नई दिल्लीः कर्नाटक में सरकार गठन की चल रही कवायद के बीच जेडीएस ने संकेत दिया है कि शुरुआत में मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी अपना मंत्रिमंडल छोटा रखेंगे. बहुमत साबित करने के बाद कुमारस्वामी अपने मंत्रिमंडल का आकार बड़ा कर सकते हैं.
अबतक फार्मूला तैयार नहीं
जेडीएस सूत्रों का कहना है कि मंत्रिमंडल के स्वरूप और उसके आकार को लेकर कांग्रेस और जेडीएस के बीच बातचीत शुरुआती दौर में है और अभी तक कोई फार्मूला तैयार नहीं हो पाया है. सूत्रों के मुताबिक अभी इस बात पर भी सहमति नहीं बन पाई है कि मंत्रिमंडल में जेडीएस और कांग्रेस के कितने कितने मंत्री बनेंगे. कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल के मुताबिक - 'अभी कल ही निमंत्रण मिला है और अभी जश्न का माहौल है, बहुत दिनों के बाद रविवार को थोड़ा आराम और सुकुन मिला है. बातचीत चल रही है और जब सब कुछ तय हो जाएगा तो सबको पता चल जाएगा'.
पहले बहुमत साबित करना है लक्ष्य
एक कयास ये भी लगाया जा रहा है कि जेडीएस और कांग्रेस फूंक फूंक कर कदम रख रही है और बुधवार को शपथ ग्रहण के बाद सबसे पहले विधानसभा में बहुमत हासिल करना चाहती है. उसके बाद ही मंत्रिमंडल का पूरा विस्तार होगा. दोनों दलों के सूत्रों का दावा है कि जिस तरह से बी एस येदुरप्पा और बीजेपी ने कुछ विधायकों को खरीद कर अपने पाले में लाने की कोशिश की उसके बाद वो कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं.
सोमवार को राहुल और सोनिया से कुमारस्वामी की मुलाक़ात
उधर जेडीएस नया एच डी कुमारस्वामी सोमवार को दिल्ली पहुंच कर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाक़ात करेंगे. माना जा रहा है कि मुलाक़ात के दौरान दोनों नेताओं से मंत्रिमंडल गठन पर भी चर्चा होगी. हालांकि जेडीएस इसे महज शिष्टाचार की भेंट बता रही है. पार्टी के प्रधान महासचिव दानिश अली ने एबीपी न्यूज़ से कहा - 'ये एक शिष्टाचार की मुलाक़ात है, मुख्यमंत्री बनने का निमंत्रण मिलने के बाद दोनों बड़े नेताओं से मिलने कुमारस्वामी दिल्ली आ रहे हैं. इसमें मंत्रिमंडल का गठन एजेंडा में शामिल नहीं है'.
सभी विपक्षी नेताओं को निमंत्रण
बुधवार को होने वाले शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए सभी ग़ैर एनडीए दलों के नेताओं को न्योता भेजा जा रहा है. इनमें ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और चंद्रबाबू नायडू समेत सभी ग़ैर एनडीए राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं. इसे 2019 के चुनाव में साझा चुनौती देने के लिए कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों की रणनीति माना जा रहा है.