नई दिल्ली: जस्टिस रंजन गोगोई आज भारत के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर आखिरी दिन कोर्ट में बैठे. उन्हें हमेशा ऐसे जज के तौर पर जाना जाएगा जो कड़े फैसले लेने में ज़रा भी नहीं चूका. सालों से लंबित अयोध्या विवाद का निपटारा हो या असम में NRC लागू करवाने, जस्टिस गोगोई ने अपनी छवि के मुताबिक काम किया. न खुद कोई मसला टाला, न सरकारी एजेंसियों को उसे लटकाने दिया.


3 अक्टूबर 2018 को भारत के 46वें चीफ जस्टिस बने गोगोई का कार्यकाल लगभग 13 महीने का रहा. वह असम के मुख्यमंत्री रहे केशब चन्द्र गोगोई के बेटे हैं. उन्होंने 1978 में वकालत शुरु की. 2001 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के स्थाई जज बने. 2011 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने और 23 अप्रैल 2012 को सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए. उनकी छवि एक बेहद सख्त और ईमानदार जज की है.


सुप्रीम कोर्ट में 9 साल से लंबित पड़ा अयोध्या विवाद जब उनकी बेंच में आया तो उसमें तेज़ी आ गई. चीफ जस्टिस गोगोई ने 5 जजों की बेंच का गठन किया और रोज़ाना सुनवाई शुरू कर दी. अपने कार्यकाल में जस्टिस गोगोई हमेशा बात को बेवजह लंबा खींचने वाले वकीलों को रोक दिया करते थे. लेकिन 40 दिन चली अयोध्या मामले की सुनवाई में उन्होंने सबको अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया. इस बात का ध्यान रखा कि किसी पक्ष को यह न लगे कि उसकी बात नहीं सुनी गई. अंत में फैसला दिया तो ऐसा कि वह सदियों के लिए मिसाल बन गया.


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अदालती हलकों में इस बात की सराहना की जाती है कि इस संवेदनशील मामले में जस्टिस गोगोई के नेतृत्व में पांचों जजों ने साझा फैसला लिया. फैसला भी ऐसा कि किसी के साथ नाइंसाफी न हो. विवादित ज़मीन पर ज़्यादा मज़बूत दावा रखने वाले रामलला पक्ष को पूरी ज़मीन दी. लेकिन मुसलमानों के साथ पहले हुई ज़्यादती को स्वीकार किया. उसे दुरुस्त करने के लिए उन्हें 5 एकड़ जमीन दी. फैसले में लिखा कि भारत में सबका बराबर सम्मान है. यहां तक कि अपना दावा सही ढंग से साबित न कर पाने वाले विवाद के तीसरे पक्ष निर्मोही अखाड़ा को भी मंदिर के लिए बनने वाले ट्रस्ट में जगह दी.


फैसला सुनाने के समय को लेकर भी जस्टिस गोगोई सुरक्षा एजेंसियों के साथ तालमेल में नज़र आए. शुक्रवार 9 नवंबर को यूपी के मुख्य सचिव और डीजीपी को मिलने बुलाया. सुरक्षा हालात का जायज़ा लिया. 10 नवंबर को फैसला दे दिया. असम में नागरिकता पहचान रजिस्टर (NRC) तैयार करवाने में उन्होंने बरसों की सरकारी हीला-हवाली को ठीक कर दिया. NRC बनाने की एक समय सीमा तय की, और सुनिश्चित किया कि इस सीमा में काम पूरा हो जाए. देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई के 2 वरिष्ठतम अधिकारियों आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच हुई तनातनी का मसला भी उन्होंने पूरी परिपक्वता के साथ निपटाया.


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जस्टिस गोगोई के चीफ जस्टिस बनने से पहले ही उनकी सख्त छवि उस वक्त उभरकर सामने आई थी, जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू को अवमानना के एक मामले में कोर्ट में तलब कर लिया. जस्टिस काटजू ने केरल के सौम्या बलात्कार कांड में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बेहद तल्ख लहज़े में आलोचना की थी. जस्टिस गोगोई ने इसे अदालत की अवमानना की तरह लिया और काटजू को कोर्ट में पेश होने के लिए नोटिस जारी कर दिया. इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट का कोई पूर्व जज कोर्ट में इस तरह से पेश हुआ हो. हालांकि, बाद में वकीलों की दरख्वास्त पर जस्टिस गोगोई ने काटजू को चेतावनी देकर जाने दिया.


12 जनवरी 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के रवैये पर सवाल उठाते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों में जस्टिस रंजन गोगोई भी शामिल थे. हालांकि, बाद में उनके जस्टिस मिश्रा से बहुत अच्छे संबंध रहे.


चीफ जस्टिस के तौर पर काम संभालने के पहले दिन महात्मा गांधी की समाधि राजघाट जाने वाले जस्टिस गोगोई आज फिर राजघाट गए. आज वह सिर्फ कुछ मिनटों के लिए कोर्ट में बैठे. परंपरा के मुताबिक अगले चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े उनके साथ बैठे. इस दौरान जस्टिस गोगोई ने अपने सम्मान में कुछ कह रहे एक वकील को मुस्कुराते हुए धन्यवाद कहा. सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को चिट्ठी भेज कर उनकी भी सराहना की. कहा, "आपने कठिन मौकों पर ज़िम्मेदारी से काम किया. लोगों तक सही जानकारी पहुंचाई."


शाम 4.30 पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का रिटायरमेंट समारोह शुरू हुआ. उनकी इच्छा के मुताबिक मंच नहीं बनाया गया. कोई भाषण नहीं दिया गया. सिर्फ बार एसोसिएशन के पदाधिकारी ने उनकी तरफ से लिखित एक छोटा संदेश पढ़ा. इस संदेश में उन्होंने सबको धन्यवाद कहा.


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