नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में राज्यसभा के लिए अपने तीन उम्मीदवारों के नामों का एलान कर दिया है, लेकिन इस सूची में पार्टी के तेजतर्रार नेता और प्रख्यात मंचीय कवि कुमार विश्वास का नाम नहीं है.
आम आदमी पार्टी का ये फैसला भले ही आम जन के लिए चौंकाने वाला हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों की समझ रखने वाले जानते हैं कि ये अपेक्षित था. दिलचस्प बात ये है कि खुद कुमार विश्वास को भी ऐसे ही फैसले की उम्मीद थी.
खुद कुमार विश्वास को भी इसकी भनक थी. उनके करीबी सूत्रों का कहना रहा है कि ऐसे कई कारण हैं जिसकी वजह से कुमार विश्वास को राज्यसभा में नहीं भेजा जा रहा है, लेकिन जो बात सबसे अहम है वो ये है कि एक बैठक में, जिसमें कुमार विश्वास भी मौजूद थे, पार्टी के सर्वमान्य नेता ने उन्हें कहा था कि तुम्हें मारूंगा तो जरूर, लेकिन शहीद नहीं होने दूंगा... और पीएसी (पोलिटिकल अफेयर्स कमेटी) की आज की बैठक के फैसले से साफ है कि पार्टी के सर्वेसर्वा ने अपनी कथनी को करनी में सच साबित दिया.
अब खुद कुमार विश्वास ने अपनी राजनीतिक शहादात कबूल कर ली है.
अब नए साल पर कुमार विश्वास का हाल उनकी अपनी कविता की जुबान में कुछ ऐसा है..
उम्र बाँटने वाले उस ठरकी बूढ़े ने
दिन लपेट कर भेज दिए हैं
नए कैलेंडर की चादर में
विश्वास में केजरी के अविश्वास की कहानी पुरानी है, लेकिन बीते दिनों जब कुमार विश्वास ने राष्ट्रवाद और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर वीडियो डाला तो उनके और अरविंद केजरीवाल के बीच की दूरी और बढ़ गई. इस वीडियो में केजरीवाल को निशाना बनाया गया था. लेकिन कुमार विश्वास के सूत्र कहते हैं उन्हें ये वीडियो डालने के लिए मजबूर होना पड़ा.
मामला ये है कि अरविंद केजरीवाल के घर पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही थी. केजरीवाल के करीबी आलोक अग्रवाल से कुमार विश्वास की बकझक हो गई. कहने वाले कहते थे, अब खुद कुमार विश्वास ने इसका एलान कर दिया है कि इस मीटिंग में वो कई मुद्दों पर ‘सिद्धांत’ को आधार बनाकर अड़ गए... और आखिर में बात यहां तक पहुंची कि केजरीवाल ये कह गए.. मैं तुम्हें मारूंगा जरूर, लेकिन शहीद नहीं होने दूंगा... और ताजा फैसला केजरीवाल के उस बयान का पूरक है.
और क्या हैं वजहें
लेकिन कुमार विश्वास को राज्यसभा नहीं भेजने की पीछे की वजह सिर्फ मीटिंग की बकझक ही नहीं है. सूत्रों का कहना है कि कुमार विश्वास मीडिया में खूब सुने जाते हैं, बात करने का निराला अंदाज रखते हैं. युवाओं में खासा लोकप्रिय हैं. महफिल में समा बांध देते हैं और काफिले को कारावां में बदलने का हुनर रखते हैं. और कुमार विश्वास की ये खूबी अरविंद केजरीवाल को डराती है.
कुमार विश्वास प्रकृति से कवि हैं, विद्रोही उनका स्वभाव है और पहचान भी एक फक्कड़ नेता की है. कवि दरबारी भी हुआ करते हैं, लेकिन कुमार विश्वास किसी की सुनते ही नहीं, और पद मिलने के बाद न पहचाने का कीड़ा पैदा हो सकता है, ये किसे पता. कुमार विश्वास की ये खूबियां-खराबियां उनके राजनीतिक सफर में रोड़ा बन रही हैं.
वैसे कुमार विश्वास का अपना जीवन भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है. कभी इस डाल पर कभी उस डाल पर... उनका स्वभाव है. पार्टी की लाइन कुछ भी हो... मोदी की तारीफ के बहाने ढूंढ निकालते हैं. सर्जिकल स्ट्राइक के वक़्त में जब केजरीवाल सबूत मांग रहे थे तो कुमार विश्वास मोदी का महिमामंडन कर रहे थे.
कपिल मिश्रा एपिसोड के दौरान भी कुमार विश्वास का खुद को फैसला नहीं कर पाएं कि किधर जाएं. हालांकि, शुरू में वो कपिल मिश्रा के साथ दिखे, लेकिन बाद में उसपर डटे नहीं रह पाए, लेकिन इस पूरे मामले ने कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल की दूरी को और बढ़ा दिया.
कुमार विश्वास की इन पंक्तियों को देखिए...
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
दरअसल, पार्टी में ऐसी छवि बनी कि 'होठों पर गंगा और हाथों में तिरंगा' के बहाने कुमार विश्वास को दो कश्ती का मुसाफिर बना दिया गया. उनकी छवि बनी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की अगुवा पार्टी के कार्यकर्ता और राष्ट्रवाद की राजनीति करने वाली पार्टी के समर्थक की. राजनीति में कब कोई चीज़ स्थिर होती है... बीजेपी में कभी कुमार विश्वस की खासी पैठ रही है, लेकिन अब कोई पूछने वाला नहीं है.
राजनीति के इस मोड़ पर केजरीवाल ने कुमार विश्वास को इस तरीके से शहीद किया कि अब वो अपने राष्ट्रवाद और नरम हिंदुत्व की पूंजी को बेचे तो क्या समेट भी नहीं पा रहे हैं.
मुंशी घनश्याम लाल आसी के शब्दों में...
न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम न इधर के हुए न उधर के हुए
रहे दिल में हमारे ये रंज-ओ-अलम न इधर के हुए न उधर के हुए