साहिबगंज: भारत चीन सीमा पर पूर्वी लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में शहीद होने वाले कुंदन कुमार ओझा अपनी नवजात बेटी का चेहरा नहीं देख सके. उनके घर में 17 दिन पहले बेटी ने जन्म लिया था. ओझा ने अपनी मां से आखिरी बातचीत में वादा किया था कि जैसे ही उन्हें छुट्टी मिलेगी वह घर आएंगे.
पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में सोमवार की रात चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में शहीद होने वाले 20 सैनिकों में शामिल 28 साल के ओझा के मुख से यह आखिरी शब्द थे जो उनके परिजनों ने सुने थे .
झारखंड के साहिबगंज जिले के दिहारी के गांव के रहने वाले ओझा के पिता रवि शंकर ओझा पेशे से किसान हैं . चार भाई बहनों में ओझा दूसरे नंबर पर थे और वह 2011 में दानापुर में सेना में शामिल हुये थे . देश के सपूत करीब डेढ़ साल पहले विवाह के बंधन में बंधे थे .
7 जून को हुई थी मां से आखिरी बार बातचीत
शहीद के चचेरे भाई प्रभात कुमार ने बताया कि आखिरी बार सात जून को उनकी बातचीत उनकी मां भवानी देवी से हुयी थी . इसमें उन्होंने भोजपुरी में कहा था, “अभी त लद्दाख मं बानी, और छुट्टी मिली तब बेटी के देखे आयेम . (अभी तो मैं लद्दाख में हूं और छुट्टी मिलने पर बेटी को देखने आउंगा)” ओझा के माता पिता इतने भावुक थे कि बातचीत करने की स्थिति में नहीं थे. उनके चचेरे भाई ने रूंधे गले से कहा, 'उन्हें हमेशा से भारतीय सेना में शामिल होने का जुनून था . वह सुबह तीन बजे जग जाते थे और तैयारी संबंधी दैनिक अभ्यास शुरू कर देते थे .'
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