भी तरह का डिफेंस-फोर्टिफिकेशन यानी पक्के बंकर या फिर सैनिकों के बैरक इत्यादि नहीं बनने चाहिए.



लेकिन मई महीने की शुरूआत में तनाव शुरू होने के तुरंत बाद से ही चीनी सेना ने फिंगर-5 एरिया में ना केवल बैरक बना लिए, बल्कि एक हेलीपैड भी तैयार कर लिया है. ऐसे में भारतीय सेना मीटिंग के दौरान ‘स्टेटस-कयो’ यानी अप्रैल महीने की शुरूआत वाली स्थिति बनाने पर जोर दे रही है.


फिंगर एरिया में असल विवाद 1999 से शुरू हुआ था. भारत जब पाकिस्तान से करगिल युद्ध लड़ रहा था, तब चीन ने इस एरिया में पैट्रोलिंग करने के बहाने फिंगर 8 से लेकर 5 तक एक सड़क बना ली थी. उस वक्त भारत क्योंकि पाकिस्तान से जूझ रहा था इसलिए कोई खास एतराज नहीं जताया गया. क्योंकि तब चीन ने वहां अपना कोई बंकर या चौकी नहीं बनाई थी. लेकिन इस साल मई महीने की शुरूआत में चीन ने पहले इस‌ 1999 वाली सड़क की ब्लैक टॉपिंग का बहाना बनाया और फिर यहीं आकर जम गया. चीनी सेना ने भारतीय सैनिकों को फिंगर 4 से आगे पैट्रोलिंग नहीं करने दी.


ऐसे में भारतीय सैनिक एक नए ट्रैक से फिंगर 7 तक पैट्रोलिंग करने लगे. ये ट्रैक हॉट स्प्रिंग के करीब गोगरा पोस्ट से फिंगर 7 पर निकलता था. इस ट्रैक से आने के लिए पैंगोंग त्सो लेक और फॉबरांग जाने की जरूरत नहीं होती है. लेकिन ये नया ट्रैक काफी कठिन है और उंचे पहाड़ों से होकर गुजरता है. इस नए ट्रैक से चीन और अधिक भन्ना उठा. उसने फिंगर पांच से लेकर गोगरा से आने वाले ट्रैक पर अपने सैनिक तैनात कर दिए. फिंगर 8 से 5 तक की दूरी करीब 8 किलोमीटर की है. ऐसे ही नंबर 5 से गोगरा ट्रैक (7 नबंर तक) का दूरी करीब 7 किलोमीटर है. ऐसे में इस करीब करीब 60 वर्ग किलोमीटर के इलाके पर चीन ने गैर-कानूनी कब्जा कर लिया है. हालांकि ये 'डिफेक्टो' 1999 से चीन के पास ही था.


फिंगर-एरिया का मुद्दा इसलिए भी बेहद अहम है क्योंकि 5-6 मई को दोनों देशों के सैनिकों में यहां जबरदस्त भिड़ंत हुई थी. इस भिड़ंत में दोनो तरफ के कई दर्जन सैनिक घायल हुए थे. दोनों तरफ के सैनिकों ने हमला करने के लिए लाठी-डंडे से लेकर पत्थरबाजी तक की थी. गाड़ियों के शीशे तक तोड़ दिए थे. शुरूआत में भारतीय सैनिक कम थे, इसलिए चीनी सैनिक भारी पड़ गए थे. लेकिन बाद में भारतीय सेना ने अपनी रिइंफोर्समेंट भेजी तो, चीनी सैनिक अपनी आर्मर्ड गाड़ियां तक छोड़कर पास की पहाड़ियों में भाग खड़े हुए थे (जिसका वीडियो वायरल हुआ था).

पेंगोंग त्सो लेक से सटी कुल आठ (08) पहाड़ियां हैं, जो हाथ की उंगलियों के आकार की हैं. इसलिए इन पहाड़ियों को 'फिंगर एरिया' कहा जाता है. इस फिंगर एरिया में कुल आठ पहाडियां हैं. एक से लेकर चार नंबर तक की फिंगर पर भारत का अधिकार है, जबकि पांच से आठ पर चीन का कब्जा है. यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल, जिसे एलएसी भी कहा जाता है वो फिंगर 4 और 5 के बीच से होकर गुजरती है. लेकिन भारत की क्लेम लाइन यानी दावा 8 नंबर पहाड़ी तक है, ठीक वैसे ही जैसे चीन 2 नंबर तक करता है.


एबीपी न्यूज संवाददाता ने फौजी मैप देखें हैं, जिनमें भारत की एलएसी और क्लेम लाइन साफ दिखाई पड़ती है. ये क्लेम लाइन दरअसल, अक्साई चिन की सीमा से एलाईंड करती है. इसीलिए भारत अपना दावा 8 नंबर तक करता है, जैसाकि भारत अक्साई चिन पर करता है, जिसपर चीन ने '62 के युद्ध में कब्जा कर लिया था.



ये पूरा फिंगर एरिया विवादित क्षेत्र है यानी मिलेट्री भाषा में कहें तो ये दोनों देशों के बीच एक बड़ा 'फ्लैश पाइंट' ( Flash-Point) है. वर्ष 2017 में भी दोनों देशों के सैनिकों के बीच यहां एक झड़प हुई थी, जिसका वीडियो सामने आया था.


पेंगोंग लेक की दूरी लद्दाख के प्रशासनिक मुख्यालय, लेह से 150 किलोमीटर है. यहां तक पहुंचने के लिए दुनिया की दूसरी सबसे उंचाई वाली सड़क, चांगला पास (दर्रे) से गुजरना पड़ता है, जो करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर है. पेंगोंग लेक से गुजरने वाली एलएसी भी क्योंकि 'डिमार्केटेड' नहीं है, इसलिए कई बार चीनी सैनिक अपनी बोट्स को जानबूझकर भारत की तरफ लेकर आने की कोशिश करते हैं. यही वजह है कि भारतीय सैनिक और आईटीबीपी के जवान भी लेक में अपनी बोट्स से यहां गश्त लगाते हैं. एक बार तो दोनों देशों की बोट्स के टकराने की खबर आई थी.


करीब चौदह हजार (14300) फीट की उंचाई पर पेंगोंग-त्सो लेक की लंबाई 135 किलोमीटर है. भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल, जिसे एलएसी भी कहा जाता है, इसी विश्व-प्रसिद्ध झील के बीच से गुजरती है. 135 किलोमीटर लंबी इस झील का दो-तिहाई हिस्सा चीन के पास है और एक-तिहाई यानी 30-40 किलोमीटर भारत के पास है. तिब्बत की राजधानी, ल्हासा यहां से करीब डेढ़ हजार किलोमीटर की दूरी पर है, तो चीन की राजधानी तीन हजार छह सौ किलोमीटर. पैंगोंग लेक पर बाकायदा एक माईल-स्टोन लगा है जिसपर ये लिखा है.


हालांकि, 5-6 मई की झड़प के बाद दोनों देशों के लोकल कमांर्डस ने बातचीत के जरिए मामले को सुलझा जरूर लिया था, लेकिन चीनी सेना ने फिंगर एरिया 8 के पीछे अपने इलाके में लाइट-टैंक और आर्टलरी यानी तोपों को भी तैनात कर लिया है. इसके बाद भारतीय सेना ने भी फिंगर एरिया में मिरर-डिप्लोयमेंट की. यही वजह है कि यहां तभी से दोनों देशों के सेनाओं में तनाव बना हुआ है.


आज हो रही मीटिंग में गलवान घाटी और गोगरा पोस्ट के करीब चल रही तनातनी पर भी बातचीत होगी.