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अब कुवैत में भारतीय कामगारों पर लटकी बेरोजगारी और मजबूरन वतन वापसी की तलवार, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

कुवैत की कुल 43 लाख की जनसंख्या में सबसे ज्यादा 14.5 लाख भारतीय नागरिक हैं.हाल के दिनों में वंदे भारत मिशन के तहत खाड़ी देशों से करीब 2 लाख भारतीय वापस लौटे हैं.

नई दिल्लीः भारतीय कामगारों के लिए रोजगार के अवसरों का सदानीरा कुंआ कहलाने वाले खाड़ी मुल्कों में अब सूखा गहराने लगा है. सउदी अरब, ओमान के बाद अब कुवैत ने भी अपने यहां विदेशी नागरिकों की बजाए स्थानीय लोगों को नौकरियों में तरजीह देने वाले कानून को पारित करने की तैयारी कर ली है. इस कानून के पारित होने पर न सिर्फ कई भारतीय नागरिकों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ सकता है बल्कि करीब 8 लाख भारतीयों के सामने वापस लौटने की भी मजबूरी होगी.

क्या है नया प्रस्तावित कानून?

कुवैत में बहुत बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं और वहां काम करने वाली विदेशी आबादी का समसे बड़ा हिस्सा हैं. कुवैत की नेशनल असेंबली की कानूनी और विधायी समिति में नए ‘एक्सपैट कोटा बिल’ (Expat Quota Bill) के मसौदे को मंजूरी मिलने के बाद भारतीयों के आगे संकट गहरा जाएगा.

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कुवैत का नया प्रस्तावित कानून, करीब 15 फीसद नौकरियां स्थानीय लोगों को दिए जाने की बात करता है. ऐसे में कुवैत की 43 लाख की आबादी में से 14 लाख भारतीयों पर इसका बड़ा असर होगा.

खाड़ी देशों में बिगड़ती अर्थव्यवस्था से बन रहे ऐसे हालात

पूर्व राजदूत अनुल त्रिगुणायत जैसे जानकारों के मुताबिक पहले ही संकट के दौर से गुज़र रही खाड़ी मुल्कों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए कोरोना संकट ने मुसीबत बढ़ा दी है. जहां एक तरफ कच्चे तेल के दाम काफी कम हैं. वहीं गहरी आर्थिक मंदी का खतरा भी उभरा है.

ऐसे में कोरोना संक्रमण से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए कुवैत जैसे देशों में भी स्थानीय आबादी के लिए रोजगार अवसर सुनिश्चित करने वाले प्रावधानों के लिए समर्थन के सुर तेज़ हुए.

यह महत्वपूर्ण है कि कुवैत से पहले सउदी अरब, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात भी इस तरह के प्रावधान कर चुके हैं. बीते करीब एक दशक से इस दिशा में कवायदें चल रही हैं. इसके कारण बीते कुछ सालों के दौरान खाड़ी देशों में जाने वाले भारतीय कामगारों की संख्या में भी गिरावट आई. आंकड़े बताते हैं कि साल 2019 में करीब 3.34 लाख लोग खाड़ी मुल्कों में नौकरियों के लिए गए जो 2015 के मुकाबले आधे से भी कम हैं.

कब तक रहेंगे ये हालात?

कोरोना संकट के कारण खाड़ी देशों में बढ़ी आर्थिक मुश्किलों के कारण ही वंदे भारत मिशन के तहत चलाई जा रही उड़ानों में अब तक 2 लाख से अधिक लोग केवल खाड़ी देशों से वापसी कर चुके हैं. वहीं मई के पहले सप्ताह से शुरू इस मिशन के सहारे खाड़ी मुल्कों से लोगों के आने का सिलसिला जारी है.

हालांकि पूर्व राजनयिक त्रिगुणायत कहते हैं कि इसे एक मीडियम टर्म समस्या के तौर पर देखना चाहिए. खाड़ी मुल्कों में भारतीय कामगारों और पेशेवरों की साख के मद्देनजर इस बात की पूरी संभावना है कि जब भी आर्थिक स्थितियां सुधरेंगी या अर्थव्यवस्था में नए अवसर बनेंगे तो भारतीय पेशेवरों के लिए भी अवसर खुलेंगे.

वतन लौटे कामगारों की हो रही स्किल मैपिंग

इस बीच जानकार यह ज़रूर मानते हैं कि कामगारों के लौटने की इस समस्या से भारत की अर्थव्यवस्था को हर साल मिलने वाली करीब 45 अरब डॉलर की आर्थिक मदद पर भी कैंची चलेगी. खाड़ी मुल्कों में काम करने वाले भारतीय कामगार और पेशेवर हर साल लाखों डॉलर की रेमिटेंस मनी देश में भेजते हैं. केरल जैसे राज्य की अर्थव्यवस्था में इसकी बड़ी अहमियत है.

ऐसे में भारत सरकार के लिए जहां देश लौट रहे कामगारों की सुरक्षित वापसी एक चुनौती है बल्कि उनके लिए रोजगार के अवसर बनाना भी एक परीक्षा है. इस इम्तिहान की बेहतर तैयारी के लिए ही वंदे भारत मिशन के तहत लौट रहे भारतीय कामगारों की स्किल मैपिंग की जा रही है. यानी उन्हें क्या काम आता है इसका भी लेखाजोखा रखा जा रहा है, ताकि ज़रूरत पड़ने पर उद्योगों को भी बेहतर कामगार उप्लब्ध कराए जा सकें.

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