Lal Chowk And Tiranga: कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा समापन की ओर बढ़ रही है. 7 सितम्बर, 2022 को निकली यात्रा का 5 महीने बाद 30 जनवरी को जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में समापन होना है. इससे पहले रविवार (29 जनवरी) को राहुल गांधी ने कश्मीर के ऐतिहासिक लाल चौक पर तिरंगा फहराया. कल यानी मंगलवार को शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में यात्रा का समापन समारोह होगा. राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा में जिस बात की बहुत ज्यादा चर्चा है, उनमें से एक लाल चौक पर तिरंगा फहराने का कार्यक्रम भी है.


जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 नहीं हटाई गई थी, तो अक्सर देश के किसी न किसी हिस्से से कश्मीर के लाल चौक पर जाकर तिरंगा फहराने की बात सुनाई देती थी. पहली बार लाल चौक पर तिरंगे की देश भर में चर्चा हुई जब बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी ने वहां पर तिरंगा फहराया.


लाल चौक की अहमियत
अगस्त 2019 में धारा 370 हटने के बाद से तो लाल चौक पर तिरंगा फहरा रहा है लेकिन उसके पहले ऐसा करना वहां खतरे से खाली नहीं था. लाल चौक का नाम मॉस्को के रेड स्क्वॉयर के आधार पर रखा गया था. 1980 में इस जगह पर एक घंटाघर बना और इसके बाद से ये जगह राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गई. इसी के कुछ समय बाद यहां आतंकवाद ने अपने कदम जमाने शुरू कर दिए. इस दौर में लाल चौक पर कड़ी सुरक्षा रहती थी. गणतंत्र दिवस के दिन भी यहां तिरंगा नहीं फहराया जाता था.


मुरली मनोहर जोशी ने फहराया तिरंगा
1991 का साल था. बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी ने कन्याकुमारी से एकता यात्रा निकाली. यात्रा कश्मीर के श्रीनगर पहुंची जहां लाल चौक पर झंडा फहराया जाना था. इस दौरान उनके साथ वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी थे. जो उस समय यात्रा के व्यवस्थापक थे. जोशी ने कहा था कि वे लोग वहां 26 जनवरी को तिरंगा फहराना चाहते थे. लोगों के पास वहां तिरंगा ही नहीं था. लोगों ने बताया कि यहां तिरंगा नहीं मिलता है. इसके बाद हम लोगों ने लाल चौक पर तिरंगा फहराने का फैसला किया. 


1948 में पंडित नेहरू ने भी फहराया था
मुरली मनोहर जोशी के झंडा फहराने की घटना की पूरे देश में चर्चा हुई लेकिन लाल चौक पर इससे पहले भी झंडा फहराया जा चुका था. साल 1948 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी यहां झंडा फहराया था. मौका था पाकिस्तान पर भारत की जीत का. उस समय जवाहरलाल नेहरू के साथ शेख अब्दुल्ला भी मौजूद थे. तिरंगा फहराए जाने के बाद शेख अब्दुल्ला ने अमीर खुसरो की कविता भी पढ़ी थी.


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