अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिन पर बीजेपी के लिए जरूरी सबक
बीजेपी अगर आजसू के साथ मिल कर चुनाव लड़ती तो फिर झारखंड में सरकार बच सकती थी.
नई दिल्ली: झारखंड चुनाव में हार बीजेपी के लिए बड़ा सबक है. सबक ये है कि सहयोगी दलों को मन से साथ लेकर चलना होगा. अगर झारखंड में आजसू से चुनावी तालमेल होता तो फिर बीजेपी की सरकार होती. चुनाव आयोग से जारी आंकड़ों के विश्लेषण से ये जानकारी सामने आई है. दोनों पार्टियां मिल कर 81 में से आसानी से 40 सीटें जीत सकती थीं. इसका मतलब ये है कि बीजेपी अपने साथियों के साथ रही तो जीत मुमकिन है. अगले साल दिल्ली के बाद बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं. बीजेपी के लिए बिहार किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है. जहां जेडीयू से उसकी अनबन चल रही है. ताजा विवाद NRC को लेकर है.
बीजेपी अगर आजसू के साथ मिल कर चुनाव लड़ती तो फिर झारखंड में सरकार बच सकती थी. बीजेपी को अकेले 33.4% वोट मिले. आजसू को 8.1 प्रतिशत वोट मिले. दोनों को जोड़ कर ये आंकड़ा 41.5% के करीब हो जाता है. दूसरी तरफ जेएमएम को 18.7%, कांग्रेस को 13.9% और आरजेडी को 2.7 % वोट मिले. तीनों पार्टियों को कुल मिला कर 35.3 प्रतिशत वोट ही मिले. अगर बीजेपी और आजसू मिल कर चुनाव लड़े होते तो बीजेपी को 9 सीटें और आजसू को 4 सीटें का फायदा होता. मैसेज साफ है. हर राज्य में सहयोगी पार्टियों के साथ रहने से बीजेपी को फायदा ही फायदा है. इस संदेश पर सबसे पहले मन की बात घर के अंदर से ही उठी है. महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि साझा विपक्षों निपटने के लिए हमें रणनीति बदलनी पड़ेगी. बीजेपी ने राज्य में अगर शिवसेना का साथ नहीं छोड़ा होता तो फिर अपनी सरकार होती. लेकिन बीजेपी ने अपने सबसे पुराने साथी का साथ छोड़ दिया.
अब ऐसे ही हालात बिहार में बन रहे हैं. दो-तीन साल छोड़ दें तो पिछले बीस सालों से जेडीयू और बीजेपी साथ-साथ रहे हैं. लेकिन अब दोनों के बीच दरारें साफ-साफ दिखने लगी हैं. मंत्रिमंडल में मन मुताबिक जगह ना मिलने से जेडीयू कोटे के सांसदों ने शपथ नहीं ली. पीएम नरेन्द्र मोदी की चाय पार्टी का बॉयकॉट कर दिया. छोटी-छोटी बातों से ही कई बार बात बिगड़ जाती है. ताजा मामला एनआरसी का है. प्रशांत किशोर की जिद चली और नीतीश कुमार मोदी सरकार के खिलाफ खड़े हो गए. नागरिकता कानून पर बीजेपी का साथ देने के बाद उन्हें अपने पुराने स्टैंड की याद आ गई. नीतीश बाबू ने एनआरसी के विरोध का ऐलान कर दिया. उनके मित्र और जेडीयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर बीजेपी के कट्टर विरोधियों ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के साथ काम कर रहे हैं.
पार्टी के प्रवक्ता अजय आलोक की कुर्सी बस इसी बात से चली गई कि उन्होंने ममता के खिलाफ ट्वीट कर दिया था. अब लोग सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर नीतीश के मन में क्या चल रहा है ? कहीं वे फिर पलटी मारने की तैयारी में तो नहीं हैं. अगर कहीं ऐसा हो गया तो फिर पांच साल पुराना खेल हो सकता है. जब नीतीश अपने कट्टर विरोधी लालू यादव के साथ हो गए थे. बिहार में विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी थी. बिहार में बीजेपी की हालत ऐसी नहीं कि वे अकेले चुनाव लड़ कर सरकार बना ले. पार्टी के पास कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है. तमाम आरोपों और शिकायतों के बावजूद नीतीश बाबू घर घर में जाने और पहचाने जाते हैं. पिछले 15 सालों से राज्य की राजनीति उनके इर्द गिर्द ही घूमती रही है.
सहयोगी पार्टियों को साथ लेकर चलने में लोग हमेशा अटल बिहारी वाजपेयी को याद करते हैं. एक समय तो वे 20 पार्टियों के गठबंधन वाली सरकार के पीएम हुआ करते थे. 25 दिसंबर को बीजेपी उनका जन्म दिन मना रही है. काश पार्टी उनकी इस काबिलियत को अपना राज धर्म बना पाती. गलतियां तो होती रहती हैं. लेकिन उन्हें ना दोहराना ही तो समझदारी है.
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