लिडार तकनीक से होगा काठमांडू-रक्सौल रेल लाईन के लिए हवाई सर्वेक्षण, जल्द शुरू होगा डीपीआर तैयार करने का काम
रक्सौल-काठमांडू रेल लाइन परियोजना के लिए डीपीआर बनाने का काम जल्द शुरू होगा. इसका सर्वे लाईट डिटेक्शन एंड रेंजिंग (लिडार) तकनीक से किया जाएगा.
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नई दिल्ली: नेपाल और बांग्लादेश दो ऐसे पड़ोसी देश हैं जिसके साथ भारत रेल डिप्लोमेसी का दोतरफा संबंध रखता है. इसके तहत भारत शुरू से ही नेपाल और बांग्लादेश की बड़ी मदद करता आया है. इसी क्रम में, 2018 में भारत ने नेपाल को काठमांडू से बिहार के रक्सौल तक की रेल लाइन बिछाने का प्रस्ताव दिया था. भारत के इस प्रस्ताव का चीन लगातार विरोध कर रहा था. लेकिन अब इसी महीने भारत आ रहे नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली के भारत दौरे से ठीक पहले नेपाल ने भारत के प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे दी है.
काठमांडू-रक्सौल रेल लाइन परियोजना
भारत-नेपाल सीमा पर स्थित बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले के रक्सौल से नेपाल की राजधानी काठमांडू तक 136 किलोमीटर लम्बी रेल लाइन बिछाने की सहमति नेपाल सरकार ने दी है. इस रेल लाइन का 42 किलोमीटर का हिस्सा भूमिगत होगा. ये ज़िम्मेदारी भारत सरकार की कम्पनी कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन पूरी करेगा. अब भारतीय सीमा में रक्सौल स्टेशन नेपाली सीमा में आने वाले बीरगंज स्टेशन से जुड़ कर दोनों देशों के बीच की दोस्ती की एक नई पहचान बन जाएगा.
चीन भी नेपाल में रेल लाइन बिछाने की कोशिशें कर रहा है
भारत के लिए काठमांडू-रक्सौल रेल लाइन की मंज़ूरी एक बड़ी राजनयिक उपलब्धि इसलिए भी है क्योंकि भारत से काफ़ी पहले 2008 से ही चीन तिब्बत के किरोंग से काठमांडू तक रेल लाइन बिछाने के लिए नेपाल पर दबाव बना रहा है लेकिन नेपाल ने भारत से अपनी दोस्ती को प्राथमिकता में रखते हुए भारत के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है. जबकि चीन न तो भारत के प्रस्ताव में रोड़े अटकाने में कामयाब हो सका और न ही अपने प्रस्ताव पर नेपाल की मुहर लगवा सका.
भारत ने दिया चीन की रेल-गेज़ चालाकी का जवाब
भारत से नेपाल की दोस्ती को देखते हुए चीन को इस बात का अंदेशा था कि नेपाल भारतीय प्रस्ताव को मान लेगा. ऐसे में चीन ने अपने प्लान-बी के मुताबिक़ इस बात की भी राजनयिक कोशिशें कर रहा है कि भारत नेपाल में ‘स्टैंडर्ड ब्रॉड गेज़’ रेल लाइन बिछाए ताकि भविष्य में इस ट्रैक पर उसकी ट्रेनें भी चल सकें. लेकिन भारत ने चीन की इस चाल को विफल करते हुए फ़ैसला लिया है कि वो नेपाल में अपनी ‘पर्सनलाइज़ रेल-गेज़ ट्रैक’ ही बिछाएगा जिस पर सिर्फ़ भारत की ट्रेनें ही चल पाएँगी, चीन की ट्रेनें नहीं चल पाएँगी. भारत के इस निर्णय से भारतीय सीमा तक पहुँच बनाने की चीन की रणनितिक चाल भी ध्वस्त हो गई है.
काठमांडू-रक्सौल रेल लाइन का सैन्य महत्व
इस नई रेल लाइन के चलते हिमालय क्षेत्र में काठमांडू तक भारत की पहुंच हो जाने से भारत नेपाल को पहले से अधिक मदद पहुंचा सकेगा जिससे नेपाल से भारत की दोस्ती और प्रगाढ़ होगी. नेपाल पर चीन के किसी भी सैन्य दबाव के बरक़्स भारत अब आसानी से सैन्य बल, युद्ध सामग्री और रसद आदि कम समय और अधिक मात्रा में नेपाल पहुंचा सकेगा.
अत्याधुनिक लिडार तकनीक से होगा हवाई सर्वेक्षण
रक्सौल-काठमांडू रेल लाइन परियोजना के लिए डीपीआर बनाने का काम जल्द शुरू होगा. इसके लिए परंपरागत तरीक़े से सर्वेक्षण करने में काफ़ी समय लग सकता है. इसलिए इस सर्वेक्षण का काम लेज़र उपकरणों से होने वाली ‘लाईट डिटेक्शन एंड रेंजिंग’ (लिडार) तकनीक से किया जाएगा. इस तकनीक में लेज़र उपकरणों से लैस एक हेलिकॉप्टर का प्रयोग किया जाता है जिससे प्रस्तावित रेल लाइन का हवाई सर्वेक्षण कर आँकड़े जुटाए जाएँगे.
इस सर्वे से किन चीजों के लिए आंकड़े जुटाए जाएंगे
आसमान से किए जाने वाले इस लिडार सर्वे से प्रस्तावित काठमांडू-रक्सौल रेल लाइन से सम्बंधित सभी ज़रूरी निर्माण के लिए स्थान चिन्हित किए जाएँगे जिनमें से ये निर्माण प्रमुख हैं - 1. वर्टिकल और हॉरिज़ॉंटल एलाइनमेंट 2. डिजाइनिंग 3. स्ट्रक्चर्स 4. स्टेशन और लोको डिपो 5. कॉरिडोर के लिए आवश्यक जमीन, 6. ज़रूरी रास्ते 7. इस प्रॉजेक्ट से सम्बंधित अन्य निर्माण और प्लॉट्स
कैसे काम करती है लिडार तकनीक
किसी भी रेल प्रॉजेक्ट का ग्राउंड सर्वे काफ़ी पेचीदा और मुश्किल होता है क्योंकि सर्वे में प्रस्तावित ट्रैक और उसके आस-पास के पूरे इलाक़े के बारे में बेहद सटीक आंकड़ों की ज़रूरत होती है. इन आंकड़ों में ज़मीन कहां-कहां कितनी ऊपर या नीचे है, ज़रूरी बिंदुओं के बीच की दूरी इत्यादि सैकड़ों माप लेनी होती हैं. इस लिडार सर्वे तकनीक में लेज़र डेटा, जीपीएस डेटा, फ़्लाइट पैरामीटर्स और वास्तविक फ़ोटोग्राफ़्स का सम्मिलित उपयोग किया जाता है.
काठमांडू-रक्सौल रेल लाइन सामान्य रेल लाइन की अपेक्षा अधिक कठिन टेरेन से हो कर गुजरेगी क्योंकि इसमें हिमालय के असामान्य ऊंचाई और ढलान आदि के अलावा अनेकों पुलों की भी आवश्यकता होगी जो इंजीनियरिंग के लिए एक चुनौतीभरा काम होगा. पर इस रेल लाइन के महत्व को देखते हुए भारत सरकार इसे जल्द से जल्द पूरा करना चाहती है. औपचारिक रूप से इसके प्रारूप की घोषणा के साथ ही रेलवे सैन्य मंत्रालय की मदद से इसे निर्धारित समय सीमा में पूरा करेगी.
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