नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न और तेजाब हमले की पीड़िताओं के लिए मुआवजे की मांग से जुड़ी एक याचिक में कहा, ‘‘जीवन अनमोल है और कोई भी अदालत इसकी कीमत नहीं आंक सकती है".


न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब एक वकील ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकार (नालसा) की मुआवजा योजना के बारे में कोर्ट से पूछा. इस योजना के मुताबिक यौन उत्पीड़न या तेजाब हमले की पीड़िता को अधिकतम पांच लाख रूपये का मुआवजा मिलता है और मौत होने पर उसके परिजन को 10 लाख रूपया मिलता है. इस पीठ में न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता भी शामिल थे.


तेजाब हमले से जुड़े मुद्दे पर याचिका दायर करने वाली वकील ने कहा कि इस तरह की पीड़िता के लिए मुआवजा एक खास श्रेणी के अपराध के लिए तय किया जाना चाहिए और यह अलग - अलग नहीं होना चाहिए. वकील ने दलील दी कि यदि किसी महिला से बलात्कार होता है तो नालसा योजना में जिक्र किए गए मुआवजे की राशि अलग - अलग नहीं होनी चाहिए. इस योजना के तहत मुआवजे की न्यूनतम राशि चार लाख रूपया और अधिकतम सात लाख रूपया तय की गई है.


वकील ने कहा कि बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और मौत के मामलों में मुआवजे को प्रतिशत में अलग-अलग नहीं किया जा सकता. अदालत को इस तरह की पीड़िता के लिए मुआवजे की राशि निर्धारित करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि तेजाब हमले की पीड़िताओं आज भी न तो नौकरी नहीं मिलती है और न ही उनकी समस्या का कोई हल हो रहा है . शीर्ष न्यायालय के आदेश के बावजूद बाजार में तेजाब की बिक्री नहीं रूकी है.


न्यायधीशों की पीठ ने कहा, ‘‘हमे कुछ सिद्धांतों पर गौर करना होगा क्योंकि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) ने बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के अपराध के बीच अंतर स्थापित किया है". मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद के लिए मुल्तवी कर दी.