Inspiring Story: “सात संदूकों में भर कर दफ्न कर दो नफरतें, आज इंसां को मोहब्बत की जरूरत है बहुत...” बशीर बद्र की ये लाइनें केरल के मलप्पुरम जिले में रहने वाले अलीमोन नारानिपुझा पर फिट बैठती हैं. दरअसल, नारानिपुझा ने कुछ ऐसी मिसाल पेश की है जिसकी चर्चा इन हर तरफ हो रही है. नारानिपुझा एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार से आते हैं, लेकिन इनके यहां विथानसेरी राजन (कट्टर हिंदू) 39 वर्षों तक रहे. मंगलवार को जब 62 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गई, तो अलीमोन नारानिपुझा ने हिंदू रीति-रिवाजों से राजन का अंतिम संस्कार किया.


राज्य के मुस्लिम बहुल जिले से धार्मिक सद्भाव की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है. राजन के शरीर को एक सार्वजनिक श्मशान में आग के हवाले करने के बाद, एलिमोन अब उसकी राख इकट्ठा करने का इंतजार कर रहे हैं, जिसे वह हिंदू रीति-रिवाज से भरतपुझा नदी में विसर्जित करेंगे. एलिमोन (46) ने कहा, "मैंने राजन का उसके विश्वास के अनुसार अंतिम संस्कार करने के लिए एक पल के लिए अपनी आस्था को किनारे रख दिया." 


4 दशक पहले राजन को लेकर आया था मुस्लिम परिवार


पलक्कड़ के मूल निवासी राजन ने कम उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया था. करीब चार दशक पहले जब मलप्पुरम के एक सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय कांग्रेस नेता के. वी. मुहम्मद, पुथनाथनी में सड़क किनारे एक भोजनालय में भोजन के लिए रुके, तो उन्होंने एक गंदे दिखने वाले युवक को देखा. वह भूखा मर रहा था. मुहम्मद ने उसे अपने गांव वापस जाने के लिए भोजन और पैसे की पेशकश की, लेकिन जब राजन रोड पर लक्ष्यहीन होकर चलने लगा, तो मुहम्मद उसके पीछे गए और उसे नन्नामुक्कू में अपने घर ले गए.


राजन ने मुहम्मद के कन्नमचथु वलप्पिल घर में एक नया जीवन शुरू किया. मुहम्मद की छह बेटियां और एक बेटा था. मुहम्मद ने कुछ दिनों बाद राजन को घर वापस भेजने की प्लानिंग की थी, लेकिन उसके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं थी और उसकी देखभाल के लिए कोई करीबी रिश्तेदार नहीं थे, इसलिए मुहम्मद ने उसे वहीं रहने दिया. धीरे-धीरे राजन परिवार का सदस्य बन गया.


लोग देते रहे आश्रम भेजने की सलाह, लेकिन नहीं दिया ध्यान


आठ साल बाद मुहम्मद की 65 वर्ष की आयु में मौत हो गई. अलीमोन ने बताया, “जब मेरे पिता की मृत्यु हो गई, तो लोगों ने मुझसे राजन को किसी आश्रम में भेजने को कहा, लेकिन मैं उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. मैंने पाया कि उसकी देखभाल करने में पुण्य है जिसे मेरे पिता घर लाए थे.'' राजन, शायद ही कभी अपने पैतृक गांव जाते थे, वह मुस्लिम घराने में ही पले-बढ़े. वह मेरे परिवार की घर के काम और उनकी छोटी कृषि भूमि पर मदद करते थे. वहीं जब राजन जब भी अस्पताल में भर्ती हुए, एलिमोन के परिवार के सदस्य उनके साथ खड़े रहे. जैसे ही उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया, स्थानीय लोगों ने परिवार को फिर से उन्हें किसी आश्रम में छोड़ने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया.


पूरे हिंदू परंपरा से करेंगे सभी कर्म


मंगलवार को दाह संस्कार से पहले राजन के शव को टिमटिमाते दीपक के बगल में लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए घर में रखा गया था. श्मशान घाट पर अलीमोन और उनके भतीजे मोहम्मद रिशान ने चिता को मुखाग्नि दी. उन्होंने कहा, "हम उनकी आत्मा की शांति के लिए हिंदू परंपरा के अनुसार सभी कर्म करेंगे." उन्होंने बताया कि हम मुस्लिम के रूप में रहते थे और राजन हमारे बीच में एक हिंदू के रूप में रहते थे.


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