नई दिल्ली: लॉ कमीशन ने शादियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य बनाने की सिफारिश की है. केंद्रीय कानून मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट में कमीशन ने कहा है कि इस कानून को सभी धर्मों और समुदायों के लिए लागू किया जाए.


लॉ कमीशन से सरकार ने इस बारे में रिपोर्ट मांगी थी. अब कमीशन ने देश-विदेश के तमाम कानूनों का अध्ययन कर विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी समुदायों के लिए अलग कानून बनाने की बजाय 1969 के जन्म और मृत्यु पंजीकरण कानून में ही शादी के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान जोड़ दिया जाए.


गौरतलब है कि यूपीए 2 सरकार के दौरान इस तरह का कानून बनाने की कोशिश की गई थी. इसे राज्यसभा ने अगस्त 2013 में पास भी किया. लेकिन लोकसभा का कार्यकाल पूरा हो जाने के चलते कानून नहीं बन पाया. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक समेत कई राज्यों में पहले ही शादियों के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन का कानून बनाया जा चुका है.


2006 में सुप्रीम कोर्ट सीमा बनाम अश्विनी कुमार मामले में फैसला देते वक्त केंद्र और राज्यों को ये निर्देश दिया था कि वो शादियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने का कानून बनाएं. इसी पर अमल करते हुए कई राज्यों ने कानून बनाए. केंद्रीय स्तर पर अब भी कानून नहीं बन पाया है.


कमीशन ने इस व्यवस्था के फायदे गिनाते हुए कहा है कि इससे पारिवारिक मुकदमों के निपटारे में मदद मिलेगी. बाल विवाह पर भी अंकुश लगेगा क्योंकि रजिस्ट्रेशन के दौरान दूल्हा-दुल्हन की उम्र दर्ज करवानी होगी. हालांकि, अलग-अलग पर्सनल लॉ में शादी की उम्र को लेकर स्पष्टता न होने का भी कमीशन ने ख्याल रखा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि रजिस्ट्रेशन के दौरान पर्सनल लॉ की व्यवस्था का भी ध्यान रखा जाए.


कमीशन ने सरकार को मैरिज रजिस्ट्रेशन को आधार से लिंक करने पर भी विचार करने को भी कहा है. रिपोर्ट में शादी के 30 दिन के भीतर रजिस्ट्रेशन न करवाने पर जुर्माने की भी सिफारिश की गई है. जुर्माना अधिकतम 100 रुपए होगा. माना जा रहा है कि सरकार इस रिपोर्ट के आधार पर जल्द ही कानून संसद में पेश कर सकती है.