नई दिल्ली: चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद में भारत ने अब एलएसी की जमीन से लेकर कूटनीति के मैदान और अर्थव्यवस्था के आंगन तक प्रतिरोध का मजबूत चक्रव्यूह बिछा लिया है. भारत की कोशिश है चीन को उसकी करतूतों की कीमत का एहसास दिलाया जाए. ड्रेगन को ताकत की भाषा में समझाया जाना जरूरी है कि अगर अब सरहद पर छेड़ोगे तो भारत भी छोड़ेगा नहीं…


LAC का चक्रव्यूह
युद्ध के मैदान में अक्सर कहा जाता है कि बाजे उसके हाथ होती है जिसके पास रास्ता होता है और पहाड़ी इलाके में रास्तों पर दबदबा उसका होता है जिसके पास पहाड़ की चोटी होती है. लिहाजा लद्दाख के पठार में भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव में बीते एक हफ्ते के घटनाक्रम ने बाजी बदल दी है. भारतीय सेना ने चीन की संभावित चालों का दरवाजा बंद करने वाली कार्रवाई करते हुए अपनी मजबूत मोर्चाबंदी का चक्रव्यूह बना बिछा दिया है. इसमें पहाड़ों की चोटी पर सैनिकों की मोर्चाबंदी से लेकर बख्तरबंद दस्तों की नाकेबंदी शामिल है. चीन के सैनिक ठिकाने भारतीय मिसाइलों की जद में है तो युद्धक विमानों से लेकर सैटेलाइट तक निगरानी रखी जा रही है.


यही वजह थी कि 29/30 अगस्त की मध्यरात्रि को चीन के सैनिकों ने जब चुशुल गांव का पास स्पांगुर गैप में अपने सैनिक दस्तों और बख्तरबंद टुकड़ियों के साथ आगे बढ़ने का प्रयास किया तो भारत की इलेक्स्ट्रॉनिक निगरानी उनकी इस हरकत से भारतीय सेना को आगाह कर दिया. करीब तीन घंटे तक आमने-सामने चले तनाव के बाद कदम चीन को ही पीछे खींचना पड़ा. क्योंकि रास्ता रोके खड़े बख्तरबंद दस्तों को बिना लड़ाई के लांघना चीन के लिए असम्भव था. इतना ही नहीं चीन का सैनिक जमावड़ा मगर और गुरुंग हिल की ऊंचाइयों पर मौजूद भारतीय सैनिकों की निगरानी में भी है और फायरिंग रेंज में भी है.


सूत्रों के मुताबिक भारतीय सेना की व्यूह रचना में अकेले पेंगोंग झील और आसपास के इलाके में 2 रेजिमेन्ट टी90 टैंक की तैनाती कर दी गई है. इसके अलावा 50 किमी के दायरे में चंद सेकेंड का भीतर ताबड़तोड़ वार करने में सक्षम पिनाका मिसाइल बैटरी भी लगा दी हैं. चुशुल के एडवांस लैंडिंग ग्राउंड को सिक्योर कर दिया गया है ताकि किसी टकराव की सूरत में भी यहां विमानों की आवाजाही मुकम्मल की जा सके. इसके अलावा इंजीनियर कोर के दस्ते डीबीओ की हवाई पट्टी को पक्का करने में लगे हैं.


बताया जाता है कि थाकुंग से रेचिन ला तक हेलमेट टॉप, पॉइंट 5157, गुरुंग हिल, गोस्वामी हिल, मगर हिल में चोटियों को अपने कब्जे में ले लिया है. पेंगोंग झील के उत्तर की इन पहाड़ियों पर ही नहीं, उत्तर में फिंगर-4 के करीब की ऊंचाई वाली पहाड़ियों पर भी निगरानी के पिलबॉक्स मोर्चे भारत ने बना लिए है. ऐसे में पेंगोंग झील के उत्तरी छोर से लेकर दक्षिण में रेचिन ला तक के 130 किमी से ज्यादा इलाके में चीनी सेना की, खुरनाक फोर्ट, श्रीजप, मोल्डो और स्पांगुर स्थित सैनिक चौकियां भारतीय चक्रव्यूह में घिर चुकी है. लिहाजा यहां से चीन की कोई भी हरकत भारतीय फायरिंग रेंज से बाहर नहीं होगी.


