नई दिल्ली: लॉकडाउन के दौरान अपने गांव वापस लौट रहे प्रवासी मज़दूरों से ट्रेन का किराया लेने का विवाद दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. बुधवार को केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार के साथ हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान सभी मज़दूर संगठनों ने मामला उठाते हुए इसका जमकर विरोध किया. आरएसएस से जुड़े मज़दूर संगठन भारतीय मज़दूर संगठन ने इसे अमानवीय क़रार देते हुए इसे प्रवासी मज़दूर क़ानून 1979 का उल्लंघन बताया. बैठक में मौजूद श्रम मंत्रालय के सचिव ने समापन भाषण देते हुए मज़दूर संगठनों को साफ़-साफ़ कहा कि मज़दूरों से किराए के रूप में कोई पैसा नहीं लिया गया है. सभी संगठनों ने मज़दूरों की घर वापसी के लिए और बड़ी संख्या में ट्रेनें चलाने की भी मांग की.


प्रवासी मज़दूरों का डेटाबेस बनाया जाए


बैठक में मज़दूर संगठनों ने मांग की कि देश भर के अलग अलग जगहों पर रह रहे प्रवासी मज़दूरों का एक देशव्यापी डेटाबेस तैयार किया जाना चाहिए. इसके लिए एक राष्ट्रीय रजिस्टर बनाए जाने का सुझाव दिया गया. संगठनों का कहना था कि इससे मज़दूरों के पलायन की पूरी जानकारी मुहैया हो सकेगी और उन्हें रोज़गार मिलने में आसानी हो सकेगी. इसके अलावा वापस घर जा रहे मज़दूरों को आर्थिक सहायता देने और हालात सामान्य होने की हालत में उन्हें फिर से काम पर लौटने में मदद करने की भी मांग की गई.


काम करने का समय नहीं बढ़ाया जाए
श्रमिक संगठनों ने लॉकडाउन के चलते बढ़ रही बेरोज़गारी को बड़ी समस्या बताते हुए मांग की कि जिन मज़दूरों की नौकरी छिन रही है उन्हें नक़द सहायता दिए जाने की ज़रूरत है. इसके अलावा सरकार से ये भी सुनिश्चित करने को कहा गया कि मज़दूरों के काम करने की समयसीमा में कोई बढ़ोत्तरी न हो. बेरोज़गारी रोकने के लिए सरकार को छोटे और मध्यम उद्योगों को कुछ रियायत दिए जाने का सुझाव दिया गया.
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