नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को एक समारोह में कहा कि देश मुश्किल दौर से गुजर रहा है. उन्होंने कहा कि कहा कि देश में बढ़ती असहिष्णुता की खबरें सुर्खियां बटोर रही हैं. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि जिस देश ने संसार को वसुधैव कुटुम्बकम, सहिष्णुता, क्षमा करने का गुण दिया आज वह असहिष्णुता और मानव अधिकारों के उल्लंघन को लेकर सुर्खियों में है.
शासन और संस्थानों के कामकाज को लेकर मोहभंग की स्थिति की ओर ध्यान दिलाते हुए उन्होंने कहा कि संस्थान राष्ट्रीय चरित्र का आईना हैं और भारत के लोकतंत्र को बचाने के लिए उन्हें लोगों का विश्वास दोबारा जीतना चाहिए. उन्होंने संस्थानों और राज्य के बीच शक्ति के उचित संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया. मुखर्जी ने कहा कि संस्थानों की विश्वसनीयता बहाली के लिए सुधार संस्थानों के भीतर से होने चाहिए.
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमारे संविधान ने विभिन्न संस्थानों और राज्य के बीच शक्ति का एक उचित संतुलन प्रदान किया है. यह संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि पिछले 70 वर्षों में देश ने एक सफल संसदीय लोकतंत्र, एक स्वतंत्र न्यायपालिका और निर्वाचन आयोग, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, केंद्रीय सतर्कता आयोग और केंद्रीय सूचना आयोग जैसे मजबूत संस्थान स्थापित किए हैं जो हमारे लोकतांत्रिक ढांचे को जीवंत रखते हैं और उन्हें संबल देते हैं.
मुखर्जी ने कहा कि देश को एक ऐसी संसद की जरूरत है जो बहस करे, चर्चा करे और फैसले करे, न कि व्यवधान डाले. एक ऐसी न्यायपालिका की जरूरत है जो बिना विलंब के न्याय प्रदान करें. एक ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो राष्ट्र के प्रति समर्पित हो और उन मूल्यों की जरूरत है जो हमें एक महान सभ्यता बनाएं. उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसे राज्य की आवश्यकता है जो लोगों में विश्वास भरे और जो हमारे समक्ष उत्पन्न चुनौतियों से निपटने की क्षमता रखता हो.
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हालिया समय में ये संस्थान गंभीर दबाव में रहे हैं और इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं. शासन और संस्थानों की कार्यप्रणाली को लेकर व्यापक तौर पर उदासीपन और मोहभंग की स्थिति है. इस विश्वसनीयता को बहाल करने के लिए सुधार संस्थानों के भीतर से होने चाहिए.’’ मुखर्जी ने कहा कि शांति और सौहार्द्र तब होता है जब कोई देश बहुलवाद का सम्मान करता है, सहिष्णुता को अपनाता है और विभिन्न समुदायों के बीच सद्भावना को बढ़ावा देता है.
प्रणव मुखर्जी ने कहा, ‘‘जिस धरती ने दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम और सहिष्णुता, स्वीकार्यता और क्षमा के सभ्यतागत मूल्यों की अवधारणा दी, वह अब बढ़ती असहिष्णुता, रोष की अभिव्यक्ति और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर खबरों में है.’’ इस समारोह को पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद मुरली मनोहर जोशी ने भी संबोधित किया. उन्होंने शांतिपूर्ण, सौहार्द्रपूर्ण और सुखद समाज बनाने की दिशा में काम किए जाने पर जोर दिया.
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