सिख अफगान शरणार्थी ने बताया- वहां पगड़ी देखकर हमें कहा जाता था कि सिर पर क्या बांध रखा है, मुसलमान क्यों नहीं बन जाते
दिलीप सिंह 1 साल पहले ही अफगानिस्तान से आए हैं. उनका कहना है कि पगड़ी को देखकर वहां लोग कहते थे कि सिर पर ये क्या बंधा है, मुसलमान क्यों नहीं बन जाते.
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नई दिल्ली: बड़ी संख्या में अफगानिस्तान से आए सिख समुदाय के शरणार्थी दिल्ली के तिलक नगर इलाके में बसे हुए हैं. यहां पर गुरुद्वारा श्री गुरु अर्जुन देव जी को अफगानिस्तान से आए सिख समुदाय के लोग ही चला रहे हैं. यहां के प्रबंधन का कहना है कि अफगानिस्तान से जो भी परिवार आए हैं उन्हें गुरुद्वारा साहिब से मदद मिल रही है. उनको राशन, दवाइयां, मकान, खर्चा पानी जो भी मदद चाहिए गुरुद्वारा साहिब से वो लेकर जा रहे हैं. सब मजबूर हैं, कोई ठेला लगा रहा है, कोई रेहड़ी चला रहा है, सब अपना पेट पाल रहे हैं.
उन्होंने बताया, प्रताप सिंह जलालाबाद से 1991 में आए थे. जब हालात खराब होना शुरू हुए थे हम तब ही भारत आ गए थे. उसके बाद 2018 में जो हमला अफगानिस्तान में हुआ उसके बाद वहां से लोग निकलना फिर शुरू हो गए. उसमें हमारे 13 परिवार शहीद हो गए. 2021 में गुरुद्वारा साहब पर जो हमला हुआ उसके बाद बाकी लोग भी आना शुरू हो गए हैं. यहीं रह रहे हैं सब और परेशानी बहुत ज्यादा है. वहां 300-400 लोग हमारे अभी हैं जो आने के लिए इंतजार कर रहे हैं. अलग-अलग गांवों और कस्बों से लोग आकर काबुल में रह रहे हैं. जैसे ही हालात ठीक होंगे तो उनको ले आएंगे.
गुरनाम सिंह 2018 के अटैक में उनके घर के लोग शहीद हो गए जिसके बाद वो भारत आ गए. गुरनाम सिंह का कहना है कि 2021 के हमले में 25 लोग हमारे और शहीद हो गए. हालात तो वहां 40 साल से खराब हैं. अभी जो लोग वहां हैं वो सब जलालाबाद, गजनी और बाकी जगहों से काबुल में आकर बैठे हुए हैं. उनसे बात नहीं हो पा रही है. वो आना तो चाहते हैं लेकिन जब हालात ठीक होंगे तब ही आ पाएंगे.
"सिर पर ये क्या बंधा है..."
दिलीप सिंह 1 साल पहले ही गजनी से आए हैं. उनका कहना है कि पगड़ी को देखकर लोग कहते थे कि सिरपर ये क्या बंधा है, मुसलमान क्यों नहीं बनते हो, बच्चियों को तंग करते थे. जब 2021 में गुरुद्वारे में धमाका हुआ तो हमे लग गया कि ये हमारी जगह नहीं है इसलिए हम यहां आ गए. अभी भी हमारे कई लोग वहां फंसे हुए हैं. अफगानिस्तान के हालात का किसी को पता नहीं लगता है. अभी दो लोगों का झगड़ा है तालिबान का और वहाँ की सरकार का इसमे कुछ पता नहीं लगता. इसमे कुछ अच्छे लोग भी हैं और कुछ खराब लोग भी हैं.
सुखबीर सिंह 1992 में जलालाबाद से आए थे. उन्होंने बताया, जहां हम रहते थे वहां रॉकेट से हमले होते थे, मुजाहिदीन घरों पर रॉकेट गिराते थे. इसी हमले में हमारा भाई शहीद हो गया. उस दुख के साथ हम काबुल चले गए लेकिन वहां भी हालात ठीक नहीं थे. उसके बाद हम यहां दिल्ली आ गए. पुराने हालात तो खराब ही थे लेकिन आज के जो हालात सुनने में आ रहे हैं वो भी ठीक नहीं हैं. हमे चिंता है कि जो हमारे हिन्दू और सिख भाई वहां अभी भी रह रहे हैं, गुरुद्वारे और मन्दिर हैं उन सभी की चिंता है. सरकार से प्रार्थना करते हैं कि किसी तरह से उन्हें वहां से निकालें. वहां पर ऐसे लोग भी थे जो कहते थे मुसलमान बनो और ऐसे लोग भी थे जो अपनी जान भी न्योछावर कर देते थे सिखों और हिंदुओ पर.
जसपाल सिंह जलालाबाद से आए थे. उन्होंने कहा, अब भी सुनने में यही आता है कि अफगानिस्तान की हालत डांवाडोल है. पहले मुजाहिदीन थे उस वक्त भी हालात खराब थे उसके बाद तालिबानी आए तो उनकी क्रूरता बहुत ज्यादा थी. अब ये दोबारा खुद को ये साबित करने के लिये आये हैं कि हम क्रूर नहीं हैं और सबके साथ मिलकर रहेंगे. लेकिन हमें सिर्फ भगवान पर विश्वास है तालिबान पर नहीं है. सद्गुरु सबका भला करेंगे.
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