कुलभूषण जाधव के कॉन्सुलर संपर्क की इजाजत भी होगी भारतीय दलीलों की बड़ी जीत
कुलभूषण पर फैसला जो भी आए मगर पाकिस्तान के लिए इसकी खुली अवहेलना बेहद मुश्किल होगी. अदालत का फैसला बाध्यकारी है और इस फैसले के खिलाफ अपील या समीक्षा की सूरत निकालना बेहद कठिन है.
द हेग: अंतरराष्ट्रीय अदालत में कुलभूषण जाधव मामले पर सबकी नजरें लगी हैं तो इस मामले पर अपनी दलीलों से आश्वस्त भारत को जीत की उम्मीद भी काफी है. इस मामले में यूं तो भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से कुलभूषण की रिहाई और सुरक्षित वापसी का आदेश देने की अपील की है. लेकिन अगर अदालत भारत को जाधव के लिए कॉन्सुलर संपर्क की इजाजत भी दे देती है तो यह भी भी भारतीय तर्कों की बड़ी जीत होगी.
वियना संधि का उल्लंघन बताते हुए भारत ने खटखटाया था कोर्ट का दरवाजा
उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, अदालत से यदि भारत को कुलभूषण जाधव के लिए कॉन्सुलर संपर्क की इजाजत या उसके खिलाफ आए सैन्य अदालत का फैसले की समीक्षा का आदेश हासिल हो जाता है तो यह भी बड़ी जीत होगी. दरअसल भारत जिस मुख्य अपील को लेकर अदालत के दरवाजे पर पहुंचा था, वह कुलभूषण जाधव के लिए पाकिस्तान की तरफ से लगातार कॉन्सुलर संपर्क की इजाजत से इनकार का ही मामला था. भारत ने इसे 1963 की वियना संधि का उल्लंघन बताते हुए है अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
भारत करीब 30 बार जाधव के कॉन्सुलर सम्पर्क के लिए कर चुका है आग्रह
बीते तीन सालों में अब तक भारत करीब 30 बार जाधव के कॉन्सुलर सम्पर्क के लिए पाकिस्तान को आग्रह कर चुका है. यहां तक कि 1 जुलाई 2019 को भी भारत ने जाधव के लिए कॉन्सुलर संपर्क की इजाजत का अपना आग्रह पाकिस्तान का आगे दोहराया. हालांकि हर बार की तरह पाकिस्तान ने न तो इसकी इजाजत दी और न ही भारत की तरफ से भेजे खत का जवाब दिया.
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सूत्रों के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसलों की पुरानी परंपरा को देखते हुए किसी अति साहसिक निर्णय की उम्मीद कम है. बल्कि आशा इस बात की ज़्यादा है कि अदालत अपने को क्षेत्राधिकार तक सीमित रखे. ऐसे में इस बात की आशा अधिक है कि अदालत वियना संधि के सवाल को केंद्र में रखते हुए फैसला सुनाए. साथ ही दोनों पक्षों की दलीलों के आधार पर जाधव के मामले में 'कानूनी समीक्षा' की सलाह दे.
पाक पर बाध्यकारी होगा फैसला
बहरहाल, फैसला जो भी आए मगर पाकिस्तान के लिए इसकी खुली अवहेलना बेहद मुश्किल होगी. अदालत का फैसला बाध्यकारी है और इस फैसले के खिलाफ अपील या समीक्षा की सूरत निकालना बेहद कठिन है. इसके खिलाफ अपील के लिए भी असंतुष्ट पक्ष को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का ही दरवाजा खटखटाने होगा. हालांकि अमेरिका जैसे कुछ देश पूर्व में आएसीजे के फैसलों को दरकिनार कर चुके हैं. लेकिन सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देश के मुकाबले पाकिस्तान जैसे किसी मुल्क के लिए ऐसा करना बहुत कठिन होगा.
आईसीजेइन 17 जुलाई को आने वाला फैसला अगर भारत के पक्ष में आता ही तो यह न केवल कुलभूषण सुधीर जाधव के लिए राहत की खबर होगा बल्कि यह अन्य कई मामलों में भी भारत के लिए मदद की चाबी बन सकेगा.
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