नई दिल्ली: महाराष्ट्र और हरियाणा के घोषणापत्र में बीजेपी ने विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने का वादा किया है. दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सावरकर को राष्ट्रवाद का चेहरा बनाकर पेश कर रही है. सावरकर का नाम सामने आते ही दो तरह की चर्चाएं होने लगती हैं. पहली बात ये कि सावरकर ने अंग्रेजों से कई बार माफी मांगी थी और दूसरी बात ये कि महात्मा गांधी की हत्या के पीछे सावरकर का हाथ था. हालांकि फरवरी 1949 में सावरकर को गांधी की हत्या के केस से बाइज्जत बरी कर दिया गया था लेकिन सावरकर के विरोधियों ने उन्हें हमेशा विलेन के तौर पर पेश किया.


पहली बार नहीं उठी भारत रत्न देने की बात
सबसे पहले तो आपको बता दें कि सावरकर को भारत रत्न देने की मांग पहली बार नहीं हुई है, 19 साल पहले दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी सिपारिश की थी. लेकिन तब राष्ट्रपति के आर नारायणन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया था. अब बीजेपी ने एक बार फिर इसका वादा किया है. वहीं इस पर कांग्रेस का कहना है कि महत्मा गांधी की हत्या में शामिल शख्स को सम्मानित कर सरकार क्या साबित करना चाहती है. ऐसे में आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर विनायक दामोदर सावरकर का सच है क्या है?


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नया नहीं है सावरकर पर छिड़ा सियासी संग्राम
सावरकर पर छिड़ा ये सियासी संग्राम नया नहीं है, कांग्रेस ने उन्हें हमेशा एक कट्टर हिंदूवादी नेता की छवि में कैद रखा. गांधी की हत्या से उनका नाम जोड़कर सावरकर की राजनीतिक विरासत को खत्म करने की कोशिश की लेकिन बीजेपी का एजेंडा दूसरा है. नरेंद्र मोदी के सत्ता में आते ही ये साफ हो गया था कि इतिहास की किताबों से गायब हो चुके विनायक दामोदर सावरकर एक बार फिर बाहर आएंगे. शपथ ग्रहण के साथ ही मोदी ने संसद भवन में लगी सावरकर की प्रतिमा के सामने फूल चढ़ाकर ये संदेश दे दिया था.


पीएम मोदी ने सावरकर की प्रशंसा में क्या कहा था?
पिछले साल पीएम मोदी अंडमान गए तो उस जेल में भी पहुंचे जहां सावरकर ने काले पानी की सजा काटी थी. पीएम मोदी ने जेल के हर हिस्से का मुआयना किया और फिर वो उस सेल में पहुंचे जहां सावरकर को रखा गया था. उस सेल में रखी सावरकर की फोटो को देखते ही मोदी बैठ गए और कई मिनटों तक हाथ जोड़कर वैसे ही बैठे रहे. पीएम मोदी ने कहा था, ''ये वीर सावरकर के ही संस्कार है जो राष्ट्रवाद के सिद्धांत को हमने राष्ट्रनिर्माण के मूल में रखा है. वहीं दूसरी तरफ कौन हैं, ये वो लोग हैं जो वीर सावरकर गालियां देते हैं, उनक अपमान करते हैं.''


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सावरकर ना कभी जनसंघ से जुड़े और ना ही आरएसएस से
आपको जानकर हैरानी होगी कि सावरकर जीवन भर न कभी जनसंघ से जुड़े और न ही आरएसएस से उनका कोई रिश्ता रहा. इसके बाद भी पूरा संघ परिवार अगर उनके सम्मान के लिए खड़ा होता है तो उसकी कोई न कोई वजह होगी और वो वजह है सावरकर की वो सोच जो सिर्फ राष्ट्र को आगे रखती थी. विरोधी भले ही सावरकर के नाम के साथ 'कायर' या फिर 'अंग्रेजों के एजेंट' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे हों लेकिन आज आपको वो सच जानना चाहिए जो सावरकर की दूर की सोच को समझाएगी.


सावरकर की दूर की सोच को इस घटना से समझिए
1939 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान इंग्लैंड घिर गया था, उन्हें भारतीय नौजवानों की जरूरत थी ताकि वो दूसरे देशों में जाकर युद्ध कर सकें. कांग्रेस इसके खिलाफ थी लेकिन सावरकर ने इसे एक मौके की तरह देखा. उस वक्त भारतीय सेना में मुसलमान सैनिकों की तुलना में हिंदू सैनिकों का अनुपात कम था. सावरकर ने देशभर की यात्रा कि और हिंदू और सिखों से सेना में भर्ती होने की अपील की. सावरकर का मानना था इससे उन्हें हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी मिलेगी.


