Maharashtra: कभी बाल ठाकरे के करीबी रहे संपा थापा ने भी छोड़ा उद्धव का साथ, जानें उनके बारे में
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में सियासी भूचाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. अब दिवंगत बाल ठाकरे (Bal Thackeray) के बेहद करीबी रहे संपा सिंह शिवसेना छोड़ एकनाथ गुट में शामिल हो गए हैं.
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Shampa Singh Thapa Left Mato Shree: शिवसेना को एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की बगावत के बाद से झटके पर झटके लग रहे हैं. अब हालिया मामला बाल ठाकरे के बेहद करीबी रहे संपा सिंह थापा (Sampa Singh Thapa) का है. सोमवार शाम को वह ठाणे में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में शिंदे गुट में शामिल हो गए. जो लोग दशकों से शिवसेना को देख रहे हैं, थापा का मातोश्री (Mato Shree) से बाहर निकलना उन्हें नागवार लग सकता है. थापा बाल साहेब ठाकरे (Bal Saheb Thackeray) के बेहद प्रिय और वफादार माने जाते थे.
ठाकरे को भगवान की तरह पूजते रहे
राजनीतिक तौर पर ये अप्रासंगिक लग सकता है कि संपा थापा सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना (Shiv Sena) के विद्रोही खेमे में शामिल हो गए हैं. थापा को करीब से जानने के बाद मुझे भी यही महसूस हो रहा है, क्योंकि थापा न केवल दिवंगत पार्टी सुप्रीमो बाल ठाकरे की सबसे वफादार हाउस हेल्प थे, बल्कि उन्हें ठाकरे पारिवारिक के सदस्य के तौर पर भी माना जाता था.
27 साल तक थापा अच्छे और बुरे में बाल ठाकरे के साथ रहे और उनके अंतिम दिनों में उनकी देखभाल की. वह ठाकरे को भगवान की तरह पूजते थे. लोगों ने उन्हें नवंबर 2012 में शिवाजी पार्क में ठाकरे के अंतिम संस्कार में बेहद दुखी देखा गया था.
20 साल में मातोश्री में मिला आश्रय
संपा सिंह थापा 1985 में 20 साल की उम्र में बाल ठाकरे के घर में हाउस हेल्प की तरह आए थे और कब वो उनके परिवार के सदस्यों में शामिल हो गए ये शायद उन्हें भी पता न हो. थापा भारत-नेपाल सीमा के पास चिमोली (Chimoli) गांव के रहने वाले है. बेहद गरीबी की वजह से थापा ने अपना घर छोड़ दिया था. भारत में किसी काम की तलाश में फरवरी 1985 में गोरखपुर के पास सीमा पार कर वह यहां आ गए. किसी ने उन्हें मुंबई पहुंचने की सलाह दी. उनसे कहा गया कि नेपालियों को सुरक्षा के लिए लोग बेहद पसंद करते थे, इसलिए उन्हें सुरक्षा गार्ड के तौर पर आसानी से रोजगार मिल जाएगा.
एक बंगाली व्यवसायी घोष ठाणे में रॉयल सिक्योरिटी नाम की एक सुरक्षा एजेंसी चलाते थे. घोष ने थापा को मुंबई के पड़ोसी शहर ठाणे में एक मिनी हिल स्टेशन योर (Yeor) में अपने बंगले के लिए एक गार्ड के तौर पर भर्ती किया. घोष बाल ठाकरे के दोस्त बन गए.
एक बार बंगले की अपनी यात्रा के दौरान ठाकरे थापा की नौकरी के प्रति समर्पण से खासे प्रभावित हुए. ठाकरे ने घोष से कहा कि वह चाहते हैं कि थापा उनके बंगले मातोश्री में नौकरी करें. घोष ने थापा को बाला साहेब के पास काम करने के लिए जाने को कहा. इसके बाद से थापा बाल ठाकरे की छाया बन गए. मातोश्री आने वाला कोई भी शख्स थापा से मिलने से नहीं चूका. ठाकरे जब भी किसी से बात करते थे तो वह हमेशा एक कोने में शांति से खड़े रहते थे.
बाहरी दौरों में भी ठाकरे के साथी
शुरुआत में थापा केवल मातोश्री में काम करते थे, लेकिन जब 1995 में ठाकरे की पत्नी मिनाताई (Minatai) की मौत हो गई, तो थापा बाल ठाकरे के साथ बाहरी दौरों में भी जाते थे. एक बार मातोश्री के गलियारों में मेरे साथ बातचीत करते हुए थापा ने मुझे बताया कि बाल ठाकरे को शुरू में सिर्फ एक पुलिस गार्ड दिया गया था, लेकिन अगस्त 1986 में खालिस्तानी आतंकवादियों के जनरल अरुण कुमार वैद्य की हत्या के बाद उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई थी. अंततः सरकार ने ठाकरे को जेड श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की और उनका बंगला एक किला बन गया.
नहीं ली कभी लंबी छुट्टी
बाल ठाकरे के जीवित रहने तक थापा ने कभी कोई लंबी छुट्टी नहीं ली, क्योंकि वह कभी भी ठाकरे को छोड़ना नहीं चाहते थे. ठाकरे अपनी निजी सुख-सुविधाओं और दवाओं के लिए उन पर निर्भर थे. थापा को नेपाल में अपने दूर के गांव तक पहुंचने में तीन से चार दिन लगते हैं.
थापा ने अपने बेटे की शादी के समय 7 दिनों की सबसे लंबी छुट्टी ली थी. उन्होंने कुछ घंटों के लिए शादी में शिरकत की और रस्में पूरी करने के बाद तुरंत मुंबई लौट आए. थापा अपने परिवार को चिमोली में ही रखते थे. थापा के परिवार के सदस्यों और ग्रामीणों को गर्व था कि वह ठाकरे की सेवा कर रहे हैं. जब ठाकरे बीमार थे तब वो थापा ही थे जिन्होंने ये सुनिश्चित किया कि वह अपनी दवाएं और भोजन वक्त पर लें.
नाराज थे शिवसेना में हलचल से
जब मैंने थापा बाल ठाकरे की मौत के कुछ महीने बाद से आखिरी बार बात की थी, तो वह शिवसेना में चल रही गतिविधियों से नाखुश दिखे थे. तब थापा ने चुटकी लेते हुए कहा, "कड़ी मेहनत करने वाले मेहनती होते हैं और पैसे कमाने वाले पैसे कमाने वाले होते हैं."
हालांकि राजनीतिक रूप से उद्धव ठाकरे को कुछ नहीं खोना होगा और एकनाथ शिंदे को थापा को अपने पक्ष में करने से कुछ हासिल नहीं होगा. इसके बाद भी थापा का मातोश्री छोड़ना उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के विरोधियों के लिए एक और जीत है. शिंदे न केवल उद्धव से विधायकों, सांसदों, पार्षदों और पदाधिकारियों को बल्कि मातोश्री के कर्मचारियों को भी अपने कब्जे में लेने में कामयाब रहे हैं. हालांकि, थापा को मातोश्री छोड़ने और शिंदे के साथ हाथ मिलाने के लिए किस वजह से मजबूर होना पड़ा, यह वजह अभी साफ तौर पर सामने नहीं आई है
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