नई दिल्ली: मकर संक्रांति एक ऐसा कृषि पर्व है, जो पूरे देश में अलग-अगल तरह से मनाया जाता है. यह प्रकृति की आराधना का पर्व है जो सूर्य के उत्तरायण होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. मकर संक्रांति का त्यौहार वैसे तो सारे देश में 14 जनवरी को मनाया जाता है. लेकिन इस बार ये त्यौहार 15 जनवरी को मनाया जा रहा है. प्रयागराज के कुंभ मेले का पहला स्नान भी 15 जनवरी को किया जाएगा. इस साल सूर्य मकर राशि में 14 जनवरी को देर रात प्रवेश करेगा. इसलिए ये त्यौहार 15 जनवरी को मनाया जा रहा है.


मकर संक्रांति का दिन वैसे तो 14 जनवरी तय रहता है. लेकिन, मान्यता है कि लगभग 100 साल में संक्रांति का त्यौहार एक दिन आगे बढ़ जाता है. 20वीं सदी में ये त्यौहार आमतौर पर 13 और 14 जनवरी को मनाया जाता था. लेकिन पिछले कुछ सालों से ये 14 और 15 जनवरी को मनाया जा रहा है. इसके पीछे मान्यता है कि हर 72 से 90 सालों में पृथ्वी घुर्णन करते हुए एक अंश पीछे रह जाती है. इस वजह से इस त्यौहार की तारीख 100 साल में बदल जाती है. कहा जाता है आज से लगभग 1700 साल पहले ये त्यौहार 22 दिसंबर को मनाया जाता था.


संक्रांति का मतलब संक्रमण काल से है. दरअसल, यह पर्व सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश के अवसर पर मनाया जाता है. इसलिए इसे मकर संक्रांति कहते हैं. यही कारण है कि कड़ाके की ठंड में लोग सूर्योदय से पूर्व स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देते हैं और तिलाठी (तिल के पौधे का ठंडल) जलाकर खुद को गर्म करते हैं और पहले दही-चूड़ा तिलबा (तिल का लड्डु) खाते हैं.


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मकर संक्रांति के दिन से खरमास खत्म हो जाता है और शादी और पूजा पाठ जैसे मांगलिक कार्यों का शुभ मुहूर्त शुरू हो जाता है. प्रयागराज में लगने वाला कुंभ मेला भी इसी दिन शुरू हो रहा है. गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण और दक्षिण भारत में पोंगल कहा जाता है. इस दिन सारे देश में खास कर गुजरात में पंतग कॉम्पिटिशन होता है. बता दें कि वैसे तो 12 तरह की सूर्य संक्रांति होती हैं, लेकिन मेष, कर्क, तुला और मकर प्रमुख हैं.


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मकर संक्रांति सर्दी के मौसम में मनाई जाती है, इसलिए इस अवसर पर देवताओं को तिल और गुड़ से बने लड्डु का प्रसाद चढ़ाया जाता है. यही कारण है कि मिथिलांचल के लोग इसे 'तिला संक्रांति' भी कहते हैं. हिंदी महीना पौष में मनाए जाने वाले इस पर्व पर बिहार के मिथिलांचल में खिचड़ी खाने की परंपरा है. सर्दियों में खीर (दूध-चावल से बना व्यंजन) को उत्तम भोजन माना जाता है.


संक्रांति के दिन मिथिला में खिचड़ी जीमने की परंपरा कई सालों से चल रही है. संस्कृत भाषा में एक कहावत है- 'अमृतं शिशिरे वह्न्रिमृंत क्षीरभोजनम्' अर्थात् 'सर्दी के मौसम में आग और क्षीर (खीर) का भोजन अमृत के समान होता है'. मगर गरीबों के लिए दूध जुटाना संभव नहीं था, इसलिए पानी में पकने वाली खिचड़ी बनाने की परंपरा शुरू हुई.


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मिथिलांचल से आने वाले लेखक व शिक्षाविद् डॉ. बीरबल झा ने बताया कि मिथिला में इस अवसर पर खिचड़ी जीमने (ज्योनार) की परंपरा सदियों से चली आ रही है. डॉ. झा ने बताया कि मिथिला की संस्कृति के संवर्धन के लिए कार्य कर रही दिल्ली की सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था 'मिथिलालोक फाउंडेशन' ने मकर संक्रांति के अवसर पर इस साल 15 जनवरी को 'खिचड़ी दिवस' मनाने का निर्णय लिया है.