LK Advani: बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा. बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शुमार आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है. आडवाणी ने अपने राजनीतिक करियर में काफी कुछ हासिल किया. वह देश के गृह मंत्री रहे और यहां तक की उप प्रधानमंत्री बनने का भी मौका उन्हें मिला. हालांकि, इतना सब कुछ हासिल करने के बाद भी वह कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए. 


आडवाणी को राजनीतिक करियर में प्रधानमंत्री बनने का मौका भी मिला, मगर अटल बिहारी वाजपेयी के एक ऐलान के चलते उनकी ये इच्छा भी पूरी नहीं हो सकी. आइए आज आपको इसी राजनीतिक किस्से के बारे में विस्तार से बताते हैं. 


जब अटल बिहारी को बनवाया पीएम


दरअसल, बीजेपी ने मुंबई में 1993 में 11 से 13 नवंबर के बीच एक अधिवेशन किया. इस दौरान लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के अध्यक्ष थे. उन्होंने मुंबई के दादर में एक रैली के दौरान कहा कि देश में इन दिनों एक नारा उठ रहा है, 'अबकी बारी, अटल बिहारी'. आडवाणी ने उस दिन अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. उनके इस ऐलान से वहां मौजूद बीजेपी नेता और कार्यकर्ता हैरान रह गए. थोड़ी ही देर में रैली में तालियां बजने लगीं. 


उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी ने आडवाणी से पूछा कि आपने इतना बड़ा ऐलान करने से पहले मुझसे पूछा क्यों नहीं? इसके जवाब में आडवाणी ने कहा था कि अगर मैं पूछता तो क्या आप हां कहते. उसी रात जिस होटल में आडवाणी ठहरे हुए थे, वहां बीजेपी के तत्कालीन महासचिव के एन गोविंदाचार्य आए और उन्होंने आडवाणी से पीएम चेहरे को लेकर सवाल किया. उन्होंने कहा कि आपको इतना बड़ा ऐलान करने से पहले संगठन और संघ से चर्चा करनी चाहिए थी. 


कैसे कांग्रेसी नेता ने तय किया पीएम के लिए अटल बिहारी का नाम?


हालांकि, उस वक्त किसी को ये नहीं मालूम था कि कहीं न कहीं वाजपेयी का नाम आगे करने में कांग्रेस की भी बड़ी भूमिका थी. दरअसल, कांग्रेस के एक नेता और गांधी परिवार के करीबी माखन लाल फोतेदार का वाजपेयी को पीएम बनाने में बड़ा रोल था. फोतेदार ने अपनी किताब 'द चीनार लीव्स' में दावा किया कि किस तरह उन्होंने वाजपेयी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचवाया था. उन्होंने इस किताब में बताया कि किस तरह उन्होंने आडवाणी तक अपनी बात पहुंचवाई थी. 


माखन लाल फोतेदार ने अपनी किताब में बताया कि जब वह सांसद थे, तो उस वक्त उनकी दोस्ती बीजेपी सांसद कृष्ण लाल शर्मा से हो गई. वह बताते हैं कि कृष्ण लाल शर्मा ने उन्हें बताया था कि बीजेपी चाहती है कि वे पीएम के चेहरे के साथ चुनावी मैदान में उतरे, क्योंकि देश में कद्दावर नेता नहीं है. आडवाणी ही एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिनकी पूछ कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक है. उन्हें देश में हर कोई जानता है, जिसका फायदा पार्टी को मिलेगा. 


इस पर फोतेदार ने कृष्ण लाल शर्मा को समझाया कि आडवाणी जिस समुदाय से आते हैं, वो यहां अल्पसंख्यक है. आडवाणी अच्छे वक्ता भी नहीं हैं और उनकी छवि हार्डलाइनर की हैं. ऐसे में बीजेपी उनके दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकती हैं. किताब में फोतेदार ने आगे जिक्र किया है कि किस तरह दो चार मुलाकात के बाद उन्होंने कृष्ण लाल शर्मा को समझा लिया और फिर ये बाद कृष्ण लाल शर्मा ने आडवाणी को समझाई. इस तरह आडवाणी ने आगे चलकर अटल बिहारी का नाम पीएम पद के लिए घोषित कर दिया. 


एक ऐलान से पीएम की कुर्सी से दूर हो गए आडवाणी


आगे चलकर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने सरकार भी बनाई. 1999 में तो पूर्व बहुमत की सरकार बनाई गई और फिर अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने और डिप्टी प्रधानमंत्री आडवाणी को बनाया गया. ये मानकर चला गया कि आगे चलकर उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंप दी जाएगी. संघ भी चाहता था कि आडवाणी को पीएम बनाया जाए. इस बात की चर्चाएं जोरों पर थीं कि बीच कार्यकाल में सत्ता का ट्रांसफर होगा. 


वहीं, संसद में पार्टी के सांसदों को संबोधित करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐलान कर दिया कि 'न टायर्ड, न रिटायर्ड, आडवाणी जी के नेतृत्व में विजय की ओर प्रस्थान'. इस तरह उन्होंने ये साफ कर दिया कि वह 2004 में कार्यकाल पूरा होने तक पद नहीं छोड़ने वाले हैं. संघ को भी ये मानना पड़ा कि अटल का कोई विकल्प नहीं है. इस तरह आडवाणी को अपनी बार का इंतजार ही करना पड़ा. 2004 में बीजेपी को लोकसभा चुनाव में हार मिली और यही हाल 2009 में भी हुआ. 


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