नई दिल्ली: प्रवासी मज़दूरों को गांव वापस भेजने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है. कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्या इस बारे में कोई प्रस्ताव है? सरकार को 1 हफ्ते में इस पर जवाब देना है. वकील प्रशांत भूषण की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया था कि लॉकडाउन में मज़दूर खाली बैठे हैं. उनके पास पैसे और भोजन नहीं हैं. उनको घर से दूर रखना मौलिक अधिकार का हनन है. सबको कोरोना टेस्ट के बाद घर भेजा जाए.


याचिका का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “कोई आज कोरोना नेगेटिव है तो इसका मतलब यह नहीं होता कि 2 दिन बाद उसमें लक्षण नहीं नजर आएंगे. सरकार मजदूरों की मदद के लिए हर संभव उपाय कर रही है. पीआईएल करने वाले इस याचिकाकर्ता को लगता है कि देश में अकेले वही गरीबों के लिए फिक्रमंद है. सरकार को उसका काम करने दिया जाए.“


मेहता ने प्रशांत भूषण का एक ट्वीट जजों के सामने रखा. इस ट्वीट में भूषण ने सुप्रीम कोर्ट पर ज़रूरतमंदों की बजाय सरकार का पक्ष लेने का आरोप लगाया था. इस पर जस्टिस एन वी रमना, संजय किशन कौल और बी आर गवई की बेंच सख्त नाराज हो गई. जस्टिस कौल ने कहा, “अगर आपको हमारे ऊपर भरोसा नहीं है तो फिर हम आपकी बात पर क्या सुनवाई करें. आप कहते हैं कि आप 30 साल से ज्यादा समय से सुप्रीम कोर्ट से जुड़े हैं तो क्या आपको यह लगता है कि कोर्ट सरकार के यहां बंधक है.”


भूषण ने सफाई देते हुए कहा, “हाल फिलहाल में कोर्ट के कुछ आदेशों के चलते कई पूर्व जजों ने भी ऐसी राय व्यक्त की है. इसका मतलब यह नहीं है कि हम इस संवैधानिक संस्था पर आस्था नहीं रखते हैं.“ सॉलिसिटर जनरल ने एक बार फिर प्रशांत भूषण पर हमला बोलते हुए कहा, “यह इनकी पुरानी आदत है. एक भी मामले में इनके मन मुताबिक फैसला नहीं आता तो उसे न्यायपालिका के इतिहास में काला दिन बताने लगते हैं. कोर्ट को इनकी बातों पर विचार नहीं करना चाहिए.“


इस पर प्रशांत भूषण ने खुद को मामले से अलग करने और अपनी जगह दूसरे वकील को भेजने की बात कही. जजों ने इस तरह का कोई आदेश देने से मना करते हुए कहा, “हम चाहते हैं कि सरकार इस मसले पर जवाब दे. 1 हफ्ते में हमें बताएं कि क्या इस मसले पर विचार हो रहा है? क्या ऐसा कोई प्रस्ताव लंबित है?”


सुनवाई के दौरान जजों ने यह भी कहा कि कई राज्य सरकारें दूसरे राज्य में फंसे अपने लोगों को वापस लाने की दिशा में कदम उठा रही हैं. ऐसे में इस याचिका की क्या जरूरत है? इसका जवाब देते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्य सरकारें सिर्फ छात्रों को वापस लाने की बात कर रही हैं, मजदूरों की तरफ किसी का ध्यान नहीं है.


इस पर 3 जजों की बेंच के सदस्य जस्टिस बी आर गवई का कहना था, “यूपी के मुख्यमंत्री ने 15 लाख मजदूरों को वापस लाने की बात कही है. क्या आपने उनका बयान नहीं देखा?” भूषण का जवाब था कि राज्य सरकार के कहने से कुछ नहीं होता है. केंद्र की अनुमति के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता. इसलिए सुप्रीम कोर्ट को केंद्र से जवाब मांगना चाहिए.



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