बेंगलुरु: भारतीय वायुसेना ने अपाचे हेलीकॉप्टर को अपने बेड़े में शामिल करने के बाद अब अपना पहला स्वदेशी अटैक हेलीकॉप्टर तैयार कर लिया है. इस लाइट कॉम्बेट हेलीकॉप्टर (एलसीएच) को हिंदुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल ने तैयार किया है. जल्द ही ये अटैक हेलीकॉप्टर्स भारतीय वायुसेना और थलसेना में शामिल होंगे. एयरफोर्स में शामिल किए जाने से पहले एबीपी न्यूज के संवाददाता ने इस कॉम्बेट हेलीकॉप्टर में फ्लाईंग की और जाना कि आखिर इसकी खूबी और क्षमताएं क्या हैं. बता दें कि इस हेलीकॉप्टर को 'स्वदेशी अपाचे' कहा जाता है.


करगिल युद्ध के बाद ऐसे हेलीकॉप्टर की पड़ी थी जरूरत


एलसीएच अटैक हेलीकॉप्टर को करगिल युद्ध के बाद ही भारत ने तैयार करने का मन बनाया था. इस युद्ध के दौरान देश में ऐसा कोई अटैक हेलीकॉप्टर नहीं था जो 15 से16 हजार फीट की उंचाई पर जाकर दुश्मन के बंकर्स को तबाह कर सके. हालांकि, लंबे समय से चली आ रही इस मांग को हरी झंडी साल 2006 में मिली. इसके बाद इसे तैयार करने में 13 साल का समय लगा है. बता दें कि भारत ने भले ही हाल में अमेरिका से बेहद ही एडवांस अटैक हेलीकॉप्टर अपाचे खरीदे हैं लेकिन करगिल और सियाचिन की चोटियों पर अपाचे भी टेक ऑफ और लैंडिंग नहीं कर सकता है. लेकिन बेहद ही हल्के होने और खास रोटर्स से लैस होने के चलते एलसीएच इतनी ऊंची चोटियों पर भी अपने मिशन्स को अंजाम दे ‌सकता है.



ये है इस हेलीकॉप्टर की खासियत


लाइट कॉम्बेट हेलीकॉप्टर का वजन करीब 6 टन है जो इस श्रेणी के हेलीकॉप्टर में बेहद हल्का माना जाता है. अपाचे के वजन की बात करें तो यह करीब 10 टन का है. वजन कम होने के चलते ये हाई ऑल्टिट्यूड एरिया में भी अपनी मिसाइल और दूसरे हथियारों से लैस होकर टैकऑफ और लैंडिंग कर सकता है. एलसीएच अटैक हेलीकॉप्टर में फ्रांस से खास तौर से ली गईं 'मिस्ट्रल' हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल और हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइल लग सकती हैं. एलसीएच में 70 एमएम के 12-12 रॉकेट के दो पॉड लगे हुए हैं‌. इसके अलावा एलसीएच की नोज़ यानि फ्रंट में एक 20एमएम की गन लगी हुई है जो 110 डिग्री पर घूमकर किसी भी दिशा में फायर कर सकती है. पायलट के हेलमेट पर ही कॉकपिट के सभी फीचर्स डिसप्ले हो जाते हैं.



रडार को भी चकमा देने में सक्षम 


एचएएल के अधिकारियों के मुताबिक, एलसीएच में इस तरह के खास फीचर्स हैं कि ये आसानी से दुश्मन की रडार में पकड़ नहीं आएगा. दुश्मन हेलीकॉप्टर या फाइटर जेट ने अगर एलसीएच पर अपनी मिसाइल लॉक की तो ये उसे चकमा भी दे सकता है. इसकी बॉडी आरमर्ड है जिससे उसपर फायरिंग का कोई खास असर नहीं होगा. यहां तक की इसकी पंखों पर भी गोली का असर नहीं होगा. ये हेलीकॉप्टर 'एनबीसी कॉम्पेटेबल' यानी न्यूक्लियर, बाईलोजिकल और कैमिकल अटैक के दौरान कॉकपिट में मौजूद पायलट को अलर्ट कर देगा. भारतीय वायुसेना के लिए पूरी तरह से तैयार करने से पहले इस स्वदेशी हेलीकॉप्टर का ट्रायल सियाचिन ग्लेशियर से लेकर राजस्थान के रेगिस्तान तक में हो चुका है. इस दौरान एलसीएच में पर्याप्त मात्रा में फ्यूल से लेकर उसके हथियार भी लगे हुए थे.



रात में भी काम करने में सक्षम 


स्वदेशी कॉम्बेट हेलीकॉप्टर की खूबियों को जानने के लिए हमारे संवाददाता ने इसमें उड़ान भरी. इसके लिए पूरी कागजी प्रक्रिया के बाद उन्हें इजाजत दी गई. उड़ान भरने से पहले हमारे संवाददाता को पायलट का 'जी-सूट' पहनने के लिए दिया गया. इस हेलीकॉप्टर में एक छोटा कॉकपिट होता है जिसमें दो पायलट बैठ सकते हैं. मुख्य‌ पायलट आगे बैठता है और रियर पायलट पीछे. उड़ान भरने से पहले हमारे संवाददाता को इस कॉकपिट के बारे में पूरी जानकारी दी गई. इसके बाद हेलीकॉप्टर में अपनी ताकत का एहसास कराने आसमान की ओर चल पड़ा.


करीब पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर हेलीकॉप्टर बेंगलुरू और इसके आसपास के आसमान में उड़ान भरता रहा. इस दौरान पायलट ने दिखाया कि किस तरह मिशन के दौरान अटैक हेलीकॉप्टर को 180 डिग्री पर खड़ा किया जा सकता है या उल्टा किया जा सकता है. इस हेलीकॉप्टर को 360 डिग्री पर तेजी से घूमाया भी जा सकता है. बता दें कि यह किसी भी मौसम और जलवायु में काम करने में सक्षम है. यह रात के समय में भी ऑपरेशन को अंजाम दे सकता है.


एचएएल के अधिकारियों के मुताबिक भारतीय वायुसेना और थलसेना को दुश्मन के खिलाफ जंग लड़ने और आतंकियों के लांच-पैड्स और ठिकानों को तबाह करने के लिए कम से कम 160 अटैक हेलीकॉप्टर्स की जरूरत है. लेकिन अमेरिका से भारत का सौदा सिर्फ 26 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर्स का हुआ है, जिसके तहत हाल ही में कुछ हेलीकॉप्टर्स को वायुसेना में शामिल किया गया है. वायुसेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए यह माना जा रहा है कि कई लाइट कॉम्बेट हेलीकॉप्टर हेलीकॉप्टर्स खरीदे जा सकते हैं. खबर है कि सौदा होने से पहले ही एचएएल ने 15 एलसीएच हेलीकॉप्टर्स का निर्माण भी शुरू कर दिया है ताकि करार होने के बाद थलसेना और वायुसेना समय में इसकी डिलीवरी की जा सके.


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