नई दिल्ली: करीब 20 दिनों के सियासी नाटक के बाद आखिरकार कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार का द एंड हो गया. कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार विश्वासमत हासिल नहीं कर पाई. विधानसभा में वोटिंग के बाद सीएम कुमारस्वामी ने राज्यपाल को इस्तीफा भेज दिया, जिसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया. विशअवास प्रस्ताव में बीजेपी की जीत के बाद येदुरप्पा की अगुवाई में तमाम बीजेपी विधायक विक्ट्री साइन दिखाते नजर आए. विश्वासमत में जीत के बाज बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा आज राज्यपाल वजुभाई वाला से मिल कर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं. इससे पहले उन्होंने पीएम मोदी और अमित शाह से चर्चा करने की बात कही है.


कर्नाटक का सियासी नाटक 6 जुलाई को कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों के इस्तीफे के साथ शुरू हुआ था जिसका पर्दा कुमारस्वामी की कुर्सी जाने का बाद गिरा है. छह जुलाई से 23 जुलाई बीच 18 दिनों से सियासी घटनाक्रम में कर्नाटक में बहुत कुछ हुआ. विधायकों और मंत्रियों के इस्तीफे हुए, सुप्रीम कोर्ट कै फैसला हुआ, विधायकों को मनाने का दौर चला, हम आपको तारीखवार कर्नाटक में बीते 18 दिनों का सियासी नाटक बता रहे हैं.


छह जुलाई: कांग्रेस के दस और जेडीएस के तीन विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय में उनकी गैर हाजिरी में इस्तीफा सौंपा. स्पीकर ने कहा कि विधायकों ने मेरे कार्यालय में त्याग पत्र दिया है. मैं मंलगवार को ऑफिस आऊंगा. कानून के मुताबिक हम विधायकों को वापस नहीं लौटा सकते हैं. हम नियम कायदों के मुताबिक काम कर रहे हैं. रविवार को छुट्टी है और चूंकि मैं बेंगलुरु में नहीं हूं, इसलिए सोमवार को भी दफ्तर में नहीं रहूंगा. मंगलवार को दफ्तर जाएंगे तो फिर इस मामले को देखा जाएगा. मुख्यमंत्री कुमारस्वामी कर्नाटक में मौजूद नहीं थे.


सात जुलाई: मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी अमेरिका यात्रा से लौटे. अमेरिका से लौटने के बाद मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कांग्रेस और जेडीएस के नेताओं के साथ बैठकें की. बैठक में मुख्यमंत्री के पिता एचडी देवेगौड़ा, कांग्रेस के सिद्धरमैय्या, दिल्ली से आए कर्नाटक के प्रभारी के सी वेणुगोपाल और जेडीएस के नेता और सरकार में मंत्री डीके शिवकुमार भी शामिल हुए. बैठक के बाद मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने कहा कि ये बैठकें राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर नहीं बल्कि सामान्य प्रशासनिक कामों को लेकर हो रही हैं.


आठ जुलाई: सभी मंत्रियों ने बागियों को संतुष्ट करने के वास्ते उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किये जाने के लिए अपने अपने पार्टी नेताओं को इस्तीफा दिया. कांग्रेस के 21 मंत्रियों के मंत्रिमंडल से इस्तीफे के तुरंत बाद जदएस के मंत्रियों ने इस्तीफे दिये. मुख्यमंत्री कार्यालय ने ट्विटर पर बताया, जदएस के सभी मंत्रियों ने भी कांग्रेस के 21 मंत्रियों की तरह इस्तीफे दे दिये हैं. मंत्रिमंडल में जल्द ही फेरबदल होगा.


दो निर्दलीय विधायकों का इस्तीफा: कुछ घंटों के अंतर पर एच नागेश और आर शंकर ने मंत्री पद से इस्तीफा दिया और सरकार से समर्थन वापस लिया. उन्होंने बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान किया. इसके साथ ही मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के अलावा कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया के सामने सरकार बचाने की चुनौती और कठिन हो गई. इसके बाद भी सीएम कुमारस्वामी ने दावा किया कि मामला सुलझ गया है, कैबिनेट का पुनर्गठन होगा.