भारत की जमीन पर दाखिल होना चीन के लिए मुमकिन नहीं
इतना ही नहीं सूत्र बताते हैं कि भारत ने देपसांग, गलवान, हॉट स्प्रिंग जैसे इलाके में पहले से चल रहे आमने-सामने के मोर्चे को भी मजबूत किया है. यानी संदेश साफ है कि अब इलाके में बिना लड़ाई के भारत की किसी जमीन में दाखिल होना चीन के लिए मुमकिन नहीं है. भारत में अपने मोर्चों को मजबूत करने के लिए अपने स्ट्राइक कोर के रिजर्व दस्तो को भी लद्दाख थियेटर में पहुंचाया है. ध्यान रहे कि स्ट्राइक कोर भारतीय सेना का वो प्रहार दस्ता है जिसकी भूमिका लड़ाई की स्थिति में आगे बढ़कर वार करने की होती है.


पहाड़ी क्षेत्र में युद्ध के लिए चूंकि अधिक सैन्य दस्तों की जरूरत होती है लिहाजा, भारत ने लद्दाख के सैनिक लिहाज से महत्वपूर्ण इलाकों में 10 हजार से अधिक सैनिकों को अग्रिम मोर्चों पर तैनात किया है. इसका अलावा इससे अधिक संख्या में दस्तों भी लेह स्थित 14 कोर के इलाके में पहुंचाए गए हैं.


कूटनीति का चक्रव्यूह ...
सैनिक स्तर पर घेराबंदी के साथ साथ भारत ने कूटनीतिक स्तर पर भी चीन के खिलाफ अपनी व्यूहरचना मजबूत की है. इस कड़ी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की तीन महीनों के दौरान हो रही दूसरी रूस यात्रा भी महत्वपूर्ण है. रक्षा मंत्री की रूस यात्रा में भारत का प्रयास अपने रणनीतिक सहयोगी रूस को मौजूदा सीमा हालात की जानकारी साझा करने, चीन के कारस्तानियों के बारे में बताने और अहम रक्षा सौदों की रफ्तार बढ़ाने पर होगा.


सूत्रों के मुताबिक, S-400 मिसाइल सिस्टम की जल्द डिलेवरी किए जाने, AK-203 असॉल्ट रायफल की पहली खेप जल्द मुहैया कराए जाने और भारतीय शस्त्रागार में मौजूद रूसी सैन्य उपकरणों के मरम्मत
की जरूरतें पूरी करने जैसे अहम मोर्चे शामिल हैं.


इतना ही नहीं अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, इजराइल समेत अहम रणनीतिक सहयोगियों के साथ भी चीन सीमा पर चल रहे तनाव को लेकर संवाद बनाए हुए है. यही वजह है कि अमेरिका ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रहे सैन्य तनाव को लेकर कहा है कि चीन कोरोना संकट का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है. इतना ही नहीं चीन के खिलाफ फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन समेत अनेक देशों में भी विरोध और चिंताओं से सुर उठे हैं. भारत ने बीते तीन महीनों के दौरान अपने रणनीतिक संवाद की कड़ी में रूस के अलावा म्यांमार और वियतनाम जैसे चीन के दूसरे पड़ोसी मुल्कों के साथ चिंताएं साझा करने और बातचीत का सिलसिला जारी रखा है.


जाहिर तौर पर मौजूद स्थिति में वैश्विक कोरोना संकट के कारण सवालों के कठघरे में घिरे चीन के किसी सैन्य दुस्साहस की सुनवाई के दरवाजे काफी कम हैं.


आर्थिक चक्रव्यूह…
चीन के खिलाफ भारत के आर्थिक चक्रव्यूह पर चीन ने भले ही पहले मोबाइल एप प्रतिबंध जैसे कदमों को कमतर आंकते हुए मखौल उड़ाया हो. लेकिन इसकी आंच का असर उसी कुछ ही हफ्तों में समझ आ गया जब उसके दो सौ से अधिक मोबाइल एप न केवल भारत में प्रतिबंधित हो गए बल्कि भारतीय कार्रवाई के बाद अमेरिका जैसे बड़े मुल्क ने भी उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी. अकेले टिकटॉक जैसे चीनी मोबाइल ऐप को हुआ घाट लाखों डॉलर का है. आलम यह तक है कि अब टिकटॉक कम्पनी बिकने की कगार पर है.


चीन के लिए भारत 100 अरब डॉलर का कारोबारी बाजार है. इसमें 53 अरब डॉलर के निर्यात के साथ फायदे का पलड़ा अब तक उसके पक्ष में रहा. हालांकि बदले सूरत-के-हाल में चीन के लिए अपने इस बाजार को बचाने की चुनौती है.


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