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सावरकर ने उस वक्त कहा था, ''आज ब्रिटिश सरकार की मजबूरी है कि वो आपके हाथों में हथियार और गोला बारूद सौंप रही है, पहले आपको पिस्तौल रखने पर कारावास हो जाता था लेकिन आज अंग्रेज आपको रायफल, मशीनगन, तोप दे रहे हैं. आप पूर्ण प्रशिक्षित सैनिक और सेनानायक बनो. पानी के जहाज और लड़ाकू वायुयान भी हमारे हाथों में होंगे. आपको कागज़ से स्वराज नहीं मिलेगा, स्वराज तब मिलेगा जब आपके कंधों पर रायफल होगी.''


सावकर की अपील काम आयी, 1946 तक भारतीय सेना में हिंदुओं और सिखों का अनुपात बढ़ गया. इसका सबसे बड़ा फायदा तब हुआ जब भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद ज्यादातर मुस्लिम सैनिक पाकिस्तान चले गये और भारतीय सेना में बचे वो हिंदू सैनिक जिन्होंने 1948 की लड़ाई में पाकिस्तानी कबायलियों और घुसपैठियों को धूल चटाई. यानी अगर ये कहा जाए कि आज जो भारतीय सेना है उसकी नींव सावरकर ने ही रखी थी तो गलत नहीं होगा.


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सावरकर के माफीनामे के पीछे की सोच क्या थी?
सिर्फ यही नहीं जिस बात के लिए सावरकर की सबसे ज्यादा आलोचना होती है वो है अंग्रेजों को दिया उनका माफीनामा. नासिक के कलेक्टर की हत्या के आरोप में अंग्रेजों ने 1911 में सावरकर को काले पानी की सजा सुनाई. तब जेल से बाहर आने के लिए सावरकर ने अंग्रेजों को 6 माफीनामे भेजे, पर इन माफीनामों के पीछे की उनकी सोच को भी समझना जरूरी है.


पोर्ट ब्लेयर की जेल में सावरकर ने करीब 10 साल और 9 महीने बिताए. साढ़े सात फीट की अंधेरी कोठरी में जीवन के 10 साल कैसे होंगे ये सोचना भी मुश्किल है. उन मुश्किल हालातों में भी सावरकर हारे नहीं. जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कविताएं लिखते रहे लेकिन ये सब करते हुए उनके मन में एक ही ख्याल चलता रहा कि अगर जेल के अंदर ही जीवन बीत गया तो फिर देश के लिए कैसे कुछ कर पाएंगे. इसके बाद उन्होंने माफी को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया और इस शर्त पर 1921 में जेल से बाहर आए कि वो किसी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे. लेकिन राजनीतिक तौर पर सक्रिय हुए बिना भी सावरकर सामाजिक तौर पर देश सेवा में लगे रहे.


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सावरकर के पोते बोले- इंदिरा गांधी भी थीं उनकी अनुयायी
सावरकर के पोते रणजीत सावरकर ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी सावरकर की अनुयायी थीं. रणजीत सावरकर ने कहा, 'इंदिरा गांधी ने वीर सावरकर को सम्मानित किया था. मुझे दृढ़ता से लगता है कि वह (इंदिरा) अनुयायी थीं, क्योंकि उन्होंने (इंदिरा) पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया था. सेना और विदेशी संबंधों को मजबूत किया और उन्होंने परमाणु परीक्षण भी किया. यह सब नेहरू और गांधी के फिलॉसफी के खिलाफ है.' 20 मई 1980 को इंदिरा गांधी ने वीर सावकर ट्रस्ट को लिखी चिट्ठी में इंदिरा गांधी ने लिखा, ''ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ वीर सावरकर ने जो दमदार लड़ाई लड़ी उसका आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण स्थान है, मैं भारत के इस सपूत की जन्मशती मनाने के कार्यक्रम की सफलता की कामना करती हूं.''


चुनाव में नुकसान को देखते हुए मनमोहन सिंह को आगे किया
कांग्रेस ने पहले तो सावरकर को भारत रत्न देने का विरोध किया और जब लगा कि ऐसा करने से महाराष्ट्र चुनाव में नुकसान हो सकता है तो मनमोहन सिंह को सामने कर मामले को रफू करने की कोशिश की गयी. मुंबई पहुंचे मनमोहन सिंह ने कहा, ''इंदिरा जी ने सावरकर जी को याद करते हुए उनके नाम पर एक पोस्टल स्टैंप जारी किया था. इसलिए हम सावरकर जी के खिलाफ नहीं है लेकिन सावरकर जी ने जिस हिंदुत्व विचारधारा की बात की हम उसका समर्थन नहीं करते.''


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मनमोहन सिंह के बयान का बचाव करते हुए कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ''मुझे लगता है कि उनके बयान को पूरी तरह से समझा नहीं गया है और अगर आप उनके बयान को पूरे संदर्भ में पढ़ते हैं, तो इसका मतलब समझ आएगा. सवाल सावरकर का नहीं, बल्कि उस विचारधारा का है जिसने गांधी की हत्या की. नाथूराम गोडसे की विचारधारा और उसके संरक्षक सावरकर हैं.''


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