अंतिम बोडो उग्रवादी समूह ने किया समर्पण, भारत सरकार से शांति वार्ता की पेशकश की
इस समूह का नेतृत्व इसके अध्यक्ष बी साओराइग्वरा कर रहे थे और यह समूह असम के चार बोडो उग्रवादी समूहों में से एक है.
नई दिल्ली: म्यानमार से असम के बोडो उग्रवादी समूह एनडीएफबी के दो दर्जन से ज्यादा सदस्यों को भारत लाए जाने के बाद इस उग्रवादी समूह ने भारत सरकार से शांति वार्ता की पेशकश की है. साथ ही यह भी कहा है कि उसके सदस्य हथियार नहीं उठाएंगे. भारत सरकार ने शांति प्रक्रिया से जुड़ने के एनडीएफबी के निर्णय का स्वागत किया है.
11 जनवरी, 2020 को भारत सरकार की एजेंसियों द्वारा नैशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के 26 सक्रिय सदस्यों को म्यांमार से भारत वापस लाया गया था. इनमें संगठन के अध्यक्ष, महासचिव, कमांडर इन चीफ तथा फाइनेंस सेक्रेटरी सहित कई अग्रणी नेता शामिल थे, जो इस समूह के भाग थे. इनके पास 25 हथियार, 50 से अधिक मैगजीन, 900 से अधिक विविध आयुध तथा संचार उपकरण भी थे. इस समूह के साथ चार पारिवारिक सदस्य भी थे. इस समूह का नेतृत्व इसके अध्यक्ष बी साओराइग्वरा कर रहे थे और यह समूह असम के चार बोडो उग्रवादी समूहों में से एक है. अन्य तीन समूह फिलहाल भारत के साथ सीजफायर के अंतर्गत शामिल हैं और बोडो मामले के एक राजनैतिक निपटारे के लिए वार्ताकार से बातचीत कर रहें हैं.
साओराइग्वरा का समूह अन्य पूर्वोत्तरी विद्रोही समूहों के साथ मिलकर म्यांमार में सक्रिय था. इन्होंने एनएससीएन-के (एक नागा उग्रवादी समूह) और उल्फा/आई (असम का एक अन्य उग्रवादी समूह) के साथ मिलकर युनाइटेड नेशनल लिब्रेशन फ्रंट आफ वेस्टर्न साउथ ईस्ट एशिया नामक एक संयुक्त मोर्चा भी तैयार किया था. इस समूह द्वारा शांति का विकल्प चुनते ही असम में दशकों पुराने बोडो उग्रवाद का अंत और संपूर्ण राज्य में तथा विशेषत: बोडो क्षेत्रों में शांति का युग प्रारंभ होता है.
भारत सरकार ने साओराइग्वरा तथा इसके समर्थकों द्वारा हिंसा को त्याग कर तथा शांति का विकल्प चुनने के साहसिक फैसले का स्वागत किया है. भारत सरकार सभी स्टेक होल्डर्स जैसे बोडो सिविल सोसाइटी संगठनों, राजनैतिक पार्टियों और बोडो आतंकी समूहों को शामिल करते हुए बोडो राजनैतिक मामलों का व्यापक और अंतिम समाधान निकालने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है.
एक अलग बोडोलैंड राज्य की मांग असम में लगभग 50 वर्षों से अहम रूप से बनी हुई थी. बोडो ओवरग्राउंड संगठनों तथा आतंकी समूहों ने विगत समय में प्रमुखता से इस मांग को सामने रखा जो हिंसा, आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों के रूप में बदलती रहीं और जान-माल की हानि हुई.
इस विवादास्पद मामले के समाधान के लिए वर्ष 1993 और वर्ष 2003 में करार पर हस्ताक्षर किए गए थे. बोडो के राजनैतिक विकास तथा उनके पहचान संबंधी आशाओं को पूरा करने के लिए वर्ष 2003 में संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत एक बोडो टेरिटोरियल काउंसिल का सृजन किया गया था. इसके बावजूद राज्य में गैर-बोडो समूहों द्वारा पुरजोर आवाज उठाते हुए विरोध करने के बावजूद बोडोलैंड राज्य के लिए मांग बराबर बनी रही. यदि भारत सरकार और असम राज्य सरकार प्रादेशिक अखंडता को बनाए रखते हुए बोडो मामले का अंतिम समाधान निकालने में सफल होती हैं तो कानून और व्यवस्था को सुधाराने तथा राज्य में स्मृद्धि और प्रगति लाने में यह अत्यंत दूरगामी सिद्ध होगा.