गुजरात-हिमाचल छोड़िए, इन 7 सीटों पर उपचुनाव के नतीजे नेताओं को दोबारा सोचने पर कर देंगे मजबूर?
चुनावों के इस माहौल में राजस्थान, ओडिशा, बिहार और छत्तीसगढ़ की 6 विधानसभा सीटों और यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव है. ऐसे में जानते हैं उपचुनाव वाली सीटों के पुराने और नए समीकरण क्या कहते हैं.
गुजरात, हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव खत्म हुए और फिलहाल अनुमानों का दौर जारी है. बीजेपी, कांग्रेस की टक्कर के बीच आम आदमी पार्टी के परफॉर्मेंस पर भी निगाहें टिकी हैं. ऐसा हो भी क्यों न इन दो राज्यों के चुनाव के अलावा दिल्ली में बहुप्रतीक्षित एमसीडी चुनाव हुए हैं, यहां पर मुकाबला बीजेपी और आप के बीच ही है. चुनावों के इस माहौल में यूपी, राजस्थान, ओडिशा, बिहार और छत्तीसगढ़ की कई छोटी बड़ी राजनीतिक पार्टियों का भी लिटमस टेस्ट है, इन राज्यों की 6 विधानसभा सीटों और यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव है.
यूपी में ये उपचुनाव ज्यादा दिलचस्प हैं, क्योंकि मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी और बीजेपी के बीच होता दिख रहा है. आजम खान की रामपुर और मुलायम सिंह यादव की मैनपुरी लोकसभा सीटों पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है.
मैनपुरी लोकसभा सीट
अक्टूबर में मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी लोकसभा में सीट खाली हो गई थी. यहां सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की विरासत के साथ ही साथ समाजवादी पार्टी का सब कुछ दांव पर लगा है. इस चुनाव को साल 2024 के लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा है. मैनपुरी सीट का रिजल्ट देश की राजनीति में अखिलेश का राजनीतिक कद तय करेगा. इस चुनाव के नतीजे पर ना सिर्फ यूपी बल्कि पूरे देश की निगाहें टिकी हैं कि क्या सपा उस सीट को बरकरार रख पाएगी जिसे मुलायम ने 1996 से पांच बार जीता है, जिसमें 2019 का लोकसभा चुनाव भी शामिल है. इस सीट पर अगर बीजेपी की जीत होती है तो यह विपक्षी दल के लिए एक बड़ा झटका होगा क्योंकि हाल ही में सपा ने अपना गढ़ आजमगढ़ खो दिया था.
इस सीट पर सपा ने पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को मैदान में उतारा है. वहीं बीजेपी की तरफ से प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य हैं, जो अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव के पूर्व सहयोगी थे.
भानुप्रतापपुर उपचुनाव
सिटिंग कांग्रेस मनोज सिंह मंडावी का 16 अक्टूबर को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. उनके अचानक निधन के कारण छत्तीसगढ़ के नक्सली प्रभावित भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट खाली हो गई थी और उपचुनाव के लिए 5 दिसंबर को मतदान किया गया. इस उपचुनाव के नतीजे भी 8 दिसंबर को आएंगे. हालांकि नतीजों का सरकार पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा, लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में इस जीत के कारण पार्टी जीती हुई पार्टी को मजबूती मिलेगी.
चुनाव अधिकारियों की तरफ से जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार इस उपचुनाव में लगभग 1 लाख 95 हजार, 678 वोटर्स अपना वोट डालेंगे. जिनमें 1, 491 महिलाएं और थर्ड जेंडर शामिल हैं. इसके अलावा 95, 186 पुरुष वोटिंग कर रहे हैं. भानुप्रतापपुर सीट पर सात उम्मीदवार हैं, लेकिन इस मुकाबले को कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर के तौर पर देखा जा रहा है. कांग्रेस ने मंडावी की पत्नी सावित्री को मैदान में उतारा है जबकि बीजेपी की तरफ से पूर्व विधायक ब्रह्मानंद नेताम मैदान में हैं.
खतौली उपचुनाव
इस सीट पर बीजेपी विधायक विक्रम सिंह सैनी की विधानसभा की सदस्यता रद्द करने के बाद उपचुनाव की घोषणा की गई थी. दरअसल 2013 के मुजफ्फरनगर दंगा मामले में 11 अक्टूबर 2022 को मुजफ्फरनगर की विशेष अदालत ने विक्रम सैनी को दंगों का दोषी पाया और उन्हें 2 साल कैद की सजा सुनाई थी. इसी कारण से चार नवंबर को उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी.
वर्तमान में खतौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में रालोद-सपा गठबंधन से मदन भैया मैदान में हैं. वहीं बीजेपी ने विक्रम सिंह सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी को मैदान में उतारा गया है. बसपा और कांग्रेस मुकाबले से दूर रहे हैं.
