मुंबई: भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के मुद्दे पर शहर के भाषाविद् बंटे हुए हैं. कुछ भाषाविद् ने केन्द्र सरकार से भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं करने का अनुरोध करते हुए कहा कि इससे हिन्दी को नुकसान होगा. वहीं समर्थकों का तर्क है कि यह वक्त उनकी बोली को सुरक्षित करने का है और इससे हिन्दी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचेगा. भोजपुरी उत्तर प्रदेश, बिहार ,झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में बोली जाती है.


हिन्दी भाषा हो सकती है प्रभावित: पूर्व जस्टिस


मुंबई प्रेस क्लब की ओर से इस संबंध में आयोजित एक चर्चा में बंबई हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस चंद्रशेखरन धर्माधिकारी ने कहा,‘‘अगर भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया तो आधिकारिक भाषा के तौर पर हिन्दी को जबर्दस्त झटका लगेगा, इसके अलावा एक नया भाषा युद्ध छिड़ जाएगा और पृथक राज्यों की मांग भी उठ सकती है.’’


हिन्दी पर नहीं पड़ेगा कोई असर: करणा उपाध्याय


जस्टिस धर्माधिकारी के तर्कों को बीच में ही रोकते हुए मुंबई विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्याक्ष करणा उपाध्याय ने कहा कि अगर भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया तो हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयासों को झटका लगेगा. वहीं महाराष्ट्र के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव सतीश त्रिपाठी ने कहा कि भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का हिन्दी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.