नई दिल्ली: भारत की 15 फीसदी आबादी में कोरोना वायरस के एंटीबॉडी मौजूद हैं. करीब 18 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनके शरीर में वायरस आकर जा चुके है. ये दावा किया है भारत की एक बड़ी लैब थायरोकेयर ने. लैब ने अपने पास आये 75 हजार लोगों के सैंपल के आधार पर ये आंकलन किया है.


अगर कोई शख्स कोरोना ग्रस्त होता है, तो उसका शरीर वायरस से लड़ने के लिये एंटीबॉडी तैयार कर लेता है. कुछ लोगों में कोरोना के कोई लक्षण नहीं दिखते, कुछ में मामूली लक्षण दिखते हैं, तो कुछ की जान चली जाती है. एंटीबॉडी टेस्ट करने से पता चल जाता है कि इंसान को कोरोना हो चुका है या नहीं.


थायरोकेयर के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. ए. वेलुमणि के मुताबिक देश की आबादी के एक बड़े हिस्से ने तेजी से कोरोना से प्रतिरक्षा की क्षमता विकसित कर ली है. उन्होने ये निष्कर्ष भारत के 300 से ज्यादा शहरों से मिले सैंपल के आधार पर निकाला है.


वेलुमणि के मुताबिक जिन शहरों में कोरोना के ज्यादा मामले आए हैं, वहां से एंटीबॉडी पॉजिटिव के भी ज्यादा मामले मिले हैं. मुंबई में लिये गये सैंपल में 27 फीसदी लोग एंटीबॉडी पॉजिटिव पाए गए, नई दिल्ली में 34 फीसदी, पटना में 18 फीसदी पाए गए. वहीं बैंगलुरू में 15 फीसदी, हैदराबाद में 21 फीसदी, चेन्नई में 30 फीसदी, कोलकाता में 20 फीसदी और अहमदाबाद में 18 फीसदी लोगों में कोरोना के एंटीबॉडी मिले हैं.


वेलुमणि के मुताबिक इस डेटा की कुछ सीमाएं हैं, जैसे कि डेटा तैयार किये जाते वक्त सैंपल की आयु वर्ग, लिंग और व्यवसाय के आधार पर पहचान नहीं की गई. उन्होने ये भी स्पष्ट किया कि उत्तर भारतीय शहरों से उन्हें कम सैंपल मिले हैं. एंटीबॉडी टेस्ट पूरी तरह से फुल प्रूफ नहीं है. इसमें 5 से 10 फीसदी तक गलत नतीजे भी आ सकते हैं.


इन दिनों कई कॉरपोरेट संस्थान जो लॉकडाउन के बाद अपना कामकाज शुरू कर रहे हैं, वो अपने कर्मचारियों का एंटीबॉडी टेस्ट करवा रहे हैं. ये टेस्ट स्वैब टेस्ट के मुकाबले काफी सस्ता है और इसके नतीजे भी चंद घंटो में मिल जाते हैं.


हालांकि इसे स्वैब टेस्ट का विक्लप नहीं माना जा सकता. इस टेस्ट में स्वैब के बदले खून का सैंपल लिया जाता है. प्लाजमा थेरेपी में एंटीबॉडी टेस्ट को खासा मददगार माना गया है. कोरोना से ठीक होने वाले जिस शख्स में अच्छी तादाद में एंटीबॉडी होते हैं, वो प्लाजमा दान करके कोरोना से गंभीर रूप से प्रभावित मरीज की जान बचा सकता है.


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