नौ जुलाई: कांग्रेस ने पार्टी विधायक दल की बैठक बुलायी, 20 विधायक नहीं पहुंचे. पार्टी ने संकेत दिया था कि यदि बागी विधायक इस बैठक में शामिल नहीं होंगे तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.कर्नाटक की सियासत में जारी उठापटक का मसला मंगलवार को लोकसभा में भी उठा. कांग्रेस नेता अधीर रंजन ने कहा कि ये शिकार की पॉलिटिक्स बंद होनी चाहिए.


इस सब के बीच कांग्रेस को एक और बड़ा झटका लगा. सस्पेंड चल रहे विधायक रौशन बेग ने विधानसभा से इस्तीफा दिया. इस्तीफे के बाद रोशन बेग ने कहा कि आज मैंने कर्नाटक विधानसभा से अपना इस्तीफा अध्यक्ष को सौंप दिया. मैं मुंबई या दिल्ली नहीं जा रहा हूं. राज्य के हज समिति का अध्यक्ष होने के नाते मैं हज यात्रियों के यात्रा प्रबंधन को देखने हवाईअड्डा जा रहा हूं.


10 जुलाई: कर्नाटक की राजनीति में नाटक के बीच दो और कांग्रेस विधायकों डॉ के सुधाकर और एम टी बी नागराज ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया. दो इस्तीफों के बाद विधानसभा के परिसर में माहौल काफी हंगामे भरा रहा. विधायक डॉ के सुधाकर को कांग्रेस के नेताओं ने खींचकर केजी जॉर्ज के कमरे में कैद करके रखा गया बाद में उनके साथ हाथापाई भी हुई. मारपीट के बाद दोनों विधायकों डॉ के सुधाकर और एम टी बी नागराज को किसी अज्ञात जगह ले जाया गया है ताकि इन्हें मनाया जा सके. इन दो इस्तीफों के साथ कुमारस्वामी की सरकार जाना पूरी तरह से तय हो गया.


17 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में व्यवस्था दी कि 15 बागी विधायकों को वर्तमान विधानसभा सत्र की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि बागी विधायकों के इस्तीफों पर स्पीकर अपनी इच्छा से फैसला ले सकते हैं. सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि मामले में संवैधानिक संतुलन बनाना जरूरी है, जो सवाल उठे हैं उनके जवाब बाद में तलाशे जाएंगे.


18 जुलाई: कुमारस्वामी ने विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया. इसमें कहा गया कि सदन को उनकी अध्यक्षता वाले मंत्रिपरिषद पर विश्वास है. लेकिन लंबी बहस के बाद भी इस पर वोटिंग नहीं हो सकी. बिना बहुमत परीक्षण के ही स्पीकर ने विधानसभा की कार्यवाही स्थगित कर दी. इसके विरोध में बीजेपी विधायक धरने पर बैठ गए और विधानसभा के अंदर ही रात गुजारी. जब सदन में विश्वास मत पेश हुआ तो 16 बागी समेत 19 विधायक गैरहाज़िर थे.


19 जुलाई: राज्यपाल वजूभाई वाला ने शुक्रवार तक ही मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करने के लिए दो समयसीमाएं (पहले दोपहर 1.30 बजे, बाद में शाम 6 बजे) तय कीं. कुमारस्वामी ने राज्यपाल की ओर से जारी दोनों डेडलाइन का उल्लंघन किया और तय समयसीमा के भीतर फ्लोर टेस्ट नहीं हुआ. विधानसभा 22 जुलाई तक स्थगित की गयी.


23 जुलाई: विश्वास मत प्रस्ताव पर 4 दिनों की बहस के बाद मंगलवार शाम करीब 7.30 बजे स्पीकर के आदेश पर वोटिंग की प्रक्रिया शुरू हुई. सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायकों की गिनती के बाद 7 बजकर 40 मिनट पर स्पीकर को फाइनल रिपोर्ट सौंपी गई और जो नतीजे आउट हुए. उसके बाद साफ हो गया कि बहुमत परीक्षण में कुमारस्वामी सरकार 99 पर आउट हो गई. कुमारस्वामी सरकार के समर्थन में 100 विधायक भी नहीं आए, जबकि सरकार के विरोध में यानी विपक्ष में 105 विधायक थे. वोटिंग के वक्त सदन में कुल 204 विधायक ही मौजूद थे.