द हेग: कुलभूषण जाधव मामले को लेकर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यानी अंतरराष्ट्रीय अदालत ने फांसी की सजा पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही कोर्ट ने पाकिस्तान से कहा कि वह फैसले पर पुनर्विचार करे. इसके साथ ही कोर्ट ने भारत को काउंसुलर एक्सेस भी मिलेगा. दरअसल पाकिस्तान की कई गलतियों ने भारत की दलीलों को ताकत दी. शुरुआत में मामले पर आईसीजे के अधिकार क्षेत्र को नकारने से लेकर पाकिस्तान के अपने उलझाव ने भारत को अपने तर्कों की ताकत बढ़ाने में मदद की.
पाकिस्तान का भारत को देरी से सूचना देना
पाकिस्तान ने भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी के बाद भारत को इसकी जानकारी करीब दो हफ्ते बाद दी. पाकिस्तान के अपने दावे के मुताबिक उसने जाधव को 3 मार्च 2016 को गिरफ्तार किया था लेकिन उसकी गिरफ्तारी की सूचना भारत को 24 मार्च को दी गई. सूचना देने में पाकिस्तान की इस देरी ने भारत को ताकत दी.
पाकिस्तान का कॉन्सुलर संपर्क न देना
भारत ने अदालत में पाकिस्तान के खिलाफ केस दर्ज करने से पहले भी करीब 13 बार पाकिस्तान को कुलभूषण जाधव के लिए कॉन्सुलर संपर्क की इजाजत मांगी थी. लेकिन भारत के बार-बार आग्रह के बावजूद पाकिस्तान ने इसकी इजाजत नहीं दी.
कुलभूषण को भी उसके अधिकारों के बारे में नहीं बताया
पाकिस्तान ने अदालत में दाखिल दस्तावेजों में यह नहीं कहीं स्पष्ट नहीं किया कि क्या कुलभूषण जाधव को उसके अधिकारों के बारे में बताया गया. उसके तरफ से कुभूषण को सैन्य अदालत में एक जज एडवोकेट ब्रांच का अधिकारी मुहैया कराया गया. लेकिन यह अधिकारी कौन था न इसकी जानकारी उपलब्ध है और न ही जाधव की चार्जशीट और उसकी मुकदमे का कोई दस्तावेज आज तक उपलब्ध नहीं कराया.
वियना संधि की परिभाषा में जासूसी का गलियारा
कुलभूषण जाधव मामले में पाकिस्तान की दलीलों का गुब्बारा जिस एक डोर से बंधा है वो है जासूसी के आरोप हैं. पाक जाधव को जासूस करार देते हुए कॉन्सुलर संपर्क की इजाजत से इनकार करता है. जबकि 24 अप्रैल 1963 को पारित वियना संधि में कहीं भी जासूस या अन्य सामान्य नागरिक के बीच कॉन्सुलर सम्पर्क वाले मामलों में कोई भेद नहीं किया गया.
साल 2008 की द्विपक्षीय संधि
आईसीजे में सुनवाई के दौरान पाकिस्तान ने भारत के साथ 2008 में हुई द्विपक्षीयसंधि के प्रावधानों का हवाला दिया. इसके तहत राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों पर दोनों देश कॉन्सुलर सम्पर्क को लेकर विवेकाधिकार का इस्तेमाल कर निर्णय कर सकते है. रोचक है कि पाकिस्तान को 2008 की इस संधि को संयुक्त राष्ट्र में रजिस्टर कराने की सुध जहां कुलभूषण केस के बाद आई. वहीं सामान्य न्यायसंगत का याबी तक़ाज़ा है कि कोई भी द्विपक्षीय या बहुराष्ट्रीय संधि किसी व्यक्ति को पहले से हासिल मूलभूत अधिकारों को बढ़ा तो सकती है मगर कम करने वाली नहीं होना चाहिए.
मुकदमे के बाद जाँच में मदद की अपील
पाकिस्तान ने फरवरी 2017 में कुलभूषण जाधव के खिलाफ सैन्य अदालत में सुनवाई की कार्रवाई पूरी कर ली थी. वहीं इस कथित मुकदमे के पूरा होने से महज चंद रोज़ पहले उसने भारत को खत भेज जाधव के खिलाफ जांच में शामिल होनर को कहा था. वहीं जाधव को सज़ा की सूचना के साथ 10 अप्रैल 2017 को भेजे नोट वर्बाल में भी कहा था कि उसले कॉन्सुलर सम्पर्क का विषय भारत की तरफ से जांच में मिलने वाली मदद से तय होगा. भारत के वकील.साल्वे में इन विसंगति को प्रमुखता से उठाया था.
अदालत के क्षेत्राधिकार पर सवाल
पाकिस्तान ने शुरुआत में अदालत के क्षेत्राधिकार पर सवाल उठाया था. हालांकि बाद में जब अदालत ने भारत के हक में अंतरिम राहत का आदेश दिया तो उसने साफ किया कि क्षेत्राधिकार के मुद्दे पर पाक की किसी आपत्ति का कोई अर्थ नहीं ही. बाद में पाक ने अदालती करवाई में शिरकत भी की. जबकि भारत हमेशा इस बात पर ज़ोर देता रहा कि इस मामले में आएसीजे के क्षेत्राधिकार बनता है.