Kumar Vishwas Birthday: साहित्य की दुनिया में अक्सर 'गंभीर साहित्य' और 'लोकप्रिय साहित्य' के बीच विवाद रहा है. हालांकि इस बात में दो राय नहीं कि जो गंभीर साहित्य है वह भी लोकप्रिय हो सकता है और जो लोकप्रिय साहित्य है वो भी गंभीर हो सकता है. इसको इस तरह समझिए कि अगर आपसे पूछा जाए , उर्दू के सबसे बड़े शायर कौन हैं तो आप निश्चित तौर पर मीर तक़ी मीर या मिर्ज़ा ग़ालिब का नाम लेंगे, वहीं जब आपको हिन्दी के कवियों और गीतकारों के बीच चयन कर इसी सवाल का जवाब देना हो तो आप दुष्यंत कुमार का नाम लेंगे. लेकिन जब आपसे यह पूछा जाए कि आज की पीढ़ी में आवाम के बीच हिन्दी गीत और उर्दू शायरी के लिए किस शायर को सबसे अधिक मेहबूबियत हासिल है तो बहुत से जवाबों के बीच एक नाम जिसको दरकिनार नहीं किया जा सकता है वो नाम कुमार विश्वास का है.
कुमार विश्वास शायर कैसे हैं इसकी समीक्षा वक्त-वक्त पर होती रहेगी, पहले भी शायरों को आलोचनाओं की कसौटी से गुजरना पड़ा है लेकिन एक चीज है जो कुमार विश्वास को आज के दौर के दूसरे शायरों से अलग बनाती है वह है उनकी ज्यादा से ज्यादा पढ़ने की आदत..किसी मशहूर शायर की पंक्ति ''अगर है शौक लिखने का तो पढना भी ज़रूरी है'' कुमार विश्वास पर बिल्कुल सटीक है.
बात हिन्दी की करें या उर्दू की, ऐसे बहुत कम ही शायर हुए जिनकी लिखी पंक्ति एक 'एंथम' बन जाए. कुमार विश्वास का 'कोई दीवाना कहता है'' भी ऐसी ही पंक्ति है जिसे न सिर्फ इस वतन में बल्कि सात समुंदर पार दूसरे भाषा बोलने वाले लोग भी गुनगुनाते हुए पाए जाते हैं.
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नहीं सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नहीं सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता !!
हालांकि कुमार विश्वास के लेखनी का आंकलन करना हो तो इससे कई अधिक महत्वपूर्ण दूसरी साहित्यिक रचनाएं उन्होंने लिखी है. कुमार विश्वास की कविता की सरलता, सहजता और उनका कविता पढ़ने का निराला अंदाज ही है जिसकी वजह से उनकी कविता छोटे बच्चों को भी आसानी से याद हो जाती है. यही उनकी कविता का जादू है. प्रेम, मोहब्बत, रूमानियत, इश्क के कवि तो कुमार विश्वास हैं ही लेकिन उनकी कविता में राष्ट्रप्रेम और समाजिक रूप का चित्रण भी खूब मिलता है. वह ''बांसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है'' तो लिखते हैं लेकिन साथ ही ''होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो'' जैसे राष्ट्र प्रेम की रचनाए भी लिखते हैं.
कुमार विश्वास का प्रारंभिक जीवन
कुमार विश्वास की कविता पर बात करें इससे पहले आइए उनके बारे में थोड़ा जान लेते हैं. उनका जन्म 10 फरवरी 1970 को पिलखुआ, गाजियाबाद में हुआ था. शुरुआती दिनों में उनकी शिक्षा लाला गंगा सहाय स्कूल, पिलखुआ में हुई थी. उनके पिता डॉ. चन्द्रपाल शर्मा आर. एस. एस. डिग्री कालेज (चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ से संबद्ध) पिलखुआ में प्रवक्ता रहे चुके हैं. उनके पिता विश्वास को एक इंजीनियर बनाना चाहते थे लेकिन बचपन से ही कविताओं के शौक ने कुमार विश्वास को कवि बनने पर विवश कर दिया. साहित्य के क्षेत्र में आगे बढने के ख्याल से उन्होंने स्नातक और फिर हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर किया, जिसमें उन्होंने स्वर्ण-पदक प्राप्त किया.इसके बाद उन्होंने “कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना” विषय पर पीएचडी प्राप्त किया. उनके इस शोध-कार्य को 2001 में पुरस्कृत भी किया गया.
इसके बाद वह विश्वविद्यालय में बतौर प्रोफसर पढ़ाने लगे. लंबे अरसे तक अध्यापक रहने के बाद वह राजनीति में आए. हालांकि राजनीति ने भी उनके साथ कुछ वैसा ही व्यवहार किया जैसा हिन्दी के 'गंभीर साहित्यिक धारोओं' के लोगों ने किया.
राजनीतिक जीवन
कुमार विश्वास हिन्दी के कवि तो हैं ही साथ ही वे नेता भी हैं. हलांकि कविता और राजनीति में विरोधाभाष है. राजनीति कहती है जो दिल में है उसे साफ-साफ जाहिर न करें और कविता कहती है जो भी दिल में है उसे खुलकर व्यक्त कर देना चाहिए. कुमार फिलहाल दोनों परिस्थियों के बीच फंसे हुए से दिखाई देते हैं.
उनके राजनीतिक करियर की बात करें तो वह अन्ना आंदोलन के बाद राजनीति में आए. 26 नवंबर 2012 को अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने. इसके बाद डॉ. कुमार विश्वास ने अमेठी से आम आदमी पार्टी की ओर से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा, परन्तु हार गए. बाद में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से खटपट के चलते उन्होंने बागी तेवर अपना लिए और आम आदमी पार्टी के अन्य नेताओं के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री पर भी जमकर हमला बोला.
उन्होंने इसको लेकर एक कविता भी लिखी
साथ रहो तो सबसे बेहतर
मौन रहो आभारी है
सत्ता की कविता से केवल
इतनी रिश्तेदारी है
सारी दुविधा प्रतिशत पर है
कितना सच बोला जाए
गूंगे सिखा रहे हैं हमको
मुंह कितना खोला जाए
कुमार विश्वास ने हिन्दी को उस दौर में भी गर्व की भाषा बनाए रखा है जिस दौर में अंग्रेजी युवाओं की पहली पसंद बनती जा रही है. इसमें कोई संदेह नहीं कि कुमार विश्वास की कविता, गीत, मुक्तक की लोकप्रियता ने उन्हें आज पोएट्री का 'यूथ आइकन' बना दिया है.