लद्दाख: पूर्वी लद्दाख का पूरा इलाका यानि लेह से कारू, चांगला पास (दर्रा), दुरबुक, गलवान, बुर्तसे, डेपसांग प्लेन, डीबीओ, गोगरा, हॉट स्प्रिंग, फिंगर एरिया, थाकूंग, चुशुल, रेजांगला, रेचिन-ला सभी इलाके 14 हजार फीट से 18 हजार फीट पर है. यहां तापमान माइनस (-) 40 से 50 डिग्री तक पहुंच जाता है और बेहद ही सर्द हवाएं चलती हैं. ऐसे में सैनिकों के लिए साधारण टेंट में रहना बेहद मुश्किल हो जाएगा. उनके लिए आर्टिक-टेंट की जरूरत होगी या फिर ऐसे बैरक की जरूरत होगी जहां सैनिक ठंड से बच सकें. आने वाले महीनों में भारतीय सैनिक कड़ाके की ठंड में एलएसी पर किस तरह चीनी सेना का मुकाबला करेंगे उसके लिए ही एबीपी न्यूज की टीम भारतीय सेना के एक फॉरवर्ड ऑर्डनेंस डिपो पहुंची.


टेंट में सैनिकों को ठंड से बचाने के लिए खास हीटर लगे हुए हैं
इस आयुद्ध डिपो में सेना के अधिकारियों ने बताया कि पूर्वी‌ लद्दाख के अलग अलग उंचाई वाले इलाकों और जलवायु के अनुरूप तीन-चार तरह के टेंट सैनिकों को मुहैया कराए जा रहे हैं. सबसे पहले आता है हरे रंग का एक बड़ा टेंट जिसमें 15-20 सैनिक आराम से रह सकते हैं. ये उन इलाकों के लिए है जहां थोड़ी ठंड कम पड़ती है यानी जहां तापमान माइन (-) 10-20 डिग्री रहता है. इस टेंट में सैनिकों को ठंड से बचाने के लिए खास हीटर लगे हुए हैं.



माइनस 40-50 डिग्री में भी सैनिकों को सुरक्षित रखते हैं आर्टिक-टेंट
लेकिन सबसे खास है माइनस (-) 40-50 डिग्री में भी सैनिकों को हड्डी गलाने वाली सर्दी से बचाने के लिए खास आर्टिक-टेंट. इस टेंट में छह-सात सैनिक आराम से रात बिता सकते हैं.‌ इस डबल लेयर टेंट में अंदर की तरफ खास कुइलिट‌(रजाई) लगी है. इसे सुपर हाई आल्टिट्यूड टेंट के नाम से भी जाना जाता है.


इसके अलावा बडी-पेयर यानि दो सैनिकों के लिए भी एक छोटा सा टेंट होता है. सैनिक बारिश या बर्फबारी से बचने के लिए इस छोटे से टेंट में रुक सकते हैं. एबीपी न्यूज संवाददाता ने खुद इस टेंट में अंदर जाकर देखा कि इसमें सैनिक कैसे रात बिता सकते हैं.


सैनिकों को दिए गए स्पेशल यूनीफॉर्म और बूट्स
इसके अलावा सैनिकों के लिए स्पेशल क्लोथिंग यानि यूनीफॉर्म का इंतजाम भी भारतीय सेना कर चुकी है. हाई ऑल्टिट्यूट इलाकों में सैनिकों को स्पेशल क्लोथिंग दी जा रही है. इसमें खास ऐसी जैकेट्स और ट्राउजर्स हैं जो माइनस (-) 40 डिग्री में भी शरीर को गरम रख सकती है.‌ भारतीय सेना दो टियर के लिए अलग अलग जैकेट्स हैं. एक सफेद रंग की जैकेट है जो बर्फ में कैमोफैलाज का काम करती है. बूट्स भी खास ऐसे हैं कि जो बर्फ पर ना तो स्किड करते हैं और ना ही बर्फ की ठंड से पैरों की उंगलियां यानि फ्रॉस्टबाइट यानि उंगलिया नहीं गलतीं. इसके अलावा वूलन शॉक्स और ग्लब्स सहित कुल 21 एक्यूपमेंट-गियर सैनिकों को दिए जाते हैं.



सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर निभा रही है हर जिम्मेदारी
एबीपी न्यूज को मिली जानकारी के मुताबिक, मई महीने में चीन से शुरू हुए विवाद से पहले तक पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानि एलएसी पर एक डिवीजन तैनात रहती थी यानि करीब 20 हजार सैनिक. लेकिन अब यहां 40-50 सैनिक तैनात हैं यानि लगभग पूरी एक कोर. ऐसे में इन अतिरिक्त सैनिकों के लॉजिस्टिक को पूरा करना सेना के लिए एक बड़ी चुनौती थी. उनके लिए स्पेशल-क्लोथिंग (जैकेट, बूटंस इत्यादि) खाना-पीना, राशन और रहने के लिए बैरक भी तैयार करने थे. लेकिन ‌सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर ने ये काम पूरा कर दिया है.


लेह में त्रिशुल डिवीजन है तैनात
आपको बता दें कि लेह स्थित 14वीं कोर (फायर एंड फ्यूरी कोर) के अंतर्गत आने वाली 3डिव को त्रिशुल डिवीजन के नाम से भी जाना जाता है. एक डिव में करीब 10 हजार इंफेंट्री यानि पैदल सैनिक होते हैं (करीब तीन ब्रिगेड). इसके अलावा डिव में आर्मर्ड यानि टैंक ब्रिगेड, आर्टलरी यानि तोपखाना, एयर-डिफेंस, इंजीनियरिंग इत्यादि भी शामिल होते हैं. ऐसे में एक डिवीजन की पूरी फोर्स करीब-करीब 20 हजार तक पहुंच जाती है. यानि शांति के समय में 20 हजार सैनिक पूर्वी लद्दाख में चीन से सटी एलएसी पर तैनात रहते हैं.



स्ट्राइक कोर में कुल 40-50 हजार सैनिक होते हैं
लेकिन मई के महीने में जब पूर्वी लद्दाख में चीन से हालात बिगड़े तो भारतीय सेना ने अपनी एक स्ट्राइक कोर को लद्दाख में तैनात कर दिया था. ये स्ट्राइक कोर युद्द के समय में दुश्मन की सीमा में घुसकर हमला करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. एक स्ट्राइक कोर में कुल 40-50 हजार सैनिक होते हैं. लेकिन एबीपी न्यूज को जो जानकारी मिली है उ‌सके मुताबिक इस ‌स्ट्राइक कोर की करीब दो डिवीजन यहां तैनात की गई है. यानि 25-30 अतिरिक्त सैनिक. ऐसे में एक अनुमान के मुताबिक, भारत के 40-50 हजार सैनिक पूर्वी लद्दाख में तैनात हैं.


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