पटना: बिहार के चर्चित चारा घोटाले से जुड़े 3 मामलों में रांची की विशेष अदालत लालू यादव पर अपना फैसला सुनाएगी . कल का फैसला सुनने के लिए लालू यादव रांची पहुंच चुके हैं. 2जी के बाद अब लालू 'जी' का क्या होगा? 23 दिसंबर को रांची में सीबीआई की विशेष अदालत में ये फैसला हो जाएगा कि नया साल उनका जेल में या फिर घर में बीतेगा. देवघर कोषागार से 85 लाख रुपये के अवैध निकासी के मामले में रांची की विशेष अदालत में सबूत और गवाह के साथ जिरह पूरी हो चुकी है. इस मामले की अंतिम सुनवाई यानी फैसला के लिए 23 दिसंबर का वक्त मुकर्रर कर दिया गया है.
लालू प्रसाद यादव जेल जाएंगे या फिर बरी होंगे ये सब कुछ तय हो जाएगा. ये वाकया 1996 का है जब लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे. बिहार के पशुपालन विभाग में फ़र्ज़ी बिल देकर बिहार के कई जिलों के कोषागार से लाखों रुपये निकालने का खेल चल रहा था. ऐसे तो ये घोटाले का खेल 1978 से ही चल रहा था पर उस वक्त इसका आकार बहुत छोटा था. लालू यादव जब 1990 में मुख्यमंत्री बने तब से ये मामला आगे बढ़ने लगा. ये मामला पहली बार 1994 में सामने आया. ये वही साल है जब लालू के साथी रहे नीतीश कुमार ने लालू से अलग अपनी पार्टी समता पार्टी बनाई.
समता पार्टी की ओर से शिवानन्द तिवारी और ललन सिंह ने ये मामला उठाया तो बीजेपी की तरफ से सरयू राय ने. उस वक्त लालू ने इन आरोपों को खारिज़ कर दिया और विरोधियों की साजिश बताया. मामला धीरे धीरे बढ़ने लगा. 1996 में लालू राष्ट्रीय राजनीति में अपना पांव जमाने में लग गए. 1995 की भारी जीत से उत्साहित होकर प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने लगे. जनता दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की फिराक में थे. चारा घोटाले पर अखबारों में छप रही खबरों की अनदेखी करने लगे. 1996 में सरयू राय ने पटना हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर दिया. मामले की सुनवाई चल रही थी कि इसी बीच चाईबासा में तत्कालीन डीसी अमित खरे ने अवैध निकासी की जांच करा दी और मामले को सामने ला दिया.
लालू यादव ने पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी. पर इस जांच को सबूतों को मिटाने की कोशिश के तौर पर देखा गया. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के साथ साथ पटना हाई कोर्ट की देख रेख में जांच का आदेश दे दिया. सीबीआई की विशेष अदालत में मामले की सुनवाई होने लगी. 1997 में लालू यादव को जेल जाना पड़ा. जेल जाने से पहले बिहार के सीएम की कुर्सी अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी. इस तरह जेल से बिहार की सरकार चलाने लगे. नेता, मंत्री अधिकारी सब जेल आते और आदेश लेकर जाते. पहले तो लालू के लिए अलग से अस्थाई जेल बनाया गया पर बाद में दूसरे कैदियों के साथ बेउर जेल में शिफ्ट किया गया.
लालू ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान मज़ाक में कहा भी कि उन्होंने ही जेल बनवाया क्या पता था कि उसी जेल में कैदी के तौर पर रहना होगा. न्यायिक प्रक्रिया में लालू घिरते चले गए और सत्ता की पकड़ भी ढीली पड़ी पर सरकार में बने रहे. 2004 तक कांग्रेस की मदद से बिहार में शासन करते रहे पर 2005 में बिहार से सरकार चली गई तो केंद्र में 2004 से 2009 रेल मंत्री बनकर आराम से राज करते रहे. 2009 में कांग्रेस का साथ छोड़कर होकर लालू ने अपना हाथ काट लिया. केंद्र में यूपीए की सरकार को समर्थन देते रहे पर अलग थलग पड़े रहे. इसी बीच 2013 में सीबीआई की विशेष अदालत ने पांच साल की सजा सुनाई. लालू पर मुख्यमंत्री रहने के दौरान चाईबासा, दुमका, भागलपुर, देवघर में भी अवैध निकासी की रिपोर्ट सीएजी ने दिया था. लालू के खिलाफ़ हर जिले के अवैध निकासी मामले में अलग अलग मुकदमा दर्ज किया था. सीबीआई हर मामले में अलग अलग चार्जशीट दाखिल कर चुकी थी. पर लालू ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा था कि सभी मामले एक ही प्रकार के हैं इसलिए बाकी मामलों में सुनवाई रोकी जाए. मामला कई सालों तक पेंडिंग रहा पर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी सभी पांच मामलों को नौ महीने के भीतर पूरी कर लेने का आदेश दिया. 23 दिसंबर को देवघर कोषागार से अवैध निकासी मांमले में दर्ज आरसी 64 ए 96 पर फैसला होना है. Rc64(a)96 में 38 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर है. इनमें से 22 के खिलाफ मुकदमा चल रहा है. जबकि 11 मौत हो चुकी है. 3 सरकारी गवाह बन गए.
