MP Kuno National Park: भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के एक पूर्व अधिकारी ने दावा किया है कि मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में अफ्रीका से लाए गए चीतों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है. दरअसल, एक महीने की भीतर दो चीतों की मौत के बात चिंता की लकीरें खिंचने लगी हैं. ये नेशनल पार्क 748 वर्ग किलोमीटर के एरिया में फैला हुआ है, जिसमें से 487 वर्ग किलोमीटर बफर जोन में आता है. इस पर एक्सपर्ट्स की राय है कि एक चीता को अपनी आवाजाही के लिए लगभग 100 वर्ग किलोमीटर की जरूरत होती है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, डब्ल्यूआईआई के पूर्व डीन यादवेंद्रदेव विक्रमसिंह झाला ने कहा है, “कूनो नेशनल पार्क में इन जानवरों के लिए अपर्याप्त जगह है. हालांकि कूनों में बड़े परिदृश्य के अनुकूल होने पर चीते यहां पनप सकते हैं. जिसमें कृषि भाग, वन्य आवास और एरिया के भीतर रहने वाले अन्य जानवर शामिल हैं.” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि मेटापॉपुलेशन के रूप में प्रबंधित कई आबादी को स्थापित करना महत्वपूर्ण है, जहां जानवरों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है.
‘दूसरी, तीसरी आबादी स्थापित करना जरूरी’
उन्होंने कहा, “केवल 750 वर्ग किलोमीटर का एरिया पर्याप्त नहीं है. हमें (एक से अधिक) चीतों की आबादी बनानी होगी और इसे एक मेटापॉपुलेशन की तरह मैनेज करना होगा. जहां पर आप जानवरों को एक जगह से दूसरी जगह पर ले जा सकते हैं. दूसरी, तीसरी आबादी स्थापित करना बेहद जरूरी है.”
विक्रमसिंह झाला ने आगे कहा, “तो, ये इस बात पर निर्भर करता है कि समुदायों को कैसे मैनेज करते हैं, ईकोटूरिज्म, उन्हें प्रोत्साहन देना, सुनिश्चित करना (मानव-पशु) कि संघर्ष के स्तर की उचित रूप से भरपाई की जा रही है या नहीं.”
मेटापॉपुलेशन मैनेजमेंट
इसके बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “एक के बाद एक, दो पीढ़ियों को इधर से उधर शिफ्ट करने को मेटापॉपुलेशन कहते हैं. जिसमें एक या तीन चीते होते हैं. जिससे कि जेनेटिक एक्सचेंज होता रहे. ये एक इम्पोर्टेंट एक्सरसाइज है. इसके बिना हम अपने देश में चीतों को मैनेज नहीं कर सकते. इसके लिए केएनपी एक साइट है. राजस्थान में मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व एक साइट है, मध्य प्रदेश में गांधी सागर अभ्यारण्य और नैरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य ये जो जगहें हैं. इनमें से हर साइट अपने आप में सक्षम नहीं है.”
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