LGBTQ Community On Judge Collegium: एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों ने वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल की जज के रूप में नियुक्ति की सिफारिश को लेकर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सराहना की है. सदस्यों ने शनिवार (21 जनवरी) को कहा कि यौन आधार किसी की क्षमता को परखने का साधन नहीं होना चाहिए. अगर केंद्र दिल्ली हाई कोर्ट में न्यायाधीश पद पर वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल (Saurabh Kirpal) की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम की दोबारा भेजी गई सिफारिश मंजूर कर लेता है तो वह देश की किसी संवैधानिक अदालत के पहले समलैंगिक न्यायाधीश हो सकते हैं.


भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश बी. एन. कृपाल के पुत्र और वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल (50) अपनी समलैंगिक स्थिति के बारे में काफी खुले विचार के हैं और वह उस कानूनी टीम का हिस्सा थे, जिसने एलजीबीटीक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समूह के कुछ याचिकाकर्ताओं का शीर्ष अदालत में प्रतिनिधित्व किया था. शीर्ष अदालत ने दो समलैंगिक वयस्कों के बीच आपसी सहमति से यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था. 


कॉलेजियम ने केंद्र का तर्क किया था खारिज


कॉलेजियम ने 11 नवंबर, 2021 को कृपाल की नियुक्ति की सिफारिश को दोहराते हुए केंद्र के इस तर्क को खारिज कर दिया था कि भारत में हालांकि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, लेकिन समलैंगिक विवाह अभी भी मान्यता से वंचित है. समुदाय के सदस्यों ने यह भी कहा कि सरकार एक विद्वान वकील को "न्यायसंगत" पदोन्नति से वंचित कर रही है. 


एलजीबीटीक्यू समुदाय ने कॉलेजियम की सराहना की


शरीफ डी रंगनेकर, एक लेखक जो खुद को गे के रूप में पहचानते हैं और सौरभ कृपाल को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, ने कहा कि कोई भी पहचान, चाहे वह धार्मिक, यौन या राजनीतिक हो, किसी की क्षमता का निर्धारण करने के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. पूर्व पत्रकार ने ये भी कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि कॉलेजियम ने इस बार अपने बयान में सभी के लिए एक ही बात कही है. 


कॉलेजियम ने अपने बयान में क्या कहा?


उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सौरभ कृपाल की नियुक्ति के लिए अपनी सिफारिश को दोहराते हुए एक बयान में, भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय कॉलेजियम ने अपने यौन अभिविन्यास के बारे में खुले रहने के लिए उनकी सराहना करते हुए कहा था कि उन्हें इस बारे में खुले विचार रखने का क्रेडिट जाता है. कॉलेजियम, जिसमें न्यायमूर्ति एस के कौल और के एम जोसेफ भी शामिल हैं, ने कहा था कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कृपाल की नियुक्ति का प्रस्ताव पांच साल से अधिक समय से लंबित है और इस पर तेजी से कार्रवाई करने की आवश्यकता है. 


रॉ के पत्रों का किया गया जिक्र


रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) के उन पत्रों का हवाला देते हुए, जो सरकार की ओर से भेजे गए थे, कॉलेजियम ने कहा था कि, "रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के 11 अप्रैल, 2019 और 18 मार्च, 2021 के पत्रों से ऐसा प्रतीत होता है कि इस अदालत के कॉलेजियम की ओर से 11 नवंबर, 2021 को सौरभ कृपाल के नाम को लेकर की गई सिफारिश पर दो आपत्तियां हैं: पहला कि सौरभ कृपाल का साथी स्विट्जरलैंड का नागरिक है और दूसरा यह कि वह घनिष्ठ संबंध में हैं और अपने यौन रुझान को खुले तौर पर स्वीकार करते हैं." 


आपत्तियों को लेकर कॉलेजियम ने कहा कि रॉ के पत्रों में कृपाल के साथी के व्यक्तिगत आचरण या व्यवहार के संबंध में ऐसी किसी भी आशंका की ओर ध्यान आकर्षित नहीं किया गया है, जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ता है. दूसरी आपत्ति के बारे में कॉलेजियम ने कहा कि यह ध्यान देने की जरूरत है कि उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के फैसलों में स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति यौन रुझान के आधार पर अपनी गरिमा और व्यक्तित्व बनाए रखने का हकदार है. 


2017 में की गई थी सिफारिश 


सौरभ कृपाल (Saurabh Kirpal) ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा ली है और जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में एक संक्षिप्त कार्यकाल के बाद भारत लौटने से पहले कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में ‘मास्टर ऑफ लॉ (एलएलएम)’ किया. दिल्ली उच्च न्यायालय कॉलेजियम की ओर से उन्हें पदोन्नत करने के लिए 2017 में सिफारिश की गई थी. 


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