नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर कवि कुमार विश्वास ने कहा कि समावेशी राजनीति में जो विचारों का विश्वविद्यालय है, उसका कुलपति चला गया. वाजपेयी भारतीय राजनीति के उत्सव मूर्ति थे, उनके आस-पास राजनीति का उत्सव नाचता था. कुमार विश्वास ने कहा कि पिछले सौ सालों में लाल बहादुर शास्त्री के बाद वाजपेयी, दूसरे ऐसे ‘अजातशत्रु' थे जिनके विपक्षी तो हुए लेकिन विरोधी कोई नहीं हुआ.


जब जाउं तो लोग याद करें


कुमार विश्वास कहा कि हर राजनीतिक दल में कुछ लोग इस 'अटलवादी' विचारधारा के होते हैं जो सौम्य हैं, शालीन हैं, जो बात को गंभीरता से उठाते हैं और संसद से लेकर सड़क तक भाषा की मर्यादा का ध्यान रखते हैं. उन्होंने कहा कि वाजपेयी की महत्वाकांक्षा बस इतनी थी कि जीवन में कोई अपयश नहीं हो और जब जाउं तो लोग याद करें. यह बात उन्होंने अपने साक्षात्कारों में भी कही.


न अपना हाथ काटा, न दूसरे का सिर


विश्वास ने कहा ‘‘अटलजी का जाना कवियों के खानदान के लिये भी बड़ा नुकसान है. यह पत्रकारिता का नुकसान है, कविता का नुकसान है, राजनीति का नुकसान है, कुल मिलाकर देश का नुकसान है.’’ उन्होंने कहा ‘‘कविता और भाषा दोधारी तलवार है, लेकिन वाजपेयी ने उस तलवार का इस्तेमाल ऐसे किया कि न अपना हाथ काटा, न दूसरे का सिर काटा. उन्होंने मुद्दे को खड़ा करने के लिए कविता का इस्तेमाल किया.’’