कोलंबोः श्रीलंका में एक विश्वविद्यालय द्वारा किये गए अध्ययन में पता चला है कि ऑक्सफॉर्ड-एस्ट्राजेनेका के कोविड-19 टीके कोविशील्ड की पहली खुराक लेने वाले 60 साल से अधिक आयु के लोगों पर इसका असर 16 हफ्तों में गिर गया जबकि दूसरी ओर इसी अवधि के दौरान युवा आबादी पर इसका अच्छा असर दिखा.


टीके का निर्माण ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और ब्रिटिश-स्वीडिश बहुराष्ट्रीय दवा एवं जैव प्रौद्योगिकी कंपनी एस्ट्राजेनेका ने किया है. दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने कोविशील्ड के निर्माण के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और एस्ट्राजेनेका के साथ करार किया है.


श्री जयवर्धनेपुरा विश्वविद्यालय के इम्यूनोलॉजी और आणविक विज्ञान विभाग की प्रोफेसर नीलिका मालविगे ने एक ट्वीट में कहा, ''हमारे अध्यनन के अनुसार बुजुर्ग व्यक्तियों में पहली खुराक के बाद टीके की प्रभावकारिता 16 हफ्ते में गिर गई. इस दौरान उनमें एंटीबॉडी भी खत्म हो गई. हालांकि 60 वर्ष से कम उम्र के लोगों पर टीके का अच्छा असर दिखा. 16 सप्ताह बाद भी उनमें एंटीबॉडी मौजूद रही.'' उन्होंने कहा कि कोविशील्ड वैक्सीन की पहली खुराक के असर के बारे में हमारा शोध नेचर कॉम्स में प्रकाशित हुआ है.


कोविशील्ड और कोवैक्सीन की मिश्रित खुराक पर स्टडी की मांग


बता दें कि भारत के केंद्रीय औषधि प्राधिकरण की एक विशेषज्ञ समिति ने इस बात की सिफारिश की है कि वेल्लोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) को कोविड-19 के दो टीकों कोवैक्सीन और कोविशील्ड के मिश्रण के क्लिनिकल परीक्षण की इजाजत दी जाए. आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी है.


समिति ने भारत बायोटेक को उसके कोवैक्सिन और प्रशिक्षण स्तर के संभावित एडेनोवायरल इंट्रानैसल टीके बीबीवी154 के परस्पर परिवर्तन पर अध्ययन करने के लिए मंजूरी देने की भी सिफारिश की, लेकिन हैदराबाद स्थित कंपनी को अपने अध्ययन से ‘परस्पर परिवर्तन’ शब्द हटाने को कहा है और मंजूरी के लिए संशोधित प्रोटोकॉल जमा कराने को कहा है.


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