इस सीट पर बीजेपी का जीतना इसलिए जरूरी है क्योंकि बीजेपी विधायक रहे विक्रम सिंह सैनी लगातार दो बार विधायक चुने जा चुके हैं. पहली बार उन्होंने साल 2017 में सपा के चंदन सिंह चौहान को 31,374 वोट से हराया था. वहीं दूसरे चुनाव यामी साल 2022 में हुए उपचुनाव में एक बार विक्रम सैनी की ही जीत हुई थी. उन्होंने रालोद के राजपाल सिंह सैनी को 16,345 वोट से हराया था.
कुरहानी (3.11 लाख मतदाता)
अक्टूबर में सीबीआई अदालत ने धोखाधड़ी के एक मामले में दोषी ठहराए गए राष्ट्रीय जनता दल के विधायक अनिल कुमार साहनी को बिहार विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया था. जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव आयोजित किया गया. इस सीट के नतीजे पर इसलिए भी सबकी नजर है क्योंकि जदयू और भाजपा के बीच अगस्त में गठबंधन टूटने के बाद से यह पहली चुनावी लड़ाई है. राजद ने जदयू को अपना पूरा समर्थन दिया है. इस उपचुनाव के परिणाम से पता चलेगा कि क्या राजद अपने सहयोगी दल को अपने वोट स्थानांतरित कर सकता है.
इस सीट पर तेरह उम्मीदवार मैदान में हैं लेकिन मुकाबला मुख्य रूप से जदयू के मनोज सिंह कुशवाहा और बीजेपी के केदार गुप्ता के बीच है, दोनों ही पहले इस सीट पर अपनी जीत दर्ज कर चुके हैं.
पदमपुर (2.57 लाख मतदाता)
बीजू जनता दल (बीजद) के विधायक बिजय रंजन सिंह बरिहा का अक्टूबर में निधन हो गया था जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव आयोजित किया गया. इस सीट पर बीजेडी ने 2008 के बाद से एक भी उपचुनाव नहीं हारा था. लेकिन पिछले महीने धामपुर उपचुनाव जीतकर बीजेपी ने बीजेडी के जीतने के इस चेन को खत्म कर दिया था. इस चुनाव के नतीजे पर सबकी नजर इसलिए है क्योंकि भाजपा एक बार फिर अपनी सफलता को दोहराने की उम्मीद कर रही है. वहीं बीजद के लिए ये सीट कितना महत्वपूर्ण यह इससे भी पता चलता है कि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने पिछले हफ्ते तीन साल में पहली बार प्रचार अभियान शुरू किया था.
इस सीट पर 10 उम्मीदवार मैदान में हैं. बीजद ने 29 वर्षीय वकील बिजय की बेटी वर्षा सिंह बरिहा को मैदान में उतारा है. भाजपा प्रत्याशी पूर्व विधायक प्रदीप पुरोहित हैं. पुरोहित 2019 में बिजया से 5,734 वोटों से हार गए थे.
पदमपुर सीट 2009 तक अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी लेकिन अब यह सामान्य सीट है. सीट पर बरिहा परिवार का कब्ज़ा रहा है जो बिंझाल समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. बिजय रंजन सिंह बरिहा इस सीट से पांच बार विधायक रहे. अक्टूबर में उनके निधन की वजह से इस सीट पर उपचुनाव कराया जा रहा है. इससे पहले उनके पिता बिक्रमादित्य सिंह बरिहा तीन बार विधायक रहे थे.
रामपुर (3.8 लाख मतदाता)
2022 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर 14 फरवरी को मतदान हुआ था. इसमें सपा के आजम खान निर्वाचित हुए थे लेकिन साल 2019 में नफरती भाषण मामले में एक अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद आजम खान को विधायक के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था. उनकी विधायकी खारिज करने के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुए.
जून में रामपुर लोकसभा क्षेत्र जीतने के बाद बीजेपी रामपुर में अपना प्रभुत्व स्थापित करने की उम्मीद कर रही है. वहीं सपा का इस सीट पर जीत दर्ज करना इसलिए अहम है क्योंकि रामपुर लोकसभा क्षेत्र को आजम खान का गढ़ माना जाता है. फिलहाल बीजेपी और सपा के बीच इस सीट पर कब्जा करने की लड़ाई है. यहां बीजेपी उम्मीदवार आकाश सक्सेना, पार्टी के पूर्व विधायक शिव बहादुर सक्सेना के बेटे, खान के सहयोगी असीम राजा के खिलाफ हैं.
सरदारशहर (2.89 लाख मतदाता)
यह सीट कांग्रेस के भंवर लाल शर्मा के निधन के बाद खाली हुई थी. सरदारशहर सीट पर बीजेपी और कांग्रेस की निगाहें हैं, जो उन्हें उम्मीद है कि 2024 के चुनावों में उन्हें कुछ गति प्रदान करेगी. मैदान में तीसरी पार्टी हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) है. इस सीट पर कांग्रेस ने शर्मा के बेटे अनिल को मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी के उम्मीदवार पूर्व विधायक अशोक कुमार पिंचा हैं, जो पूर्व में छह बार इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. आरएलपी के उम्मीदवार लालचंद मूंड हैं.
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