1991-92, 92-93 ,93-94, में कुल 85 लाख गबन का आरोप. 156 गवाह पेश हुए. 2004-2005 में ही आरोप पत्र दाखिल हुआ था. जबकि लालू यादव की तरफ से आर्डरशीट लगाया गया है 1996 का जिसमें लालू ने खुद कोर्ट में सरेंडर किया था. जिसमें तत्कालीन एसएसपी सुनील कुमार गवाह के रूप में पेश किये गए हैं. लालू की तरफ से वो चिट्ठी भी रिकॉर्ड में लगाया गया है जिसमें उन्होंने कार्रवाई के लिया लिखा था. लालू की तरफ से 15 गवाह पेश किये गए. जिसमें सुरेश पासवान (पूर्व मंत्री) डी पी ओझा(पूर्व डीजीपी ) भी हैं. यादव की तरफ से 15 गवाह पेश किए गए. सीबीआई की ओर से हमेशा ये दलील दी गयी कि लालू यादव जब मुख्यमंत्री थे तब इन्हें पूरे घोटाले की जानकारी शुरू से ही थी. पर सीएम रहते इन्होंने पूरे मामले को ढकने का काम किया. देवघर कोषागार से हो रही अवैध निकासी की जानकारी मिल चुकी थी और इस पर हो हल्ला मच चूका था.
सरकार को जिला स्तर पर और निगरानी को सूचना दी गई थी लेकिन सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई. कार्रवाई के लिए 1995 में जब फाइल लालू के पास गई तो बिना आर्डर के वापिस कर दिया. तब तक राजनीतिक गलियारों में हंगामा खड़ा हो गया था. दबाव में फरवरी 1996 में एक एसआईटी गठित कर आदेश दिया की एक महीने में जांच कर के रिपोर्ट दे. लालू हर बार विधानसभा की लोक लेखा समिति से चारा घोटाले की जांच करवाने की बात कह कर निगरानी से जांच कराने की बात को टाल दिया. जबकि सीबीआई का कहना है कि लोक लेखा समिति को अवैध निकासी की जांच करने का अधिकार नहीं था. नियम है कि सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रख देने के बाद ही पीएसी जांच कर सकती थी.
सुखदेव सिंह जो देवघर के तत्कालीन डीएम थे उन्होंने भी अवैध निकासी की चिट्ठी लिखकर सरकार के पास रिपोर्ट भेजा था. हालांकि बाद में उनका तबादला कर दिया गया. पशुपालन विभाग ने भी जांच के लिए चिट्ठी लिखी थी पर हर बार पीएसी का बहाना कर किसी भी दिशा में कार्रवाई नहीं की गयी. सीबीआई ने सबूत के तौर पर सप्लायर के द्वारा लालू के परिवार वालों को हवाई जहाज के टिकट मुहैया कराए गए इसका मौखिक ज़िक्र है. साक्ष्य के तौर पर सीबीआई ने विजिलेंस की वो फाइल भी लगाई है जिसे दो तीन बार लालू ने बिना कुछ लिखे नीचे भेज दिया था. साथ ही पशुपालन विभाग की वो चिट्ठी जिसमें जांच के लिया लिखा गया था. बिहार के निगरानी के तत्कालीन डीजी बीएन सहाय और तत्कालीन देवघर मजिस्ट्रेट एस एस तिवारी सीबीआई की तरफ से गवाह हैं.