25 मई को घरेलू उड़ानों के पहले दिन ही देश भर में 80 ज़्यादा उड़ानें कैंसिल हो गईं जिनमें सिर्फ़ दिल्ली एयरपोर्ट से इंडिगो की 17 उड़ानें कैंसिल हुईं. 26 मई को भी देश भर में 40 से ज़्यादा फ़्लाइट कैंसिल हो गईं जिनमें सिर्फ़ दिल्ली एयरपोर्ट से ही 25 फ़्लाइट कैंसिल हुईं. ज़ाहिर है इसका सबसे ज़्यादा ख़ामियाज़ा यात्रियों को उठाना पड़ रहा है. आइए इस रिपोर्ट में समझते हैं कि आख़िर क्यों इतने बड़े पैमाने पे फ़्लाइट कैंसिल हो रही हैं और इसके पीछे का गणित क्या है.
नियमों का कंफ्यूजन और क्वारंटीन से डरे हुए हैं यात्री
फ़्लाइट रद्द होने की सबसे बड़ी वजह मेट्रो सिटीज़ के अलावा बाक़ी शहरों के बीच हवाई यात्रियों की कमी है. यात्री क्वारंटीन होने से डरे हुए हैं. सरकारी क्वारंटीन के अपने खर्चे हैं ऐसे में राज्यों के नियमों का अलग-अलग होना यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बन गया है. दरअसल अलग-अलग राज्यों के क्वेरेंटीन के अलग अलग नियम हैं. यात्री इन नियमों को लेकर कंफ्यूजन में हैं. सरकारी क्वारंटीन सेंटर में रखने पर राज्य सरकारें अलग से पैसे भी चार्ज करती हैं. हर यात्री इस अतिरिक्त बोझ को नहीं सहना चाहते. खर्चे और भी हैं, उदाहरण- 25 मई को हज़ारी बाग में रहने वाले एक यात्री ने लॉकडाउन के कारण 15 हज़ार रुपये की महंगी टैक्सी ली और मुंबई की फ़्लाइट पकड़ने के लिए रांची पहुंचा. राँची एयरपोर्ट पहुँचने के बाद उसकी फ़्लाइट कैंसिल हो गई. उसे दोबारा 15 हज़ार रूपए खर्च करके वापस आना पड़ा.
फ़्लाइट कैंसिलेशन का गणित
फ़्लाइट कैंसिलेशन का अंतिम निर्णय हाई कॉस्ट और थिन मार्जिन पर काम करने वाली एयर लाईन को ही लेना होता है. एयरलाईन तीन चीज़ें देखती है - सरकार की गाइडलाइन क्या है, एयरक्राफ़्ट का रूट क्या है और पैसेंजर कितने हैं. ऐसे में अगर 60% से ऊपर पैसेंजर होते हैं तो एयर लाईन का फ़ायदा होता है वरना घाटा होता है. एक एयर क्राफ़्ट पूरे दिन में क़रीब 5 से 9 उड़ाने भरता है. यानी हर एयरक्राफ़्ट का पूरे दिन का एक रूट तय होता है. वो उड़ानें कैंसिल हो जाती हैं जिनके रूट में कई ऐसी उड़ानें होती हैं जिनमें पैसेंजर कम होते हैं.
एविएशन की भाषा में शहरों का वरीयता कोड
हवाई यात्रा में अलग-अलग शहरों को वरीयता क्रम में टियर A, टियर B और टियर C में रखा जाता है. देश की 6 मेट्रो सिटीज़ टियर A कहलाती है. राज्यों की राजधानियाँ टियर B कहलाती हैं और अन्य एयरपोर्ट वाले शहर टियर C कहलाते हैं.
इस वक़्त घरेलू उड़ान का बिज़नेस
मेट्रो सिटीज़ के बीच यानी टियर A से टियर A के बीच की उड़ान में 20% से 100% यात्री जा रहे हैं. मेट्रो सिटीज़ से राज्यों की राजधानियों यानी टियर A से टियर B में यात्री 50% से कम हैं. राज्यों की राजधानियों से सामान्य शहरों यानी B से C के बीच यात्री संख्या 20% के आस पास ही है. यानी देश की 6 मेट्रो सिटीज़ के अलावा बाकी शहरों के बीच हवाई यात्रियों की संख्या महज़ बीस से पचास प्रतिशत के बीच है. 26 मई की सुबह 5 बजे दिल्ली से बैंगलोर को गए इंडिगो के विमान में 180 सीटें थीं लेकिन इस विमान ने महज़ 27 यात्रियों के साथ उड़ान भरी है.
फ़्लाइट में सोशल डिस्टेंसिंग न होने का डर
एबीपी न्यूज़ ने जब सिविल एविएशन मिनिस्टर हरदीप से सवाल किया तो मंत्री जी ने साफ़ कह दिया कि हम सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर दो यात्रियों के बीच एक सीट नहीं छोड़ेंगे. ऐसे में बहुत से यात्री डरे हुए हैं कि बिना फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग के मास्क और शील्ड के भरोसे यात्रा यातना दायक न हो जाए.
एविएशन एक्सपर्ट और डाक्टरों की राय में फ़र्क़ है
प्राइमस हॉस्पिटल के स्वास्थ्य सलाहकार डा.कौशल कांत मिश्रा जैसे अनेकों डाक्टरों का कहना है कि ऐसे हालात में सिर्फ़ अत्यावश्यक होने पर ही हवाई यात्रा करना चाहिए. सिविल एविएशन एक्सपर्ट और नागरिक अधिकारों की संस्था चेतना के चेयरमैन अनिल सूद का कहना है कि इस पूरी घरेलू उड़ान योजना में सरकार अपने ही हेल्थ प्रोटोकॉल का उल्लंघन कर रही है. हालांकि वायुदूत के पूर्व कार्यकारी अधिकारी रहे वी.पी. अग्रवाल मानते हैं कि यात्रियों को हवाई यात्रा से डरने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि हवाई जहाज़ का एयर कंडीशनिंग सिस्टम ऐसा होता है कि एक व्यक्ति के अग़ल-बग़ल की हवा दूसरे तक जाने की सम्भावना कम होती है ऐसे में सुरक्षा बरतते हुए यात्रा की जा सकती है.
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