सेपरेट जेल में अकेला... परिंदा भी पर नहीं मारता जहां कैद है लॉरेंस बिश्नोई, बैरक के एक कोने में पड़ा तनहाई में गुजार रहा दिन
गुजरात की एंटी टेरेरिस्ट स्कवैड को कच्छ के पास एक बंदगाह पर ड्रग्स की खेप मिली थी और इसका लॉरेंस बिश्नोई के साथ कनेक्शन सामने आया. इसके बाद एटीएस लॉरेंस को पंजाब से गुजरात ले गई.
गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई इस वक्त गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल की एक बैरक के कोने में पड़ा तनहाई में दिन गुजार रहा है. 24 अगस्त, 2023 को उसने जेल में कदम रखा और 14 महीने बीत गए, लेकिन एक बार भी वह बाहर नहीं आया है. न ही उससे कोई मिलने गया. न कोई दोस्त-रिश्तेदार और न ही उसके वकील. दिल्ली के कुछ अधिकारी, जेल स्टाफ और गार्ड ही उससे मिले हैं.
साबरमती जेल परिसर के अंदर जेल के दो हिस्से हैं- नई जेल और पुरानी जेल. पुरानी जेल में ऐसी बिल्डिंग है, जिसमें दस कमरे हैं. इन दस कमरों में से एक में लॉरेंस बिश्नोई को रखा गया है. यह हिस्सा उन कैदियों के लिए है, जो बहुत खूंखार हों या जिनकी जान को खतरा हो. जेल के अंदर भी गैंगवॉर चलती है. लॉरेंस बिश्नोई की बैरक के अलावा बाकी सभी बैरक खाली पड़ी हैं. अपनी बैरक में भी वो अकेला है. लॉरेंस बिश्नोई को अगर अपने वकील से बात करनी होती है तो वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए करवाई जाती है. अगर किसी केस की सुनवाई में भी उसको शामिल किया जाना जरूरी हो तो भी वह वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए ही हियरिंग में जाता है.
साबरमती जेल से पहले लॉरेंस बिश्नोई पंजाब की भठिंडा जेल में बंद था. जून, 2022 में पंजाब पुलिस पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला के मर्डर केस में पूछताछ के लिए दिल्ली की तिहाड़ जेल से उसको भठिंडा जेल ले गई थी और पिछले साल अगस्त में उसको ड्रग मामले में साबरमती जेल लाया गया. 14 सितंबर, 2022 को गुजरात की एंटी टेरेरिस्ट स्कवैड और इंडियन कोस्ट गार्ड को कच्छ के पास बंदरगाह पर ड्रग्स की बड़ी खेप मिली, जो अलतइयासा नाम की बोट में थी. इसमें 20 किलो से भी ज्यादा हिरोइन मिली, जिसकी कीमत 200 करोड़ रुपये थी.
बोट के साथ जो लोग पकड़े गए उनसे पूछताछ में पता चला कि इसके तार लॉरेंस बिश्नोई से जुड़े थे. फिर एटीएस ने जांच शुरू की और इसमें लॉरेंस बिश्नोई का कनेक्शन सामने आया. जब शक पुख्ता हो गया तो एटीएस ने दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में एप्लीकेशन देकर लॉरेंस बिश्नोई से पूछताछ के लिए उसकी रिमांड मांगी. एटीएस ने दिल्ली में अर्जी इसलिए दी क्योंकि वह तिहाड़ जेल में ही बंद था और पंजाब पुलिस लॉरेंस को थोड़े समय के लिए पूछताछ के लिए ले गई थी. 24 अगस्त, 2023 को एटीएस लॉरेंस बिश्नोई को गुजरात ले आई और उसको साबरमती सेंट्रल जेल भेज दिया गया.
लॉरेंस बिश्नोई पर मर्डर, एक्सटोर्शन, हत्या की कोशिश और किडनैंपिंग समेत 79 केस दर्ज हैं. इनमें से 40 मामले दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल समेत अलग-अलग राज्यों में चल रहे हैं. 10 ऐसे मामले हैं, जिनमें राज्य पुलिस उसे गिरफ्तार करना चाहती है, लेकिन वह अदालतों में उसको पेश नहीं कर पा रही और अगले दस महीने यानी अगले साल अगस्त तक भी उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिल पाएगी. इसकी वजह है, सीआरपीसी का सेक्शन 268. भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता में यह 303 बन गया है.
यह सेक्शन राज्य सरकार को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी कैदी को सीआरपीसी के सेक्शन 267 से बाहर रख सकती है. सेक्शन 267 के तहत हर राज्य की पुलिस कैदी को पूछताछ के लिए अपने राज्य में ले जा सकती है और सेक्शन ये अधिकार भी देता है कि अगर मुजरिम ने किसी और राज्य का है और अपराध किसी और राज्य में किया है तो जहां अपराध हुआ उस स्टेट की पुलिस उस स्टेट में जाकर ट्रांजिट रिमांड ले सकती है जिस राज्य में मुजरिम अभी बंद है और वो राज्य मना नहीं करेगा. सेक्शन 267 के तहत ही लॉरेंस बिश्नोई को पंजाब पुलिस दिल्ली तिहाड़ जेल से भठिंडा ले गई थी. हालांकि, सीआरपीसी का सेक्शन 268 इसकी अनुमति नहीं देता है. दूसरे राज्य की पुलिस को जिस जेल में कैदी बंद है वहीं पूछताछ करने की अनुमति होती है. पुलिस अपने राज्य में नहीं ले जा सकती.
किसी कैदी पर 268 लगाने का अधिकार या तो गृह मंत्रालय को होता है या उस राज्य की सरकार को होता है, जहां मुजमिर बंद है. लॉरेंस बिश्नोई के मामले में अगस्त, 2023 को गृह मंत्रालय ने सेक्शन 268 अगले साल अगस्त तक के लिए लागू कर दिया है. किसी कैदी को सेक्शन 268 का सुरक्षा कवच मिलने के लिए तीन शर्त जरूरी होती हैं. पहली, उसने कोई अपराध किया हो और वह जेल में बंद हो. दूसरी कैदी को जेल से निकालकर किसी और राज्य की जेल में भेजना या उस राज्य की किसी दूसरी जेल में भेजना या राज्य के किसी पुलिस स्टेशन में पूछताछ के लिए ले जाना या शहर की किसी अदालत में पेशी के लिए ले जाने से लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने की संभावनो हो तो कैदी को जेल से नहीं निकाला जाएगा. तीसरी शर्त ये है कि अगर उस कैदी के केस में पब्लिक का बहुत ज्यादा इंटरेस्ट हो या मीडिया ट्रायल चल रहा हो तो उसको जेल से बाहर निकालने की अनुमति नहीं दी जाती है.
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