Kerala HC On Live In Relationship: केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कानून लिव इन रिलेशनशिप को शादी के रूप में मान्यता नहीं देता है. इस तरह के रिश्ते को तलाक के उद्देश्य से भी मान्यता नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने कहा कि वह केवल ‘पर्सनल लॉ’ या धर्मनिरपेक्ष कानूनों के अनुसार होने वाली शादियों को ही लीगल मानता है. 


मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की पीठ ने आगे कहा कि इसलिए, किसी समझौते के आधार पर एक साथ रहने वाला जोड़ा न तो विवाह होने का दावा कर सकता और न ही उसके आधार पर तलाक की मांग कर सकता है. पीठ का यह फैसला एक अंतर-धार्मिक जोड़े की अपील पर आया है. 


क्या है पूरा मामला?


बता दें कि इस जोड़े ने एक फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी, जिसने तलाक के अनुरोध वाली उनकी याचिका इस आधार पर खारिज कर दी थी कि उनका विवाह विशेष विवाह अधिनियम के तहत नहीं हुआ. इस जोड़े में एक हिंदू और दूसरा ईसाई है. जोड़ा एक रजिस्टर्ड सहमति के तहत 2006 से एकसाथ रह रहा था और दोनों का 16 साल का एक बच्चा भी है. चूंकि वे अब अपने रिश्ते को जारी नहीं रखना चाहते थे, उन्होंने तलाक के लिए फैमिली कोर्ट का रुख किया था. 


हाई कोर्ट ने क्या कहा?


हाई कोर्ट ने कहा, "कानून ने अभी तक लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह के तौर पर मान्यता नहीं दी है. कानून विवाह को तभी मान्यता देता है जब वह पर्सनल कानून के तहत या विशेष विवाह अधिनियम जैसे धर्मनिरपेक्ष कानून के अनुसार होता है. अगर पक्षकार एक सहमति के आधार पर एकसाथ रहने का फैसला करते हैं, तो यह उन्हें विवाह के रूप में दावा करने और तलाक का दावा करने के योग्य नहीं बनाता है."


फैमिली कोर्ट के फैसले पर HC


हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि वर्तमान मामले में, फैमिली कोर्ट के पास तलाक के लिए इस तरह के दावे पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं था और उसे जोड़े की याचिका खारिज करने के बजाय, उसे यह कहकर वापस कर देना चाहिए था कि यह विचार योग्य नहीं है. 


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